जागृति अभियान दुनिया का सबसे असफल अभियान

जागृति अभियान एक ऐसा अभियान है, जो दुनिया का सबसे असफल अभियान माना जा सकता है।
जानते हैं क्यों ?
क्योंकि दुनिया को जगाने वाला मुर्गा कहलाता है और उसे मारकर ही दुनिया को चैन आता है।
क्योंकि जगाने वाले का लेगपीस सबसे स्वादिष्ट माना जाता है।
जगाने वालों का वही हश्र होता है, जो मुर्गों का होता है।
जगाने वालों को मारकर उनकी प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। फिर उन प्रतिमाओं को पूजने की प्रथा चलाई जाती है। प्रतिमाओं को पूजने की प्रथा एक बड़ा बाजार खड़ा करती है। और उस बाजार में अरबों खरबों का व्यापार होता है। और ग्राहकों की भीड़ से भरे व्यापारियों के बाजार में जागृत करने वाले का मूल संदेश खो जाता है। समाज तक पहुंचता है वैश्यों द्वारा गढ़ा हुआ संदेश।
और वह संदेश है: “मानव का जन्म स्तुति वंदन करने के लिए हुआ है। मानव का जन्म पूजा पाठ, रोज़ा नमाज, व्रत उपवास करने के लिए हुआ है। मानव का जन्म ध्यान, भजन, कीर्तन, नाद, कव्वाली करने के लिए हुआ है। मानव का जन्म उत्सवों में 24 घंटे डीजे बजाकर शोर करने के लिए हुआ है। मानव का जन्म माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने के लिए हुआ है। मानव का जन्म माफियाओं और देश के लुटेरों के लिए गुलाम पैदा करने के हुआ है। और जो ये सब कार्य करता है, वह महान कर्मवादी, नैतिक, सात्विक और धार्मिक माना जाता है। क्योंकि यही धर्म है और यही महान गुरुओं की शिक्षा और संदेश है मानव जाति के लिए।“
क्या वास्तव में यही धर्म है और यही संदेश दिया था गुरुओं ने ?
नहीं यह संदेश और शिक्षा वैश्यों के द्वारा फैलाई गई है, ना कि किसी चैतन्य, जागृत, बुद्ध व्यक्ति या गुरु के द्वारा दिया गया संदेश है।
डीजे के शोर से गूँज रहे गाँवों से नैतिक और धार्मिक लुप्त हो चुके हैं
गुरुओं के अनुयाई और पढ़ा-लिखा, आधुनिक, किताबी, धार्मिक समाज यही मानकर जी रहा है कि डीजे बजाकर शोर करने से ईश्वर प्रसन्न होता है और स्वर्ग/जन्नत में डीजे बजाकर शोर करने और करवाने वालों के नाम पर प्लाट रिज़र्व कर देता है।
जिस गाँव/देहात में डीजे का शोर सुनाई पड़े, समझ जाना उस गाँव/देहात से धर्म, धार्मिक, शिक्षित, समझदार समाज या तो लुप्त हो गया है, या फिर उनका वर्चस्व समाप्त हो गया है। और अब वहाँ पढ़े-लिखे डिग्रीधारी शहरी ज़ोम्बियों का वर्चस्व स्थापित हो चुका है।
गुलाम मानसिकता के भारतीयों ने जब से गुलाम और ज़ोम्बी पैदा करने की ज़िम्मेदारी उठाई है, समस्त भारत में ज़ोम्बियों का साम्राज्य नजर आने लगा है। संभवतः आज भारत में ऐसा कोई स्थान नहीं बचा, जहां शान्तिप्रिय लोग शांति से जी सकें।
गाँव/देहात तभी तक गाँव/देहात माना जाता है, जब तक वहाँ शान्तिप्रिय, शिक्षित, समझदार प्राणियों का समाज आस्तित्व में होता है। लेकिन जिस भी गाँव में डिग्रीधारी ज़ोम्बियों का प्रकोप फैला, गाँव से समझदार, शान्तिप्रिय लोगों का नामोनिशान मिटने लगा और गाँव रूपांतरित होकर शहर बन गया।
शहर अर्थात ऐसा चिड़ियाघर, जिसमें माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलाम डिग्रीधारी ज़ोम्बियों के पिंजरे (फ्लैट्स, अपार्टमेंट्स) पाये जाते हैं। और उन पिंजरों में रहने वाले ज़ोंबीज इतना खतरनाक होते हैं कि पूरा का पूय जंगल और पहाड़ हजम कर जाते हैं शाकाहारी विकास के नाम पर।
आस्था और श्रद्धा के शोषण के लिए स्थापित हुआ धर्म और आध्यात्म का बाजार
गुरुओं की शिक्षाओं को छिपाकर तीर्थों, धार्मिक स्थलों में विराजमान माफियाओं के गुलाम वैश्यों ने वह शिक्षा दी, जिससे धर्म के नाम पर एक बड़ा बाजार खड़ा हुआ और उस बाजार से वैश्यों और शूद्रों को लाभ हुआ।
धर्म और आध्यात्म के बाजार से वैश्यों को मुनाफा और शूद्रों को नौकरी मिली। वैश्यों और शूद्रों को मालामाल होते देख ब्राह्मण और क्षत्रियों ने भी वैश्य और शूद्र बन गए। अब ब्राह्मण और क्षत्रिय केवल लेबल बनकर रह गया, कर्म और गुणधर्म तो वैश्य और शूद्रों का अपना लिया।
और यही कारण है आज वैश्य और शूद्र छाए हुए हैं विश्व भर में और ब्राह्मण, क्षत्रिय और धर्म लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके।
अब साम्प्रदायिक, जातिवादी, पार्टीवादी लोग धार्मिक कहलाते हैं। अब गुलाम मानसिकता के लोग सभ्य और देशभक्त कहाते हैं। अब गुरुभक्ति के नाम पर केवल नाम जाप और स्तुति वंदन होता है। लेकिन गुरुओं के द्वारा दी गई शिक्षाओं का व्यवहारिक जगत में कोई योगदान नहीं दिखता।
और चूंकि आज तक समाज जागृत नहीं हो पाया, इसीलिए जागृति अभियान दुनिया का सबसे असफल अभियान माना जा सकता है।
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