गुरुओं की आवश्यकता क्यों है ?

मैंने कई लोगों के घरों में देखा है एक से अधिक गुरुओं की तस्वीरें लटकी हुईं हैं दीवारों पर। कई देवी-देवताओं की तस्वीरें भी लगी हुई होती हैं। और कुछ के घरों में कई नेताओं और अभिनेताओं की तस्वीरें भी दीवारों पर फ्रेम की हुई मिलती हैं।
तो प्रश्न उठता है कि गुरुओं की आवश्यकता क्यों है इन्हें ?
जितने गुरुओं की तस्वीरें लगा रही हैं दीवारों पर, उन गुरुओं से कोई प्रेरणा लेते हैं ये लोग ?
शायद कोई भी व्यक्ति किसी भी गुरु से कोई प्रेरणा नहीं लेता। केवल उन्हें पढ़ता है, सुनता है टाइम पास करने के लिए और फिर निकल पड़ता है माफियाओं और लुटेरों की चाकरी, गुलामी और चापलूसी करने। क्योंकि दो वक्त की रोटी के लिए धन वे ही देते हैं, कोई गुरु नहीं।
तो फिर प्रश्न उठता है कि गुरुओं की आवश्यकता क्यों है, जब चाकरी और गुलामी करना है माफियाओं और देश के लुटेरों की ?
सत्य तो यह है कि इंसान जिन गुरुओं को पूजने या मानने का ढोंग कर रहा होता है, वह इसलिए नहीं कि उनसे कोई प्रेरणा या शिक्षा मिल रही है। बल्कि केवल इसलिए क्योंकि यह मान्यता है कि गुरुओं का आशीर्वाद मिल जाये, तो मनोकामननाएं पूर्ण हो जाती है।
बड़े से बड़े अपराधियों के भी आराध्य गुरु होते हैं, आराध्य ईश्वर/अल्लाह होते हैं। बड़े से बड़े अपराधियों की भी मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं उनके गुरुओं और ईश्वर के आशीर्वाद से।
कई बड़े अपराधी करोड़ों का चुना लगा कर अपने गुरु और ईश्वर को कमीशन चढ़ा देते हैं। जिससे खुश होकर गुरु और ईश्वर उन्हें देश से फरार होकर विदेश में सेटल होने की व्यवस्था कर देते हैं। गुरु और ईश्वर उन्हें अदृश्य कर देते हैं, ताकि पुलिस, सीबीआई, ईडी उन्हें देख ना पाएँ और वे सहजता से विदेश गमन कर सकें।
देखा जाये तो गुरु और ईश्वर विशेष सुरक्षा कवच होते हैं अपराधियों, माफियाओं और देश के लुटेरों के। इसीलिए जो जितना बड़ा अपराधी होता है, वह उतना ही अधिक भक्त और पुजारी बना फिरता है। अपराधी जानता है कि गुरु और ईश्वर की कृपा के बिना वह महान अपराधी बन ही नहीं सकता।
सारांश यह कि गुरुओं की शिक्षाओं से किसी का कोई सम्बन्ध नहीं होता। गुरु होते हैं केवल पूजने के लिए, स्तुति-वंदन करने के लिए, नामजाप करने के लिए और गुरुओं का आशीर्वाद लेकर माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने के लिए। यही कारण है कि सबके अपने अपने गुरु हैं और सभी के गुरु इतने शक्तिशाली होते हैं कि पुलिस, ईडी, सीबीआई से अपने शिष्यों, भक्तों की रक्षा करते रहते हैं।
यह और बात है कि प्रायोजित महामारी से आतंकित होकर दुनिया के सभी गुरु और ईश्वर/अल्लाह फरार हो जाते हैं। और प्रायोजित महामारी का संकट टलते ही फिर आ बैठते हैं मंदिरों, दरगाहों, आश्रमों में चन्दा, कमीशन और चढ़ावा वसूलने।
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