मंदिरों और मस्जिदों में उमड़ने वाली भीड़ भीरुओं की होती है

मंदिरों और मस्जिदों में जिनकी तुम्हें भीड़ मिलेगी, वे अक्सर भीरु लोग हैं, डरे हुए लोग हैं, घबड़ाए हुए लोग हैं। डर के कारण उन्होंने घुटने टेक दिए हैं।
किसी प्रेम में वे नहीं झुके हैं, किसी प्रार्थना में नहीं झुके हैं, भय के कारण उनके घुटने झुक गए हैं। भय के कारण उनके ओंठों से मंत्र बुदबुदाए जा रहे हैं।
कल रात मैं एक कहानी पढ़ रहा था—
ईश्वर ने दुनिया बनाई। अलग—अलग जातियां बनाईं।
हिंदुओं से पूछा: तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा: गायत्री मंत्र। जैनों से पूछा: तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा: नमोकार मंत्र। मुसलमानों से पूछा: तुम क्या चाहते हो? उन्होंने कहा: कुरान।
ईसाइयों से पूछा: तुम क्या चाहते हो? ऐसे वह पूछता गया अलग—अलग लोगों से, अलग—अलग देशों से, अलग—अलग जातियों से। और सबसे आखिरी में बनाया उसने अमरीकन। पूछा: तुम क्या चाहते हो। उसने कहा: डालर! ईश्वर थोड़ा हैरान हुआ।
उसने कहा: देखो, तुम्हारे सामने ही किसी ने गायत्री, किसी ने गीता, किसी ने कुरान, किसी ने बाइबिल, किसी ने तालमुद, किसी ने नमोकार, मंत्र, तंत्र, यंत्र, ध्यान, प्रार्थना, पूजा, ये सब चीजें मांगी—
और तू मांगता है डालर! अमरीकन ने कहा: फिक्र छोड़ो, सिर्फ डालर मुझे चाहिए और सब मंत्रत्तंत्र जानने वाले लोग अपने—आप डालर के पीछे चले आएंगे।
वैसा ही हुआ भी है। सारी दुनिया अमरीका की तरफ भागी जा रही है। अब काबा में काबा नहीं है और काशी में काशी नहीं है। काशी—काबा के सब पंडित—पुरोहित तुम्हें कैलिफोर्निया में मिलेंगे!
भयभीत आदमी अगर भय के कारण गायत्री भी मांग ले तो उसकी गायत्री खरीदी जा सकती है। भय के कारण अगर कोई भगवान का नाम लेता हो तो उसका भगवान भी खरीदा जा सकता है। क्योंकि भयभीत मूलतः लोभी होता है। लोभी ही भयभीत होता है।
लोग प्रार्थनाएं क्या कर रहे हैं मांगते क्या हैं प्रार्थना में? यही कि और धन दे, कि और पद दे, कि और प्रतिष्ठा दे! संसार ही मांगते हैं। जाते परमात्मा के पास हैं, परमात्मा को छोड़ कर और सब मांगते हैं।
यहां तुम्हारे त्यागी—विरागी भी मांग रहे हैं। और मांगने वालों को परमात्मा की संपदा नहीं मिलती। मालकियत चाहिए! अपने भीतर भिखमंगापन मिटना चाहिए।
जीवन का गणित बहुत अदभुत है। जो मांगता है, उसे नहीं मिलता। जो नहीं मांगता उस पर एकदम वर्षा हो जाती है।
जो तोड़े यह तिलिस्म ऐ दोस्त!…यह भिखमंगेपन का जो जादू तुम्हें घेर लिया है, यह माया जो तुम्हें घेर ली है, जो तोड़ दे…ऐ दोस्त! गंजीना उसी का है। खजाना उसका ही है।
खजाना दूर भी नहीं, खजाना पास ही है। मगर डुबकी लगाने का साहस…।
और ऐसा नहीं है कि डुबकी लगाने में तुम्हें कुछ मीलों डुबकी लगानी है—डुबकी लगाते ही मिल जाता है। डुबकी लगाने की ही बात है।
-ओशो
सपना यह संसार–(प्रवचन–05)
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