भक्ति का ढोंग करने वाले ढोंगी समाज से मुक्त हो चुका हूँ मैं
इस वर्ष मुझे सबसे कम बधाइयाँ मिलीं और मैंने सबसे कम बधाइयाँ दी।
जानते हैं क्यों ?
क्योंकि मैं अब भक्तिमार्गी भी नहीं रहा।
अर्थात मैंने उन सभी मार्गों का त्याग कर दिया आश्रम का त्याग करने के साथ ही, जो दूसरों के द्वारा निर्मित हैं, जिनके ठेकेदार और सदस्य स्वयं माफियायाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, भक्ति और स्तुति-वंदन में लिप्त हैं, लेकिन ढोंग कर रहे हैं ईश्वर या गुरु की भक्ति का।
मैंने हर उस समाज से स्वयं को अलग कर लिया, जो माफियाओं और देश के लुटेरों की गुलामी को अपना सौभाग्य मानता है, लेकिन ढोंग करता है ईश्वर/अल्लाह या गुरु की भक्ति का।
मैंने हर उस पार्टी, संगठन, संस्था, सम्प्रदाय, सरकार से स्वयं को अलग कर लिया है, जो माफियाओं और देश के लुटेरों की भक्ति में खोये हुए हैं, लेकिन दूसरों को धार्मिकता, नैतिकता और सात्विकता का पाठ पढ़ाते फिर रहे हैं।
मैंने पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास करने वाले उन सभी पंथों, संप्रदायों, संगठनों से स्वयं को मुक्त कर लिया है, जो माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी और चापलूसी में खोये हुए हैं।
सारांश यह कि मैं अब पूर्णतः अकेला हो गया हूँ सामाजिक रूप से। और यह मेरे जीवन का टर्निंग पॉइंट है। दूसरे शब्दों में कहूँ तो भाग्य-परिवर्तन।
और जब भाग्य-परिवर्तन होता है, तब आवश्यक नहीं कि सबकुछ अच्छा ही होता है। तब नयी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, नए सहयोगी और मित्र जुडते हैं और साथ ही बढ़ते हैं आलोचक और शत्रु। क्योंकि अब विरोधी किसी एक सम्प्रदाय के नही होते, लगभग सभी सम्प्रदाय के हो जाते हैं।
इसीलिए बाधाएं बढ़ जाती है, आर्थिक समस्याएँ बढ़ जाती हैं और सबसे बड़ी बात यह कि अपनी समस्याओं को सोशल मीडिया पर भी नहीं शेयर कर सकता। क्योंकि सहायता करने वालों से कई गुना अधिक हो चुके होते हैं विरोध, आलोचना और निंदा करने वाले। ऐसे लोगों की संख्या बढ़ जाती हैं, जो यह देखकर खुश होते हैं कि माफियाओं और लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने वालों की आलोचना करने वाला व्यक्ति आज कितना अकेला हो गया है।
और यह राह मैंने स्वयं चुनी है, क्योंकि माफियाओं और लुटेरों की चाकरी और गुलामी करके स्वयं को धन्य मानने वालों का समाज, संस्था, सम्प्रदाय, पंथ और सरकार मुझे रास नहीं आते।
और हाँ मैं नास्तिक भी नहीं हूँ।