भीख का कटोरा श्रेष्ठ या गुलामी का पट्टा ?

एक व्यक्ति नौकरी कर रहा है, एक व्यक्ति मजदूरी कर रहा है, एक व्यक्ति व्यवसाय कर रहा है, एक व्यक्ति भीख मांग रहा है और एक व्यक्ति संन्यासी है।
उपरोक्त में से कौन सही है और कौन गलत ?
यदि देखा जाये तो कोई भी सही नहीं है और कोई भी गलत नहीं है। सभी अपनी-अपनी परिस्थितियों और क्षमताओं के अनुसार जीवन-यापन कर रहे हैं।
लेकिन सबसे अधिक बोला जाने वाला डायलॉग है, “यदि कोई काम नहीं आता तो भीख का कटोरा पकड़ ले !”
और दूसरा डायलॉग है; “यदि अच्छे नम्बर नहीं आए तो भीख कटोरा लेकर भटकना पड़ेगा !”
अब फिर प्रश्न उठता है कि भीख का कटोरा थामना सही है, या फिर गुलामी का पट्टा ?
क्या समाज नैतिकता और धर्म के पक्ष में होता है ?
नहीं समाज का नैतिकता और धार्मिकता से कोई सम्बन्ध नहीं होता। क्योंकि समाज के पास अपनी कोई विवेक-बुद्धि नहीं होती। वह वही कर रहा होता है, जो उसे समाज, धर्म, जाति और राजनीति के ठेकेदार सीखा पढ़ा रहे होते हैं।
उदाहरण के लिए कुछ वर्ष पहले तक सती प्रथा का चलन था समाज में। जब राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाया, तो यही समाज उसके विरुद्ध हो गया। अंग्रेजों के सहयोग से राजा राम मोहन राय सती प्रथा पर अंकुश लगा पाये थे। और आज लोग कहते फिरते हैं कि सती प्रथा जैसी घृणित प्रथा अनपढ़ों, जाहिलों की प्रथा थी।
कुछ समाजों में देवदासी प्रथा का चलन आज भी है, भले अधिकांश लोग आज इसके विरुद्ध हों। लेकिन कभी यही देवदासी प्रथा बहुत ही सम्मानित प्रथा थी। जब किसी घर की लड़की को देवदासी के रूप में चुना जाता था, तब उसे लोग देवी स्वरूपा समझकर उसका सम्मान करके उसे विदा करते थे।
प्राचीनकाल में गुलाम खरीदना और बेचना बड़े सम्मान की बात थी और महंगे गुलामों का बड़ा सम्मान भी था समाज में। और आज भी गुलाम खरीदना, बेचना सम्माननीय माना जाता है। जैसे बिकाऊ विधायक, खिलाड़ी, नेता, अभिनेता, वोटर्स आदि का बड़ा सम्मान होता है।
आज माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी करने के लिए लाखों बच्चे दिन रात पढ़ाई करते हैं, कठिन से कठिन परीक्षाएँ पास करते हैं और फिर जब चुन लिए जाते हैं, तब समाचार पत्रों में उनकी चर्चा होती है। उनके माता पिता का सर गर्व से ऊंचा हो जाता है। और समाज में उन्हें बहुत मान-सम्मान मिलता है और कहा जाता है; बड़े किस्मत वाले हो जो माफियाओं और देश के लुटेरों ने तुम्हें अपने ही देश को लूटने लुटवाने के लिए अपना नौकर या गुलाम चुना।
तो समाज के लिए सही या गलत जैसा कुछ नहीं होता। केवल मान सम्मान मिलना चाहिए फिर ईमान, ज़मीर, जिस्म सब बेचने के लिए तैयार हो जाता है। अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों की गुलामी, चाटुकारिता करने के लिए तैयार हो जाता है।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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