भेड़चाल पर चलती है भीड़ बुद्धि विवेक का प्रयोग किए बिना

वर्षों लग जाते हैं इतनी सी बात समझने में कि हम दूसरों को नहीं बदल सकते, केवल स्वयं को बदल सकते हैं।
बुद्ध नहीं बदल पाए बौद्धों को।
जीसस नहीं बदल पाए ईसाइयों को।
नानक नहीं बदल पाए सिक्खों को।
कबीर नहीं बदल पाए कबीर पंथियों को।
ओशो नहीं बदल पाए ओशो संन्यासियों को।
प्रभात रंजन सरकार नहीं बदल पाए आनंदमार्गियों को।
आज उपरोक्त सभी गुरुओं के अनुयायी नतमस्तक होकर माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी और चापलूसी करके स्वयं को धन्य मान रहे हैं। माफिया हांक रहे हैं इन्हें अपने इशारों पर और ये मूर्ख भक्ति, स्तुति वंदन और नाम जाप करके इस भ्रम में जी रहे हैं कि अपने गुरुओं के दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं।
भीड़ को बदला नहीं जा सकता, केवल हांका जा सकता है मवेशियों की तरह डरा कर, लालच देकर, जुमले सुनाकर, गुलाम मीडिया से झूठा प्रचार करवाकर, आतंक फैलाकर, सांप्रदायिक और जातिवादी द्वेष व घृणा फैलाकर।
भीड़ चाहे भक्तों की हो, चाहे समर्थकों की, चाहे विरोधियों की, भीड़ ही होती है। और भीड़ भेड़चाल पर चलती है बुद्धि विवेक का प्रयोग किए बिना।
इसीलिए समाज, पार्टी, परिवार की भीड़ से घिरा व्यक्ति अपनी विवेक बुद्धि का प्रयोग कर पाने में अक्षम हो जाता है।
दुनिया में जितने भी लोग जागृत हुए, चैतन्य हुए, अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग कर सत्य को देख और समझ पाने में सक्षम हुए, वे सभी भीड़ से दूर होने के बाद ही हो पाए।
दूसरों को बदलने में अपनी ऊर्जा नष्ट करने की बजाय, स्वयं को बदल लो और भीड़ और भेड़चाल से स्वयं को मुक्त कर कहीं दूर निकल लो। ताकि स्वयं को जान पाओ, ताकि समझ पाओ कि समाज और भीड़ जिस दिशा में दौड़ रही है, वह गुलामी और समस्त विश्व के सर्वनाश की ओर ले जाती है।
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