जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो ?

मैंने अपने जीवन में एक गाली जो सबसे अधिक सुनी, वह है;
“जिस थाली में खाते हो, उसी में छेद करते हो ?”
और संभवतः यह गाली माँ-बहन की गाली देने और सुनने कई गुना अधिक अपमानित करने वाली गाली है।
संभवतः यह गाली देशद्रोही होने, अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी, गुलामी और चापलूसी करने से कई गुना अधिक अपमानित करने वाली गाली है।
यही कारण है कि लोग देश को लूटने और लुटवाने वालों की चाकरी और गुलामी करके स्वयं को धन्य मानते हैं, सपरिवार गौरवान्वित होते हैं। जबकि माफियाओं और देश के लुटेरों की दी हुई थाली और कटोरे में छेद करने की कल्पना भी नहीं कर सकते। भले उनका आका पूरे देश में छेद करता फिर रहा हो सांप्रदायिक द्वेष और घृणा फैलाकर, दंगे-फसाद करवाकर, मीडिया पर साम्प्रदायिक डिबेट करवाकर। भले उनका आका देश मे छेद कर रहा हो जंगलों को नष्ट करवाकर, खेतों और जल संसाधनों को नष्ट करवाकर कंक्रीट के जंगल खड़े करवाकर।

प्रकृति के जितने निकट होते हो, उतने दूर हो जाते हो मूरखों से
यह धारणा भी थोपी हुई है कि शहरी लोग, पढे-लिखे लोग, बड़े बड़े पदों पर आसीन लोग, विश्वविख्यात लोग समझदार, विवेकवान, दयालु, दानी, करुणा से युक्त और परोपकारी होते हैं। वास्तविकता बिलकुल विपरीत होती है। जो जितना प्रसिद्ध होता है, जो जितना धनवान होता है, जो जितना अधिक शिक्षित और शास्त्रों का ज्ञाता होता है, जो जितना अधिक वेद, पुराण, कुरान, बाइबल पढ़ता या पढ़ाता है, वह उतना अधिक क्रूर, अमानवीय, असभ्य और अशिक्षित होता जाता है। निम्न तस्वीर प्रमाण है:

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