कंजूस का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए

शास्त्र कहते हैं कंजूस, राजा, वेश्या, शराब बेचने वाले का दिया भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
लेकिन कोई नहीं बताता कि शास्त्र ऐसा क्यों कहते हैं ?
क्या कोई कंजूस है या राजा है या वैश्या है तो वह अछूत हो गया ?
यदि हम इसे गहराई में जाकर समझने का प्रयास करें तो पता चलता है कि भारतीय ऋषि न केवल आध्यात्मिक स्तर पर उन्नत थे, वे मनोविज्ञान व उसके प्रभाव से भी भली-भाँती परिचित थे |
मैं जब छोटा था करीब नौ-दस साल का तब से मैं लोगों के भावों के प्रति बहुत ही संवेदनशील हो गया था | यदि खाते समय मुझे पापा से डांट पड़ती थी किसी बात पर तो खाना खिलाया नहीं जाता था….
एक दिन मुझे पापा ने एक परिवार के घर रहने के लिए भेज कि वहीँ जाकर दो तीन दिन रह लो और उनके घर के काम में हाथ बंटा दिया करना | मैं और मेरी छोटी बहन उनके घर चले गए | उनका एक ही बेटा था जो मेरी ही उम्र का था तो उसके पास दुनिया भर के खिलौने थे जिसे देखकर हम सोचते थे कि भगवान ने इसको कितने सारे खिलौने दिलवा दिए और हमारे पास एक भी नहीं है… तो सारा दिन खेलते हुए गुजर जाता था पता नहीं चलता था |
लेकिन समस्या होती थी खाते समय | क्योंकि आंटी यह पूछती थी कि कितनी रोटी खाओगे ? तो हमें समझ में ही नहीं आता था कि क्या बोलें | क्योंकि हमने रोटी खाते समय कभी गिनी ही नहीं थी और न ही हमारी मम्मी ने कभी रोटी गिनकर खिलाई थी… (यह और बात है कि बाद में समझ में आया कि दिल्ली में फ़्लैट खरीदने के लिए रोटियां गिननी ही पड़ती है )…
तो हम दोनों भाई बहन अंदाजे से बोल देते थे कि पांच रोटी खायेंगे या छः खायेंगे | तो वे छूटते ही कहती, “अरे देखो तो इनको !!! लंगर में आये हुए हो क्या ? इतनी साड़ी रोटी तो हम तीन लोग मिलकर भी नहीं खा सकते….!!!”
हम कहते कि ठीक है जो ठीक लगे वही दे देना | तो जब खाना आता तो दो रोटी या ढाई रोटी मिलती और रोटी भी इतनी छोटी छोटी होती थी जितनी हमारे गाँव में कचौड़ी या आलू की पकौड़ी होती थी | और पतली इतनी होती थी कि कागज़ से कटिंग निकाली हुई से लगती थी | हम कहते कि और चाहिए तो कहती, “महीने भर में तुम लोग हमें सड़क पर ले आयोगे अगर इसी तरह ठूंस ठूंस कर खाओगे तो…”
दो दिन बाद ही वहां से हम वापस घर आ गए और फिर उन्होंने बहुत ले जाने की कोशिश की हम नहीं गए |
यह कहानी मैंने अपने ही जीवन के अनुभव से सुनाया जो कि एक कंजूस की मनःस्थिति को बताता है | अब जरा सोचिये जो व्यक्ति इस मानसिकता के साथ आपको खिला रहा हो क्या वही भाव सूक्ष्म तरंगों के साथ उस भोज्य पदार्थ पर नहीं जा रहा होगा ?
और जब आप उस भोजन को खाते हैं तो आपको कब्ज होना निश्चित है क्योंकि उस भोजन में रोकने का भाव था यानि कि खिलाने वाले का भाव उस भोजन को रोकने का था जो वह आपको विवशता में दे रहा है | इसलिए इस तरह के लोगों के हाथ का खाना कभी भी स्वास्थ्यवर्धक नहीं हो सकता |
राजा के अन्दर यह भाव हो सकता है कि आप को भोजन देकर वह आप पर कोई उपकार कर रहा है, इसलिए वह भोजन भी शुभ नहीं है | लेकिन मेरा मानना है कि यदि राजा शुभ भाव से भोजन दे तो हानि नहीं है |
वैश्या के हाथ का भोजन इसलिए शुभ नहीं माना जाता क्योंकि उसकी कमाई वासनायुक्त होती है | लोगों के लिए वह मात्र वासना पूर्ति का साधन मात्र होती है और वह उसी नकारात्मक उर्जा के प्रभाव में रहती है इसलिए उसके हाथ का भोजन मानसिक अशांति का कारण बनता है |
सदैव स्मरण रखें:
यदि आप किसी को भोजन न करवाना चाहते हों तो न करवाएं | लेकिन दुर्भावना के साथ केवल दिखावे के लिए भोजन करवाकर दूसरों का अहित न करें |
– विशुद्ध चैतन्य
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