धन के लिए दौड़ इंसान से सब सुख छीन लेता है
तेलगी अपने जीवन के अंतिम क्षणो तक यही मानता रहा कि वह देशभक्त है और उसने जो कुछ भी किया जनता की भलाई के लिए ही किया।
जब पुलिस अधिकारी तेलगी से कहता ही कि जो उसने हजारों करोड़ का घोटाला किया था, उन पैसों से सरकारें गरीब जनता के लिए अस्पताल, स्कूल, कॉलेज खुलवा सकती थी, उन पैसों से बेघरों की सहायता कर सकती थी।
तब तेलगी कहता है कि ये सब कागजी बातें हैं। मैं स्वयं गरीब घर में जन्म लिया, फल बेचकर और दूसरों के घरों से बचे हुए जूठन मांगकर अपने परिवार को पाल रहा था। तब सरकार कहाँ थी ?
तब तो मैंने कोई घोटाला नहीं किया था, तो फिर उन पैसों से मेरे परिवार की सहायता क्यों नहीं की थी सरकार ने ?
तेलगी के घोटाले से सरकार आर्थिक रूप से इतनी कमजोर हो गयी थी कि विरप्पन ने जब एक दक्षिण भारतीय अभिनेता का अपहरण कर 15 करोड़ की फिरौती मांगी थी, तब सरकार ने तेलगी पर दबाव बनाया कि वह 15 करोड़ दे अभिनेता को छुड़ाने के लिए।
तेलगी चाहता तो उन सभी नेताओं और अधिकारियों के नाम ले सकता था, जिनकी सहायता से उसने इतना बड़ा घोटाला किया था। जो शेयर होल्डर थे उसके पाप और अपराध की कमाई के। लेकिन उसने किसी बड़े लकड़बग्घे का नाम नहीं लिया।
“मैं शेर हूँ, क्योंकि मैं शिकार करता हूँ और इन लकड़बग्घों को उस शिकार से हिस्सा देता हूँ।” अब्दुल करीम तेलगी
तेलगी सही कहता था कि सरकारें, राजनैतिक पार्टियां और सरकारी अधिकारी… आदि सब लकड़बग्घे हैं जो शेर के द्वारा किए गए शिकार से मिले हिस्से पर पलते हैं।
और फिर एक दिन सारे लकड़बग्घे मिलकर शेर का शिकार कर लेते हैं और निकल पड़ते हैं नए शेर की खोज में।
क्या आपने अब्दुल करीम तेलगी पर बनी वेबसिरीज़ देखी है ?
तेलगी की जीवनी सिखाती है कि ऐसी कमाई सारा सुख चैन छीन लेती है, जो लकड़बग्घों (राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों) को कमीशन, रिश्वत, हफ्ता देकर कमाई जाती है। और एक दिन इन्हीं लकड़बग्घों का शिकार बन जाना पड़ता है।
आज किसानों के रास्ते पर कीले बिछाने वाले वही लकड़बग्घे हैं, जो किसानों के उत्पाद से अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं। जिन्हें पेंशन और वेतन भी किसानों और आम जनता की कमाई से मिले कमीशन (टैक्स) से ही मिलता है। बड़े उद्योगपतियों के टैक्स और कर्जे तो माफ हो जाते हैं, लेकिन किसानों और गरीब जनता को अपना खून निचोड़कर ना केवल अपना कर्जा और टैक्स चुकाना पड़ता है, बल्कि लकड़बग्घों को पालने के लिए चन्दा, दान, हफ्ता भी देना पड़ता है।
सारांश यह कि ऐसी कमाई करने का कोई लाभ नहीं, जो इंसान को कोल्हू का बैल बना दे, जो माफियाओं और देश के लुटेरे लकड़बग्घों का गुलाम बना दे। कमाई उतनी ही करिए, जिससे आप और आपका परिवार सुखी, संतुष्ट और समृद्ध जीवन जी सके। और यह तभी संभव होगा, जब परिवार अपनी भूमि पर अपने लिए कैमिकल मुक्त फल, सब्जियाँ और अनाज उगाना शुरू कर दे और दिखावे के लिए किए जाने वाले खर्चों पर लगाम लगाए।