क्यों दुर्लभ होते हैं बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य लोग ?

सच तो यह है कि हम सभी के भीतर बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य होने का गुण विद्यमान होता है। लेकिन अधिकांश लोग सम्झौता कर लेते हैं और मार देते हैं बुद्ध, ओशो और सुकरात को। और जो सम्झौता नहीं करते, उनमें से अधिकांश को माफियाओं और लुटेरों के गुलाम समाज, सरकारें और अंधभक्त मिलकर मार देते हैं। फिर भी जो बच जाते हैं और हिम्मत नहीं हारते, वे बुद्ध, ओशो, सुकरात की तरह प्रेरणा बनते हैं मेरे जैसे संन्यासियों के लिए।
किसी पंथ, किसी गुरु से दीक्षा लेना और उनका संन्यासी या अनुयाई बनना कोई महत्वपूर्ण घटना या परिवर्तन नहीं है। क्योंकि उसके लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता नहीं पड़ती, केवल नामजाप, स्तुति-वंदन, भजन-कीर्तन करते हुए जीवन बिताना होता है। यह काम कोई तोता भी बड़ी सहजता से कर लेगा।
महत्वपूर्ण घटना है व्यक्ति का जागृत हो जाना, चैतन्य हो जाना। महत्वपूर्ण घटना है समाज और सरकारों के दोगलेपन, धूर्तता, मक्कारी को देख पाने योग्य दृष्टि प्राप्त करना। और जिस दिन ऐसी दृष्टि प्राप्त हो जाती है, समाज और सरकारों की नजर में आप खटकने लगते हैं। माफियाओं द्वारा संचालित वह सोशल प्लेटफार्म आपको झूठा कहने लगता है, जो स्वयं फर्जी महामारी का झूठ फैलाने में सबसे बड़ा योगदान दे रहे थे। जो चार पाँच लोगों को छींक आने पर पूरे विश्व में महामारी का आतंक फैला रहे थे, जो समस्त विश्व को बंधक बनाकर जनता को लूटने और लुटवाने के षड्यंत्र को रचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे।
लेकिन फिर भी आज ऐसे बहुत से लोग हैं जो दुनिया भर की धमकियों, प्रतिबंधों के बाद भी जनता को जगाने का प्रयास कर रहे हैं। यही लोग बुद्ध हैं, यही लोग ओशो हैं, यही लोग सुकरात हैं। यह और बात है कि समाज को इनकी कोई चिंता नहीं क्योंकि ये अभी ज़िंदा हैं। कल जब मर जाएँगे, तब अवश्य इनके नाम पर संस्थाएं बनाए जाएँगे, मंदिर बनाए जाएँगे और लाखों करोड़ों का कारोबार खड़ा कर लिया जाएगा। और जनता हमेशा की तरह स्तुति-वंदन करेगी, मत्था टेकेगी, चढ़ावा चढ़ाएगी और जय जय करेगी, लेकिन सीखेगी कुछ भी नहीं।
सच तो यह है कि भक्तों, अनुयाइयों, शिष्यों ने कुछ भी नहीं सीखा अपने गुरुओं से सिवाय उनकी भक्ति करने के, सिवाय उनकी स्तुति-वंदन, नामजाप करने के और उनके नाम पर धंधा करने के।
जनता को कोई फर्क नहीं पड़ता कि जागृत करने वाले लोगों पर झूठे आरोप लगाकर जेलों में ठूंस दिया जाये, उन्हें समाज से बहिष्कृत कर दिया जाए, या मौत के घाट उतार दिया जाए। क्योंकि समाज माफियाओं और देश के लुटेरों का गुलाम है। समाज को अपने मालिकों की चिंता है। समाज जानता है कि यदि मालिकों के विरुद्ध जाकर जागृत करने वालों का साथ दिया, तो मालिक नाराज हो जाएगा और आजीविका छीन लेगा, सपरिवार फूटपाथ पर आना पड़ जाएगा।
और ऐसे कायर समाज के लिए अपने जीवन को नर्क बनाना क्या बुद्धिमानी है ?
अभी तक जितने भी जागरूक, चैतन्य आत्माएँ आयीं इस धरा पर और उनके जितने भी सम्प्रदाय, संगठन, संस्था, अनुयायी, शिष्य बने, उन्हें देखने बाद तो यही लगता है कि उनहोंने मूर्खता ही की। उनकी शिक्षाओं को समाज पर कोई असर नहीं पड़ा। हुआ केवल यह कि उनका नामजाप करने वालों, उनके नाम पर संगठन, संस्था बनाकर धंधा करते हुए माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने वालों की भीड़ ही बढ़ी।
यही कारण है कि माफिया बड़ी सहजता से जनता को लूट रहे हैं, बड़ी सहजता से जनप्रतिनिधियों को खरीद और बेच रहे हैं। जनता भी बिकाऊ नेताओं अब आदर्श मानती है बिलकुल वैसे ही, जैसे नीलामी में बिकने वाले खिलाड़ियों, घोड़ों और मवेशियों को आदर्श मानती है।
सोचता हूँ कई बार कि चैतन्य होने का लाभ ही क्या है ?
लाभ क्या है सच को जान लेने का ?
लाभ क्या है समाज को सच बताने का ?
भक्ति, स्तुति-वंदन, नामजाप, कीर्तन-भजन में डूबी जनता की तरह आँख, कान, मुंह बंद रखकर माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी करके जीना ही श्रेष्ठ है।
आपकी क्या राय है ?
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
Support Vishuddha Chintan
