मुफ़्त में कोई किसी को एक गिलास पानी भी नहीं पिलाता

बहुत बुरा लगता है जब कोई मुझे भिखारी, मुफ़्तखोर कहता है। और संभवतः उतना ही बुरा लगता होगा माफियाओं और देश के लुटेरों का गुलाम कहना उन्हें, जो यह मानकर जी रहे हैं कि उनका जन्म माफियाओं की चाकरी और गुलामी करने के लिए ही हुआ है।
मैं जानता हूँ कि मुफ़्त में कोई किसी को एक गिलास पानी भी नहीं पिलाता। इसीलिए लिखता हूँ प्रतिदिन और जो भी मुझे कुछ देता है, वह मुफ़्त में नहीं दे रहा। वह मेरे लेख पढ़ता है, मेरे विचारों को समझने का प्रयास करता है और जब उसे कुछ समझ में आने लगता है, तब वह कुछ न कुछ देता है।
लेकिन वे सभी लोग मुझसे बहुत बुरी तरह से नाराज हैं, जो धर्म और जातियों के ठेकेदारों, माफियाओं और देश के लुटेरों के नौकर, गुलाम या भक्त हैं। वे सभी इस भ्रम में जी रहे हैं कि वे देश व जनता की सेवा कर रहे हैं चाकरी, गुलामी और चापलूसी करके और मेरे जैसे स्वतन्त्र संन्यासियों से श्रेष्ठ, स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं। इसीलिए बड़ी सहजता से मुझे मुफ्तखोर, भिखारी कह देते हैं बिना यह विचार किए कि ना तो उन्होंने स्वयं किसी को मुफ्त में कुछ दिया है और ना ही उनके आकाओं ने।
लोग तो भगवान को भी मुफ़्त में कुछ नहीं चढ़ाते। सीधा सीधा बिजनेस करते हैं भगवान के साथ कि हमारा फलां काम करवा दो, तो इतने रुपए का प्रसाद चढ़ाऊंगा, या चादर/चुनरी चढ़ाऊंगा। और आप कहते हैं कि मुझे मुफ्त में खाने के लिए मिल जाता है ?
क्या आपने किसी को मुफ़्त में भोजन करवाया है, क्या आपने किसी की कोई सहायता या सेवा की है मुफ़्त में बिना कोई लोभ, स्वार्थ, शर्त या कामना के ?
यदि मुफ़्त में मुझ मिल रहा होता ना, तो अब तक मेरे पास भी राजनैतिक पार्टियों के नेताओं की तरह करोड़ों की संपत्ति खड़ी हो चुकी होती।
मेरी पहचान और कमाई मेरे लेखन से है फिर भी मेरी कलम किसी की गुलाम नहीं बिकाऊ और गुलाम पत्रकारों की कलम की तरह। मैं लिखता हूँ वह, जो चोट करता है भीतर तक। इसीलिए मुझे दान या सहयोग करने वालों की संख्या ना के बराबर है। मुझे इतना ही सहयोग मिल पाता है कि मैं अपना इन्टरनेट चार्ज करवा पाऊँ और दो वक्त की रोटी खा सकूँ चैन से। कोई रहने के लिए छत दे देता है और वह छत भी तभी तक रहती है, जब तक मेरे किसी लेख से उनकी भावना आहत नहीं होती।
मैंने बहुत प्रयास किया कि किसी प्रकार अपनी जमीन की व्यवस्था हो जाये, ताकि मुझे बार बार ठिकाना बदलना ना पड़े। लेकिन अभी तक व्यवस्था नहीं हो पायी।
क्यों ?
क्योंकि मेरी कलम चापलूसी नहीं करती, मेरी कलम किसी कि गुलामी नहीं करती, क्योंकि मेरी कलम बिकाऊ नहीं है, क्योंकि मेरी कलम किसी से डरती नहीं है।
और लोग मेरी सहायता शर्तों पर करना चाहते हैं। लोग कहते हैं हम तुम्हारी सहायता करेंगे, लेकिन तुम्हें वैसा जीना होगा जैसा हम चाहेंगे। और मुझे यह शर्त स्वीकार नहीं।
और आप लोग कहते हैं कि मैं मुफ्तखोर हूँ, भिखारी हूँ ?
अपने गिरेबान में झांककर देखिये ?
आप माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलाम हैं, दलाल हैं, चापलूस हैं, चाटुकार हैं….फिर भले किसी बड़े पद में बैठे अधिकारी, नेता, मंत्री हों, या व्यापारी, उद्योगपति हों, या फिर साधु-समाज के साधु-संत।
और गुलामों, दलालों, माफियाओं और लुटेरों के पीछे खड़े होकर जयकारा लगाने वालों को कोई नैतिक अधिकार नहीं किसी को भी भिखारी या मुफ्तखोर कहने का।
मेरी सहायता, सेवा या सहयोग केवल वही लोग करने का साहस कर सकते हैं, जिन्होंने अभी तक अपना ज़मीर गिरवी नहीं रखा है, जिन्होंने अभी तक अपना ईमान, स्वाभिमान गिरवी नहीं रखा है। जिन्होंने अभी तक गुलामी स्वीकार नहीं की है माफियाओं और देश के लुटेरों की और जो स्वार्थ और लोभ से ऊपर उठ चुके हैं। बाकी लोग केवल गाल बजा सकते हैं जयकारा लगा सकते हैं, मुझे गरिया सकते हैं, धमका सकते हैं, इसके अलावा और कुछ नहीं कर सकते।
~ विशुद्ध चैतन्य
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