मैं स्वयं को माफियाओं के बिछाए जाल से मुक्त करने के अभियान में व्यस्त हूँ

लोग पैसा कमाने के लिए दौड़ रहे हैं और मैं भी कभी पैसा कमाने के लिए दौड़ रहा था। फिर एक दिन देखा कि जिनके गोदामों में पैसा सड़ रहा है, जो करोड़ों में नीलाम हो रहे हैं, जो पैसों के लिए ईमान, ज़मीर, जिस्म सब बेच कर स्विस बैंक के गोदामों में पैसा जमा कर रहे हैं, जो माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, चापलूसी और गुलामी कर रहे हैं….. वे भी पैसों के लिए ही दौड़ रहे हैं, तो मैंने पैसों के लिए दौड़ना बंद कर दिया। और जब पैसों के लिए दौड़ना बंद कर दिया, तो फुटपाथ पर आ गया।
फुटपाथ पर आने के बाद जाना कि पैसों के लिए दौड़ने वाले लोग उस भेड़चाल में दौड़ रहे होते हैं, जो माफियाओं द्वारा निर्मित है। ऐसी दौड़ जो इंसान को गुलाम और कोल्हू का बैल बनाकर रख देती है और व्यक्ति आजीवन पैसों की दौड़ से मुक्त नहीं हो पाता।
पैसों के लिए दौड़ना बंद करने के बाद जो सबसे महत्वपूर्ण बात समझ में आयी, वह यह कि अकेले रहना सीखना होगा। क्योंकि जैसे ही कोई दूसरा आपके जीवन में आएगा, वह आपको पैसों के लिए दौड़ने के लिए विवश करने लगेगा। रात दिन आपको ताने मारेगा यह कहकर बिना पैसों के दुनिया नहीं चलती।

ये वे लोग हैं, जो मोटरसाइकिल खरीदने के बाद पेट्रोल के लिए दौड़ने लगते हैं। ये वे लोग हैं, जो रसोई गैस खरीदने के बाद पेट्रोलियम गैस के लिए दौड़ने लगते हैं। चूल्हा बनाने के बाद पाँच किलो राशन के लिए दौड़ने लगते हैं। घर बनाने के बाद, बच्चे पैदा करने के लिए दौड़ने लगते हैं। और फिर आजीवन दौड़ते रहते हैं…
लेकिन मैं ऐसी मूर्खता नहीं करना चाहता, इसलिए अकेले रहना पसंद करता हूँ। मेरे लिए पैसा आवश्यक तो है, लेकिन पैसा कमाना जीवन का उद्देश्य नहीं है।
यदि एक संन्यासी को पैसा कमाने के लिए दौड़ना पड़े, तो फिर वह संन्यासी नहीं, गृहस्थ है। यदि एक संन्यासी को यह चिंता करनी पड़े कि कल पैसा कहाँ से आएगा, तो फिर वह संन्यासी नहीं, गृहस्थ है। और एक संन्यासी यदि गृहस्थों से घिरा रहे, तो फिर वह विवश हो जाएगा नौ दस लाख रुपए लेकर कथा करने के लिए। फिर वह विवश हो जाएगा तमाशा दिखाकर कमाने के लिए। क्योंकि लोग उसे विवश कर देंगे धंधा करने के लिए, माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, चापलूसी और गुलामी करने के लिए।
आज माफियाओं और देश के लुटेरों की चापलूसी, चाकरी और गुलामी करने के लिए बाध्य है साधू समाज। उनकी विवशता है चापलूसी करना, जय जय करना, स्तुति वंदन करना माफियाओं और देश के लुटेरों की। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो भूखों मरने लगेंगे। वे Dhruv Rathee या मेरी जैसी निर्भीकता नहीं ला पाएंगे आजीवन। क्योंकि धनाभाव का भय उन्हें विवश कर देता है।
मैंने फुटपाथों में रहना स्वीकार किया, कई-कई दिनों तक भूखे रहना स्वीकार किया, लेकिन चापलूसी और चाटुकारिता नहीं कर पाया किसी की भी। मैंने ढोंग-पाखंड और माफियाओं के विरुद्ध लिखना जारी रखा, भले आश्रम से बहिष्कृत होना पड़ा, भले मुझे आर्थिक सहयोग देने वालों ने साथ छोड़ दिया। मैंने कठिन से कठिन परिस्थिति को स्वीकार किया, बुरे से बुरे हालातों को स्वीकार किया। लेकिन अधर्म और ढोंग, पाखंड को ढोना स्वीकार नहीं किया।
मैं एक अलग व्यवस्था पर कार्य कर रहा हूँ और उस व्यवस्था को धरातल पर लाने के लिए धन की आवश्यकता भी है। लेकिन फिर भी धन के पीछे नहीं दौड़ रहा। मैं नहीं जानता कि धन कहाँ से आएगा, लेकिन इतना अवश्य जानता हूँ कि जैसे आज तक ईश्वर धन की व्यवस्था करता रहा, आगे भी होता रहेगा।
बहुत से लोग कहते थे कि यदि हम आर्थिक सहयोग नहीं करेंगे तो कैसे गुजारा करोगे ? बहुत से लोग कहते थे कि आश्रम से निकाल दिये गए तो फ्री में कौन खिलाएगा, कौन रहने के लिए देगा ?
पाँच महीने हो गए मुझे आश्रम छोड़े और मैं अभी भी ज़िंदा हूँ, शांति से रह रहा हूँ, खा रहा हूँ, पी रहा हूँ और निर्बाध लिख रहा हूँ। बिजली का बिल भर रहा हूँ, राशन खरीद रहा हूँ… सबकुछ हो रहा है बिना धन के लिए पीछे दौड़े।
क्योंकि जब आप स्वयं को समर्पित कर देते हो ईश्वर और प्रकृति के हाथों, तब वह स्वयं व्यवस्था करती है। और यदि आपने माफियाओं और देश के लुटेरों की गुलामी ना करने की ठानी हो, तो स्वाभाविक है कि भीड़ आपसे दूर हो जाएगी। हो सकता है आपके निकट संबंधी, सहयोगी और हितैषी भी आपसे दूरी बना लें। लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग आपसे अवश्य जुड़े रहेंगे, जो आपका मनोबल बढ़ाएँगे, आपका सहयोग करेंगे।
जो शैतान की कृपा और दया को अस्वीकार कर देता है, उसे ईश्वर का सहयोग प्राप्त हो जाता है। और मुझे हमेशा ईश्वर का साथ मिला है तब भी, जब सभी ने मेरा साथ छोड़ दिया था और मैं फुटपाथ पर आ गया था। आज भी ईश्वर का साथ मिल रहा है, जब मैं किसी आश्रम का वासी नहीं हूँ, किसी मंदिर, तीर्थ के चक्कर नहीं लगा रहा, जब कोई व्यापार या नौकरी नहीं कर रहा।
तो पैसों के पीछे दौड़कर माफियाओं के बिछाए जाल में फँसने से अच्छा है ऐसी दौड़ से स्वयं को मुक्त कर लो। और मैं स्वयं को माफियाओं के बिछाए जाल से मुक्त करने के अभियान में व्यस्त हूँ।
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