क्या सीखा समाज ने गुरुओं से नामजाप, स्तुतिवंदन कीर्तन भजन के सिवाय ?

एक महान गुरु से भेंट हुई मेरी और बताया गया कि इनमें बहुत सिद्धि है, इनकी आयु सवा सौ वर्ष से भी अधिक है और अभी भी पूर्णतः स्वार्थ हैं। जो भी इन्हें पूजता है, या इनके प्रति समर्पित होता है उनके सभी दुःख और कष्ट दूर हो जाते हैं।
मैंने उनसे पूछा कि वे समाज को क्या शिक्षा देते हैं, तो उनका कहना है कि मैं शिक्षा नहीं देता, केवल इतना ही कहता हूँ कि योगासन करो और स्वस्थ रहो।
मैंने कहा कि ये तो सभी कहते हैं, आपके अपने अनुभवों पर आधारित कुछ विशेष ज्ञान जो मेरे लिए उपयोगी हो। तो वे कुछ नहीं बोले अपने भक्तों से कहा कि उनके विषय में जानकारी दें मुझे। और वे उनकी महिमाओं का बखान और उनके गुण-गान, स्तुति वंदन करना शुरू हो कर दिये। बताने लगे कि ये गरीबों को रुपये, कंबल, वस्त्र दान करते हैं।

मैंने उनसे विदा ली और वहाँ से निकल गया। सोचने लगा कि ऐसे गुरुओं से समाज को क्या लाभ ?
सभी अपने अपने गुरुओं और गुरुओं द्वारा स्थापित समाज को महान बताते हैं। सभी अपने अपने गुरुओं को तारक ब्रह्म बताते हैं, परमेश्वर बताते हैं, ईश्वर/अल्लाह की संतान बताते हैं, गुरुओं के गुरु बताते हैं। हर कोई चाहता है कि दूसरे पंथ या समाज के लोग उनके गुरुओं पढ़ें और समझें उनकी शिक्षाओं को।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या सीखा समाज ने गुरुओं से नामजाप, स्तुतिवंदन, कीर्तन-भजन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, यम-नियम, व्रत-उपवास के सिवाय ?

ये गरीबों के मसीहा और पैसे बांटने वाले गुरु, लंगर बांटने वाले गुरु, भभूत और ताबीज बाटने वाले गुरु, झाड़ु से पीटकर आशीर्वाद देने वाले गुरुओं से समाज को क्या लाभ होता है, कौन सा आध्यात्मिक उत्थान होता है ?

हजारों वर्षों से यही सब चला आ रहा है और नए नए गुरु, सम्प्रदाय, समाज, पंथ पैदा होते चले जा रहे हैं। लेकिन समाज का उत्थान होने की बजाय, पतन ही हुआ चला जा रहा है।
हर गुरु का अनुयायी कहता है कि लोगों ने उनके गुरु की शिक्षा का गलत अर्थ निकाल लिया, या लोगों ने पढ़ा ही नहीं गुरु की शिक्षाओं को, इसलिए उनका समाज अपने ही गुरुओं के दिखाये मार्ग पर नहीं चल रहा।
फिर प्रश्न उठता है कि यदि गुरुओं द्वारा स्थापित समाज ही अपने गुरुओं की शिक्षाओं का अनुसरण नहीं कर रहा, तो फिर दूसरे दड़बों की भेड़ों को क्या चारा डालने पहुँच जाते हैं कि हमारे दड़बे में आ जाओ, हमारे गुरु के दिखाये मार्ग पर चलो तो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे ?
क्या इस फोटो को देखकर बता सकते हैं कि ये गरीब किस दड़बे का है ?

सभी समाज नामक दड़बों में शोषित, पीड़ित, रोगी, निर्धन मिल जाएँगे और उन्हें अपना संघर्ष अकेले ही लड़ना होता है। समाज कभी उनके आसपास नजर नहीं आएगा। लेकिन वही व्यक्ति यदि ईशनिन्दा कर दे, गुरुओं की बेअदबी कर दे क्रोध में, तब अचानक से समाज प्रकट हो जाएगा और आसमान से उतर आएगी ईशनिन्दा और बेअदबी के नाम पर आगजनी, तोड़-फोड़, दंगा-फसाद, मोबलिंचिंग करने वाली ज़ोम्बियों की भीड़। और फिर गरीब की ह्त्या करने के बाद वापस आसमान में गायब हो जाएगी। फिर न पुलिस खोज पाएगी, न ही सीबीआई, ना ईडी और ना ही दुनिया के बड़े-बड़े जासूस खोज पाएंगे। और जो शक के आधार पकड़े गए, वे सभी बाइज्जत बरी हो जाएंगे।

ओशो ने कहा था, “यदि मैं तुम्हारे मार्ग में बाधक बनता हूँ तो मुझे हटा देना, लेकिन तब तक मत ठहरना जब तक तुम सत्य को ना जान लो, जब तक तुम स्वयं को ना जान लो, जब तक तुम परमात्मा को जान लो।”
आज यदि समाज पर नजर डालें, तो पाएंगे कि अब गुरुओं से भी मुक्ति पाने का समय आ गया है। क्योंकि जो गुरुओं को पकड़े बैठे हैं, वे सब माफियाओं के गुलाम मवेशी और ज़ोम्बी बन चुके हैं।
गुरुओं द्वारा स्थापित या गुरुओं के नाम से स्थापित ही नहीं, लगभग सभी धार्मिक, आध्यात्मिक संगठन, समाज, संस्थाएं आज माफियाओं की गुलाम भेड़ों में रूपांतरित हो चुके हैं। ओशो संन्यासी हों, या राम, कृष्ण या अन्य किसी के अनुयायी और भक्त, सभी आज नामजाप और स्तुति-वंदन में लिप्त हैं। इन्हे होश ही नहीं कि मानव जाति कितने बड़े संकट में घिर चुकी है। मानव ही नहीं, समस्त प्राणी जगत संकट में आ गया है कुछ स्वार्थी, लोभी सरकारों, पार्टियों, बिकाऊ नेताओं, अभिनेताओं, खिलाड़ियों और अधिकारियों के कारण।
और जब कोई समाज ही माफियाओं का गुलाम ज़ोम्बी बन जाये, तो वह अपने सदस्यों को कभी भी जागृत होने नहीं देगा। इसीलिए स्वयं को दड़बों से अलग कर लेने का समय आ गया है।
जैसी जिसकी प्रवृति और प्रकृति होती है, वैसा ही पंथ, संप्रदाय, समाज चुनता है जन्म लेने के लिए, या फिर अपने जैसा गुरु चुनता है।
यदि व्यक्ति भक्त स्वभाव का हुआ, तो भक्ति मार्ग चुनेगा। फिर चाहे वह मोहम्मद को चुने, श्री कृष्ण को चुने या फिर बुद्ध को चुने अपने आराध्य गुरु के रूप में। करेगा वह भक्ति ही।
यदि भक्तिमार्गियों से पूछा जाए कि तुम्हारे गुरु ने तुम्हें क्या सिखाया ?
तो उनका उत्तर होगा, ध्यान, भजन, कीर्तन, स्तुति-वंदन और नेताओं, अभिनेताओं, बाबाओं की जय-जय करते हुए माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करना।
यदि कर्ममार्गियों से पूछा जाए कि तुम्हारे गुरु ने तुम्हें क्या सिखाया ?
तो उनका उत्तर होगा: “दीमक की तरह, मधुमक्खियों की तरह, चींटियों और गुलामों की तरह, 18-18 घंटे कर्म करना सिखाया।
और यदि पूछा जाए कि कौन सा कर्म करना सिखाया ?
तो कहेंगे: “पूजा पाठ, रोज़ा नमाज, व्रत उपवास, कीर्तन-भजन और पारंपरिक कर्म काण्ड करते हुए माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी या गुलामी करना।
ज्ञान मार्गियों से पूछा जाए कि आपके गुरु ने क्या सिखाया आपको ?
तो उनका उत्तर होगा:”आसमानी, हवाई, ईश्वरीय किताबें पढ़ना और पढ़ाना। दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान धार्मिक ग्रंथों में है, यह मानना और समझाना दूसरों को। यूपीएससी और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना, सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए पढ़ाई करना और फीस भरने के लिए अपने खेत, जमीन बेच देना। क्योंकि खाली हाथ आए थे चाकरी/गुलामी करने के लिए और खाली हाथ जाना है माफियाओं और लुटेरों की तिजोरी भरने में सहयोग करके।
सारांश यह कि रेडिमेड मार्ग कोई भी हो, सभी इंसान को रूपांतरित करके माफियाओं का गुलाम मवेशी, ज़ोंबी और कोल्हू का बैल ही बनाते हैं।
यही कारण है कि सदियों में कुछ ही लोग चैतन्य, जागृत हो पाते हैं, बाकी सभी स्तुति वंदन, नामजाप, चापलूसी और भक्ति करते हुए मर जाते हैं। और जागृत व्यक्तियों का हश्र वही होता है, जो मंसूर, जीसस, वेलेंटाइन, बुद्ध, ओशो, स्वतंत्रता सेनानियों का हुआ। जो हश्र माफियाओं और लुटेरों के विरुद्ध आवाज उठाने वालों का हुआ।
मेरी निजी धारणा है कि रेडिमेड मार्ग को चुनने की बजाय कोई नया मार्ग खोजा जाए। ऐसा कोई मार्ग जो माफियाओं और देश के लुटेरों द्वारा निर्मित दड़बों, पिंजरों और चिड़ियाघरों की ओर ना जाता हो।
आज ऐसा कोई पंथ, समाज, संगठन, संस्था, संप्रदाय नहीं बचा, जिसके मालिक और ठेकेदार माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलाम, भक्त या जोम्बी बनने से बच गए हों।
इसीलिए ऐसा मार्ग खोजना होगा जो व्यक्ति की निजता, मौलिकता, स्वतंत्रता को बाधित किए बिना शांति और परस्पर सहयोगिता के भाव से जीने का वातावरण प्रदान करता हो।
~ विशुद्ध चैतन्य
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