क्यों असफल हो जाते हैं महात्माओं के जागृति अभियान ?
क्यों असफल हो जाते हैं महात्माओं के जागृति अभियान और धूर्त-मक्कार राजनेताओं के गप्प अभियान क्यों सफल हो जाते हैं ?
संभवतः ऐसा होने का प्रमुख कारण है स्वार्थपूर्ण विवशता। यदि समाज स्वार्थ और लोभ में अंधा न होता, तो महात्माओं के जागृति अवभियान अवश्य सफल होते।
आप में से बहुत से विद्वान कहेंगे कि महात्मा गांधी का जागृति अभियान सफल रहा, तभी तो सारा देश महात्मा गांधी के साथ खड़ा हुआ और अंग्रेजों को भागना पड़ा।
बहुत से विद्वान कहेंगे कि गौतम बुद्ध का जागृति अभियान सफल हुआ, मोहम्मद का जागृति अभियान सफल हुआ, चार्वाक का जागृति अभियान सफल हुआ, जीसस का जागृति अभियान सफल हुआ, इसलिए बहुत से लोग बौद्ध बने, मुसलमान बने, नास्तिक बने, ईसाई बने।
लेकिन मैं कहूँगा कि जागृति अभियान किसी का भी सफल नहीं हुआ, सभी जो कुछ भी बने वह स्वार्थ, लोभ, भय के कारण ही बने।
जितने भी गिरोह आज आस्तित्व में हैं पंथ, मजहब, धर्म, संप्रदाय, राजनैतिक पार्टियों के नाम पर और जितने भी उनके अनुयायी और भक्त हैं, वे सभी उस भीड़ की तरह हैं, जो किसी स्वार्थवश, लोभ या भयवश एकत्रित हो जाती है। और ऐसी भीड़ को जागृत भीड़ तो कभी कह ही नहीं सकते और होती भी नहीं है जागृत।
इतिहास साक्षी है कि भीड़ और समाज कभी भी जागृत नहीं हुए। जागृत केवल कोई व्यक्ति होता है बाकी सभी बनी बनाई पटरियों पर भेड़चाल चलते हैं। और समाज जागृत व्यक्तियों को तब तक स्वीकार नहीं करता, जब तक जागृत व्यक्ति लाश में नहीं बदल जाता।
यही कारण है कि गुरुओं की शिक्षा, महात्माओं की शिक्षा, जाग्रत व्यक्तियों की शिक्षा केवल किताबी उपदेश बनकर रह जाते हैं, व्यावहारिक कभी हो नहीं पाते।
यही कारण है कि समाज यम-नियम, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, भजन-कीर्तन, स्तुति-वंदन को धर्म मानकर जीने लगता है और वास्तविक धर्म से अनभिज्ञ रह जाता है।
यही कारण है कि अपराधी, लुटेरे, माफिया सत्ता पर आसीन हो जाते हैं और ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, देशभक्त लोग असहाय किसी कोने पर अछूत की तरह तिरस्कृत पड़े नजर आते हैं।
यदि मेरा विश्वास न हो, तो अपने समाज पर नजर डालिए ?
क्या आपका समाज आपने गुरुओं, धार्मिक ग्रन्थों, जागृत व्यक्तियों की शिक्षाओं का ही अनुसरण कर रहा है, या केवल स्तुति=वंदन, नामजाप, भजन-कीर्तन करते हुए माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी कर रहा है ?
~ विशुद्ध चैतन्य