आजीविका के लिए विवशतावश किया जाने वाला कार्य व्यक्ति को दास बना देता है

ऐसा कोई भी कार्य जो विवशतावश आजीविका के लिए करते हैं, वह आपको दूसरों का दास बना देता है। और जो दूसरों के अधीन होता है, वह शूद्र कहलाता है। इसीलिए प्रजा, सेना, पुलिस, सेवक आदि सभी शूद्र वर्ण के अंतर्गत आते हैं।
कहते हैं प्राचीनकाल में शूद्रों को ज्ञान प्राप्त करने का अधिकार नहीं था।
आज भी नहीं है। और प्रमाण है प्रायोजित महामारी काल में सत्य सामने लाने वालों की आईडी सस्पेंड होना। प्रमाण है उन डॉक्टर और वैज्ञानिकों का मारा जाना, जो प्रायोजित सुरक्षा कवच का विरोध कर रहे थे। प्रमाण है आज भी उन विडियो और आर्टिकल्स को ब्लॉक करना, जो प्रायोजित महामारी और प्रायोजित सुरक्षा कवच के षड्यंत्र की पोल खोलते हैं। प्रमाण हैं उन लोगों के वीडियोज़ और लेखों की पहुँच घटाना, जो यह बताते हैं कि कैसे समस्त विश्व की जनता को कुछ मुट्ठीभर लोगों का गुलाम बनाने के लिए षड्यंत्र रचा जा रहा है।
और यह सब इसलिए क्योंकि उनकी नजर में वे सभी शूद्र हैं, जो उनकी कृपा और दया पर आश्रित हैं।
अब आप अवश्य पूछेंगे कि ब्राह्मण पर क्यों नहीं लिखा ?
तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ब्राह्मण अब इस दुनिया से लगभग लुप्त होने वाले हैं। कुछ ही वर्षों के भीतर ब्राह्मण और क्षत्रिय पूरी तरह से लुप्त हो जाने की आशंका है। क्योंकि 90% जनसंख्या शहरी चिड़ियाघरों में कैद हो चुकी होगी। और उनकी स्थिति बिलकुल सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों, भक्तों और जोंबियों जैसी होगी। वे केवल आदेशों के गुलाम होंगे और उन्हें अधिकार नहीं होगा स्वविवेकानुसार निर्णय लेने का। अधर्म, अत्याचार और शोषण का विरोध करने का भी अधिकार नहीं होगा। जैसे सेना में घटिया भोजन की शिकायत करने पर पागल घोषित कर दिया जाता है, वैसे ही शहरी लोगों को भी गलत को गलत कहने का अधिकार नहीं होगा।
और यह सब शुरू भी हो चुका है विश्व भर के उन देशों में जिनकी सत्ता माफियाओं के अधीन है।
ब्राह्मण और क्षत्रिय यूं ही लुप्त नहीं हो रहे, बल्कि सुनियोजित षड्यंत्र किया गया इन्हें लुप्त करने के लिए। आज जो ब्राह्मण और क्षत्रिय अकड़े हुए धर्म की रक्षा करने के लिए तलवारें भाँजते दिख रहे हैं ना ? वे सब शूद्र हैं और केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय होने का ढोंग कर रहे हैं वैसे ही जैसे रामलीला में कोई राम होने का ढोंग करता है, तो कोई सीता होने का। जैसे फिल्मों में हीरो ढोंग करता है भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध होने का देशभक्त होने का, लेकिन वास्तविक जीवन में उनके विरुद्ध आवाज तक नहीं निकलती।
ब्राह्मण और क्षत्रिय होने के लिए लिए सत्य और धर्म का कठिन मार्ग चुनना होता है। ब्राह्मण और क्षत्रिय होने के लिए पूर्वजन्मों के उच्च संस्कारों का जागृत होना अनिवार्य है। जब तक पूर्वजन्मों के उच्च संस्कार जागृत नहीं हो जाते, व्यक्ति का आचरण वैश्य या शूद्र गुणी ही होगा।
वैश्य जिसका सारा ध्यान व्यापार लाभ-लाभ हानि पर केन्द्रित रहता है। वह दान भी करेगा तो लाभ पहले सुनिश्चित कर लेगा। वह मंदिर भी जाएगा तो इसलिए कि व्यापार में लाभ हो, स्वर्ग में प्लाट कंफर्म हो। वह सहयोग भी करेगा तो बार-बार एहसान जताता रहेगा ताकि भविष्य में एहसान की कीमत वसूली जा सके।
शूद्र चाहे कितना ही पढ़ा लिखा हो, चाहे उसके पूर्वज कितने ही बड़े जमींदार या किसान रहे हों, कितना ही बड़ा खेत उसके नाम छोड़ गए हों, वह नौकरी या गुलामी ही चुनेगा। वह अपने खेत बेच देगा और नौकरी या गुलामी खरीद लेगा। क्योंकि शूद्र को उसी में आनंद मिलेगा। चाकरी की अपनी विवशता है, भीतर कहीं चोट पड़ती है जब किसी मूर्ख अधिकारी या मालिक की बकवास सुननी पड़ती है। इसलिए जो जितना जीतने ऊंचे पदों पर पहुंचता जाता है, जितना धनवान होता जाता है, उतना ही अधिक आडंबर और दिखावा करने लगता है। उसे अपना वास्तविक चेहरा छुपाने के लिए विभिन्न प्रकार के मुखौटे लगाने पड़ते हैं। और अब तो कई देशों में मास्क अनिवार्य कर दिये गए हैं।
वास्तविक चेहरों को छिपाने के लिए मुखौटों की आवश्यकता होती है
तुम जितने झूठे होगे, जितना दिखावा और आडंबर करोगे उतने ही अधिक बड़ी भीड़ तुम्हारे पास इकट्ठी हो जाएगी। और जितना वास्तविक रहोगे, जितना आडंबरों और दिखावों से दूर रहोगे, उतना अकेले होते जाओगे।
और यही कारण है कि पूरी की पूरी दुनिया ही आज ढोंगी-पाखंडियों से भर गयी। कुछ गिने चुने लोग ही अब अपने वास्तविक रूप में जी रहे हैं, अन्यथा तो सभी ने मुखौटे लगा रखे हैं।
और मुखौटे लगाना विवशता भी बन चुकी है, क्योंकि यदि कोई मुखौटे के बगैर दिखाई देता है, तब भी लोग विश्वास नहीं करते और चेहरा नोचकर विकृत करके भीड़ में छुप जाते हैं।
हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां आप सच्चाई बताओ तो कोई साथ नहीं देगा और झूठ बताओ तो लाखों खड़े हो जाएंगे साथ देने के लिए।
हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जिसमें संन्यासियों को भी वे लोग सिखाने चले आते हैं कि कैसे पूजा करना चाहिए, कब उठना चाहिए, कब सोना चाहिए, जो स्वयं माफियाओं के गुलाम समाजों के गुलाम हैं। जो स्वयं आज तक भेड़चाल से मुक्त नहीं हो पाये, जो आज तक दिखावों और आडंबरों से मुक्त नहीं हो पाये, वे सिखाने चले आते हैं कि संन्यासियों को कैसा होना चाहिए, क्या बोलना चाहिए, क्या लिखना चाहिए।
और यदि आप इतिहास उठाकर देखें, तो माफियाओं की गुलाम सरकार, समाज और भीड़ सदैव अधर्मियों के ही पक्ष में रही है। और यही भीड़ नौटंकी करती है दशहरा पर रावण दहन करके सच्चाई पर अच्छाई की जीत और अधर्म पर धर्म की जीत होने का। जबकि वास्तविकता तो यही है कि ना तो सच्चाई की कभी जीत हुई, ना सत्य की कभी जीत हुई।
केवल कुछ लोग चैतन्य हुए और समाज से गालियां सुनी, तिरस्कार सहा, अपमान सहा, सरकारों ने सजा दी, बहिष्कार किया, जेलों में कैद किया, सूली पर चढ़ाया, जहर दिया और उनकी मौत के बाद कायरों और स्वार्थियों की भीड़ ने उनके नाम पर धंधा जमाकर ऐश्वर्य भोगना शुरू कर दिया।
यदि समाज का साथ चाहिए तो झूठे बनिए, मक्कार बनिए और समाज आपको सर माथे पर बैठा लेगा। लेकिन यदि आप सच कहते हैं, वास्तविक रहते हैं, तो अपना सुख-दुःख किसी को मत बताइये। क्योंकि आपके जीने मरने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लोग सुन लेंगे बड़ी बड़ी डींगें हांक देंगे, गाल बजा लेंगे और फिर भेड़ों के झुंड में वापस लौट जाएंगे भेड़चाल में ताल मिलाकर चलने के लिए। क्योंकि शूद्रों जीना तो आखिर माफियाओं के अधीन समाज के साथ ही है।
जो थोड़े बहुत ब्राह्मण बचे हुए हैं, वे समाज को माफियाओं के विरुद्ध जागृत करने के अभियान में व्यस्त हैं। जो गुणधर्म से क्षत्रिय हैं वे ऐसे ब्राह्मणों की रक्षा व सहयोग के लिए तत्पर हैं।
जिन्हें लगता है कि उनकी अंतरात्मा अब जाग रही, अब माफियाओं की गुलामी करना स्वीकार नहीं है, वे डॉ0 बलहारा का यह विडियो अवश्य देखें।
Support Vishuddha Chintan
