मैं एकाँकी क्यों बन गया ?
ऐसा नहीं है कि मैंने दूसरों के साथ रहने या दूसरों को अपने साथ रखने का प्रयास नहीं किया। ऐसा भी नहीं है कि मैं कभी किसी और के साथ नहीं रहा और शुरू से ही एकाँकी जीवन जिया।
लेकिन दूसरों ने ही मुझे समझाया कि मैं उनमें से नहीं हूं, किसी अन्य ग्रह से आ टपका हूं इस धरा पर गलती से।
दूसरों का व्यवहार मुझे विश्वास दिलाता गया कि मेरा व्यवहार बिलकुल अलग है उन लोगों से। बचपन से लेकर आजतक कोई ऐसा नहीं मिला, जिसे मेरे विचार और मेरे आचरण बिना किसी शर्त स्वीकार्य हुआ हो।
जब भी कुछ करने का मन बनाया, तुरंत कोई ना कोई गुरु प्रकट हो जाता है और कहता है कि तुम गलत कर रहे हो। हम सिखाएंगे कि कैसे क्या करना है, कैसे खाना है, कैसे सोना है, कैसे खेती करना है, कैसे बर्तन मांजना है….
और जब मुझे समझ में आ गया कि मुझे कुछ नहीं आता, तो मैं अब कुछ नहीं करता।
अब लोग कहते हैं कि कुछ करते क्यों नहीं ?
अब जब मुझे कुछ आता ही नहीं, तो करूं क्या ?
पहले भ्रम में था कि मुझे लिखना आता है। ढेरों आर्टिकल लिखने लगा। लेकिन फिर लोगों ने समझाया कि लिखना छोड़ दो, तुम्हें लिखना भी नहीं आता। जब भी लिखते हो माफियाओं की गुलाम भेड़ों और गीदड़ों की भावनाएं आहत हो जाती हैं और सबको अपना शत्रु बना लेते हो। आश्रम से ही बहिष्कृत होना पड़ता है लिखने के कारण।
और अब जब पूरी तरह से विश्वास हो गया कि मैं इस ग्रह का प्राणी हूं ही नहीं और ऐसा मुझे कुछ भी नहीं आता, जो इस ग्रह के प्राणी स्वीकार सकें, तो एकांकी जीवन चुना। अब मैं किसी के साथ नहीं रहना चाहता।
दुर्भाग्य देखिए मेरा कि मेरा जीवन साथी भी इस दुनिया में नहीं आया। कम से कम एक तो होता मेरा कोई अपना, जो मुझे सुधारने की बजाय सहयोगी बनता ?
बुरे से बुरे लोगों का, लुटेरों का, माफियाओं का, उठाईगिरों का, जुमलेबाजों का, जेबकतरों का, ढोंगी पखांडियों का, दिन में चार बार परिधान बदलने वालों का परिवार, सहयोगी, समर्थक और फाइनांसर होते हैं और वे उसे सुधारने के चक्कर में नहीं पड़ते। बल्कि उनकी जय-जय करते हैं, स्तुति वंदन करते हैं। केवल इसलिए क्योंकि वे सब इसी ग्रह के प्राणी हैं, मेरी तरह परग्रही नहीं।
यदि मेरे साथ मेरे ग्रह का कोई साथी भी इस धरा पर टपका होता गलती से, तो वह मेरा सहयोगी, हितैषी होता और मुझे सिखाने की बजाय मेरे उद्देश्यों को सफल बनाकर कंधे से कंधा मिलाकर साथ खड़ा होता।
खैर अब ईश्वर ने मुझे अजनबियों से भरे ग्रह में टपका ही दिया है, तो कुछ सोचकर ही टपकाया होगा। और अब जब तक वापस बुलावा नहीं आता, एकांकी जीवन ही जीना है।
आशा करता हूं कि जल्दी ही अपने ग्रह में वापस लौट पाऊंगा और तब मुझे मेरे अपने लोग मिलेंगे। निश्चित ही वे मुझसे मिलकर बहुत खुश होंगे और पूछेंगे कि जिस दुनिया में तुम गए थे, वह कैसी है ?
और मैं बताऊंगा कि गुलामों की दुनिया है वह और मुझे एकाँकी जीवन जीना पड़ा। वहां के लोग माफियाओं और लुटेरों की चाकरी, गुलामी और चापलूसी करना अपना सौभाग्य मानते हैं। वहां के लोग गुरुओं की शिक्षाओं को आत्मसात करने की बजाए, उनकी प्रतिमाएँ स्थापित करवाना, स्तुति वंदन, पूजा, अर्चना और नामजाप करना धर्म मानते हैं। वहां के लोग रिश्वतखोरी, कालाबाजारी, घोटाले करने वालों को बहुत ही सम्मान देते हैं और उन्हें अपना आदर्श नेता और संरक्षक मानते हैं। झूठ, विश्वासघात, हेराफेरी, चापलूसी, चाटुकारिता को विशिष्ट योग्यता मानते हैं राजनीति में प्रवेश करने के लिए।
तो बहुत कुछ होगा बताने के लिए मेरे पास जब लौटूंगा एकांतवास से वापस अपने ग्रह।