कर्मफल जैसा कोई फल नहीं
कर्मफल का सिद्धान्त भी अब तर्क संगत नहीं रहा।
कहते हैं बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है और अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है।
और बुरा फल होता क्या है ?
बुरा फल अर्थात दरिद्रता, महामारी, सूखा, भुखमरी, बेरोजगारी, या फिर समाज/ सरकार का क्रोध/सजा भुगतना।
यदि यही बुरे कर्मों की सजा है, तो फिर प्रायोजित महामारी में बेरोजगार हुए लोगों ने कौन से बुरे कर्म किए थे ?
तो फिर प्रायोजित महामारी काल में जिनकी दुकाने और व्यापार ठप्प हुए उनहोंने कौन से बुरे कर्म किए थे ?
जिनके पारिवारिक सदस्य प्रायोजित महामारी, प्रायोजित सुरक्षा कवच और प्रायोजित इलाज के कारण बेमौत मारे गए, उनहोंने कौन से पाप कर्म किए थे ?
सुकरात, जीसस, गैलीलियो, मंसूर, पाश…. ने कौन से पाप कर्म किए तो जो मौत की सजा मिली ?
वहीं जिन्होंने प्रायोजित महामारी का आतंक फैलाकर, समस्त विश्व को बंधक बनाकर, प्रायोजित सुरक्षा कवच लेने के लिए विवश करके जनता को लूटा और लुटवाया, वे सभी ऐश्वर्य भोग रहे हैं। कौन से पुण्य कर्म किए थे उनहोंने ?
जो आज भी जनता को जुमले सुनाकर, नौटंकियाँ दिखाकर, अपनी कमाई छुपाकर जनता को लूट और लुटवा रहे हैं, उनहोंने कौन से पुण्य कर्म किए थे ?
सत्य तो यही है कि कर्म फल जैसा कोई फल नहीं होता।
यदि कर्म फल जैसा कोई फल होता, तो सबसे अधिक मेहनत करने वाला और ईमानदारी से जीवन यापन करने वाला मजदूर और किसान ऐश्वर्य भोग रहे होते और झूठ बोलकर, दूसरों को लूट और लुटवाकर जीवन यापन करने वाले दर बदर की ठोकरें खा रहे होते।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️