मुझमें और बाकी सभी पंथों के साधु-संन्यासियों में बहुत अंतर है

आजकल अचानक से ओशो छा गए हैं सोशल मीडिया पर। दिन भर ओशो के विचार और प्रवचन शेयर हो रहे हैं विभिन्न पेजों के माध्यम से। और यदि ध्यान दें, तो पाएंगे कि ओशो के जो भी विचार शेयर किए जा रहे हैं, वे उन विचारों से भिन्न नहीं है जो अन्य पंथों, संप्रदायों के गुरु कहते फिरते हैं।
जैसे कि ब्रह्मकुमारी, आनंदमार्गी, इस्कॉन, गायत्री परिवार व अन्य सिखाते आ रहे हैं कि मानव का जन्म भजन, कीर्तन, ध्यान, नामजाप और स्तुति-वंदन करते हुए माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी व गुलामी करने के लिए हुआ है। इसलिए यदि देश लूटा जा रहा है, देश के जंगलों को नष्ट किया जा रहा है, देश के जल संसाधन को माफिया अपने अधीन कर रहे हैं, जनता को बंधक बनाकर फर्जी सुरक्षा कवच चेपा जा रहा है…तो मौन हो जाओ और ध्यान करो, भजन करो, नाम जाप करो, मंदिरों में जाओ, तीरथों में जाओ, आश्रमों में जाओ और चढ़ावा चढ़ाओ, चादर चढ़ाव, चुनरी चढ़ाओ और भोजन, भजन, शयन के सिद्धान्त को अपनाकर मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जियो।
ओशो संन्यासी भी वही सब कर रहे हैं जो सदियों से चला आ रहा है….अर्थात ध्यान, भजन, नामजाप और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीते हुए माफियाओं और लुटेरों की चाकरी और गुलामी करना।
मुझमें और बाकी सभी पंथों के साधु-संन्यासियों में बहुत अंतर है, इसलिए मैं सभी से भिन्न हूँ।
ओशो से बहुत कुछ सीखा मैंने इसलिए ओशो के वक्तव्यों, प्रवचनों को भी शेयर करता रहता हूँ। भले मैं उनका संन्यासी नहीं हूँ, लेकिन मैं ओशो द्वारा दिये ज्ञान को आत्मसात कर चुका हूँ। और इसीलिए मैं ओशो संन्यासियों से भी अलग हूँ।
ओशो ने यदि ध्यान करने के लिए कहा था, तो इसका अर्थ यह नहीं था कि आलीशान ऐसीवाले कमरों में बैठकर ध्यान करना। ध्यान से ओशो का तात्पर्य था कि जो भी काम तुम करो, उसे होशपूर्ण करना। चाहे तो चाय पियो या दारू, चाहे शाकाहार करो या मांसाहार, चाहे नौकरी करो या व्यवसाय…..जो कुछ भी करो उसे होश में करना।
खैर ओशो ने क्या कहा था क्या नहीं वह मुझसे बेहतर ओशो संन्यासी जानते हैं। मैं तो केवल इतना कहना चाहता हूँ कि मैं यह समझ चुका हूँ कि समाज जिन गुरुओं को अपना आदर्श मानता है, जिनके पीछे लाखों लोगों की भीड़ दौड़ती है….वे सभी यही सीखा रहे हैं कि ध्यान करो, भजन करो, नाम जाप करो और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीते हुए चाकरी करो, गुलामी करो, भक्ति करो माफियाओं और देश के लुटेरों की।
और जब मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीना ही मोक्ष और स्वर्ग का मार्ग है, तो फिर मैं क्या गलत कर रहा हूँ सिवाय इसके कि जो काम माफियाओं की गुलाम जनता, गुरु और साधु-संत नहीं कर रहे, वह मैं कर रहा हूँ। बाकी तो मैं भी उसी सिद्धान्त पर जी रहा हूँ जिसमें बाकी सारे दुनिया जी रही है।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
