नव संन्यास भविष्य के अत्याधुनिक मौलिक संन्यास की आधारशिला
एक है परंपरागत संन्यास जिसमें व्यक्ति किसी आश्रम, किसी संस्था, किसी पंथ की मान्यताओं, परम्पराओं को ढोने के लिए बाध्य हो जाता है और मार्केटिंग एजेंट बनकर रह जाता है।
और दूसरा है नव संन्यास जिसकी नींव रखी श्री रजनीश (ओशो) ने।
पारंपरिक संन्यास विश्व के लगभग सभी देशों से लुप्त हो चुका है और भारत में लुप्त होने के कगार पर पहुँच चुका है। क्योंकि पारंपरिक संन्यास का महत्व तभी तक था, जब तक समाज था, संयुक्त परिवार था। अब ना तो समाज कहीं दिखाई देता है, ना ही संयुक्त परिवार। अब या तो गिरोह दिखाई पड़ते हैं पार्टी, संगठन, संस्था, समाज के नाम पर या फिर नेताओं, अभिनेताओं, बाबाओं, पार्टियों के पीछे आँख बंद कर दौड़ती भीड़ दिखाई पड़ती है। श्री राम की प्रतिमा के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह प्रत्यक्ष उदाहरण है सभी के सामने कि कैसे शंकरचार्यों को हाशिये पर धकेल दिया गया वैश्यों और शूद्रों के द्वारा।
इसलिए पारंपरिक संन्यास भी अब व्यावसायिक साधू-समाज के मार्केटिंग एक्ज़ेक्यूटिव की पदवी से अधिक और कुछ नहीं रह गया।
नव संन्यास का उदय हुआ ओशो के माध्यम से। नव संन्यास के संन्यासी परम्पराओं को ढोने की बजाय मौलिकता को महत्व देंगे। नव संन्यास के संन्यासी अब वैसे जिएंगे, जैसा वे जीना चाहते हैं।
नव संन्यास के संन्यासी जागृत होंगे। नव संन्यास के संन्यासी ईश्वर को नहीं, स्वयं को खोजेंगे।
ओशो ने तो यही चाहा था अपने संन्यासियों से, बाकी ओशो संन्यासी क्या करते हैं वह उनपर है। मैंने तो यही देखा है कि ओशो संन्यासी भी अब ध्यान, जपनाम पर अटक कर रह गए। वही सब कर रहे हैं जो पारंपरिक संन्यासी करते आ रहे हैं। इसीलिए मैंने ओशो संन्यास नहीं लिया।
ओशो संन्यासी ना होते हुए भी मैं ओशो को सुनना और पढ़ना पसंद करता हूँ, क्योंकि वे जो कुछ कहते हैं, उनसे मैं हमेशा सहमत रहता हूँ।
आश्रम त्यागने के बाद मेरे पास किसी अन्य आश्रम में जाने का विकल्प था, किसी परिवार के साथ रहने का विकल्प था। लेकिन एक विकल्प और था कि मैं बिलकुल ऐसी जगह चला जाऊँ, जहां मैं एकांत में जी सकूँ।
तो मैंने एकांत में जीने का विकल्प चुना। भले जमीन मेरी अपनी नहीं है, लेकिन फिर भी मैं उसपर किचन गार्डन बना रहा हूँ। यदि भविष्य में कभी एक बीघा या एक एकड़ भूमि मिलती है तो उसपर मल्टीफ़ार्मिंग शुरू करूंगा।
क्योंकि भविष्य के संन्यासी ऐसे ही होंगे। भविष्य के संन्यासियों के पास अपनी खेत होगी। भविष्य के संन्यासी अत्याधुनिक तकनीकी से युक्त होंगे। भविष्य के संन्यासी किसी पार्टी, नेता, अभिनेता के अधीनस्थ नहीं होंगे और ना ही किसी नेता, पार्टी या सरकार के पालतू होंगे।
भविष्य के संन्यासी आत्मर्निभर होंगे इसलिए उन्हें कोई उद्योगपति, पूंजीपति, सरकार, पार्टी, या नेता अपना गुलाम नहीं पाएंगे।
और सबसे बड़ी बात यह कि भविष्य के संन्यासी ना तो हिन्दू होंगे, न मुस्लिम, न सिक्ख, न ईसाई, ना जैन, न बौद्ध, न कॉंग्रेसी, ना भाजपाई, न सपाई, ना बसपाई, न वामपंथी, ना दक्षिणपंथी, ना माओवादी, ना आओवादी, ना जाओवादी, ना गांधीवादी, ना गोडसेवादी, ना मोदीवादी, ना ममतावादी, ना राहुलवादी, ना दलितवादी, ना सवर्णवादी….ना ही अन्य कोई वादी।
भविष्य के संन्यासी मौलिक होंगे, अपनी और दूसरों की मौलिकता, निजता और स्वतन्त्रता को महत्व देंगे ना कि परतंत्रता को।
~ विशुद्ध चैतन्य