आसक्ति बाँधती है और प्रेम मुक्त करता है

“जहां आसक्ति बाँधती है, वहाँ प्रेम मुक्त करता है।
प्रेम स्वतन्त्रता है।” -ओशो
इसीलिए समाज प्रेमी जोड़ों का विवाह नहीं होने देता। प्रेम करने वालों से तो इतनी घृणा करता है कि हत्या करने तक में संकोच नहीं करता।
क्योंकि जहां स्वतन्त्रता है, वहाँ विवाह का बन्धन भला टिक कैसे सकेगा ?
विवाह तो केवल उन्हीं के साथ टिक सकता है, जिनमें आजीवन शत्रुता बनी रहे।
दो शत्रु आजीवन साथ-साथ रह सकते हैं समझौते के अंतर्गत। जैसे कि भारत-पाकिस्तान, फिलिस्तीन-इज़राइल। जबकि विवाह एक ऐसा सम्झौता है, जो व्यावसायिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, जातिवाद और स्वार्थ पर आधारित होता है ना कि प्रेम पर।
युवावस्था में जब किसी से प्रेम हुआ तो उसे पाना चाहता था, उससे विवाह करना चाहता था। लेकिन जब उसने कहा कि उसे तो सरकारी पति चाहिए, तब पहली बार जाना कि प्रेम सरकारी और व्यापारी होता है।
लेकिन मैं तब नासमझ था, बचपना था। बाद में समझ में आया कि मैंने तो कभी प्रेम किया ही नहीं था। प्रेम तो त्याग है, प्रेम तो बलिदान है, प्रेम तो समर्पण है। पाने की कामना प्रेम हो ही नहीं सकता। प्रेम में शर्ते होती ही नहीं हैं। प्रेम में तो केवल समर्पण होता है, स्वयं को खोकर दूसरे के साथ एक हो जाना होता है।
और जिस दिन प्रेम को जाना, उस दिन से विवाह का कभी विचार ही नहीं आया। उस दिन से किसी को अपना बनाने का स्वप्न भी नहीं आया। मैंने सभी को मुक्त कर दिया, अपने मस्तिष्क और दिल से।
अब समाज से दूर एकांत में रहना पसंद करता हूँ। पहले लोगों को सलाह बहुत दिया करता था, लेकिन अब सलाह देना भी बंद कर चुका हूँ। हर किसी को स्वतन्त्रता से जीने और मरने का अधिकार है।
किसी के घर जाना पसंद नहीं करता। क्योंकि घर की स्त्रियों को जब खाना बनाते देखता हूँ, तो दिल दुखी हो जाता है। जिन्हें हवाई जहाज उड़ाना चाहिए था, जिन्हें मुक्त आकाश में विचरण करना चाहिए था, उन्हें रसोई में कैद कर दिया गया।
यह तो अच्छा हुआ कि विज्ञान इतना विकसित हो गया कि खाना बनाने वाले Chef Robots और घर-घर भोजन पहुँचाने वाले Zomato, Swiggy, माँ की रसोई मार्किट में गए, झाड़ू-पोंछा करने वाले Robotic Vacuum Cleaner मार्किट में आ गए। निकट भविष्य में किसी को भी विवाह करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। क्योंकि जिन कारणों से विवाह किया जाता था, वह सब मार्किट में उपलब्ध हो चुके हैं। केवल पैसा होना चाहिए आपके पास और सबकुछ उपलब्ध है।
तो विज्ञान के कारण ही विवाह नामक बन्धन से मुक्त हो पाएगा समाज। और जब भी किसी से प्रेम होगा किसी मानव को, तब वह उसे स्वतंत्र कर देगा। जिस दिन भी किसी पति को, किसी पत्नी को प्रेम होगा अपने पति या पत्नी से, उसे स्वतन्त्र कर देगा।
जब तक शत्रुता रहेगी, जब तक एक दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे, तब तक विवाह नामक बंधन में बंधे रहेंगे और सुखी विवाहित दंपत्ति होने का ढोंग करेंगे।
दूसरों की अपेक्षाएँ पूरी करने के लिए नहीं आए हो इस दुनिया में
दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करना बंद करो, क्योंकि यह एक मात्र ढंग है जिससे तुम आत्महत्या कर सकते हो। तुम यहां किसी की भी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हो और कोई भी यहां तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हैं। दूसरों की अपेक्षाओं के कभी भी शिकार मत बनो और किसी दूसरे को अपनी अपेक्षाओं का शिकार मत बनाओ।
यही है जिसे मैं निजता कहता हूँ, अपनी निजता का सम्मान करो और दूसरों की निजता का भी सम्मान करो। कभी भी किसी के जीवन में हस्तक्षेप मत करो और किसी को भी अपने जीवन में हस्तक्षेप मत करने दो। सिर्फ तब ही एक दिन तुम आध्यात्मिकता में विकसित हो सकते हो।
वर्ना, निन्यानबे प्रतिशत लोग आत्महत्या करते हैं। उनका सारा जीवन और कुछ नहीं बस धीमी गति से आत्महत्या है। यह अपेक्षा और वह अपेक्षा पूरी करते हुए… किसी दिन पिता, किसी दिन माता, किसी दिन पत्नी, पति, फिर बच्चे आते हैं – वे अपेक्षाएं करते हैं। फिर समाज आ जाता है, पंडित और राजनेता। चारों तरफ सभी अपेक्षाएं कर रहे हैं। तुम बेचारे हो वहाँ, बस बेचारे मनुष्य – और सारी दुनिया तुमसे अपेक्षा कर रही है कि यह करो और वह करो। तुम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर सकते, क्योंकि वे बड़ी विरोधाभासी हैं।
तुम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करते हुए पागल हो गए हो। तुमने किसी की भी अपेक्षा पूरी नहीं की है। कोई भी प्रसन्न नहीं है। तुम हार गए, नष्ट हो गए और कोई भी प्रसन्न नहीं है। जो लोग स्वयं के साथ खुश नहीं हैं वे प्रसन्न नहीं हो सकते। तुम कुछ भी कर लो, वे तुम्हारे साथ अप्रसन्न होने के मार्ग ढूंढ़ लेंगे, क्योंकि वे प्रसन्न नहीं हो सकते।
प्रसन्नता एक कला है जो तुम्हें सीखनी होती है। इसका तुम्हारे करने या न करने से कुछ लेना देना नहीं है।
सुखी करने की जगह, प्रसन्न होने की कला सीखो।
— ओशो
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