उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान
मजदूरी करना यदि गौरव की बात होती, किसानी करना यदि गौरव की बात होती, तो चाकरी या गुलामी करने वाले लोग आदर्श ना होते समाज के।
अक्सर देखता हूँ लोगों को कहते हुए कि देखो फलाने की माँ, फलाने का पिता मजदूरी करता था या किसानी करता था। आज वह आईएएस बनकर अपने माता-पिता का नाम ऊंचा कर दिया।
तो क्या मजदूरी या किसानी करने वाले का नाम माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी या गुलामी करने वालों से नीचा या निंदनीय होता है ?
कहते सुनता हूँ कि फलाने का बाप चाय/पकौड़े की दुकान चलाता था, आज वह मल्टीनेशनल कंपनी में करोड़ों की पैकेज पर सिलेक्ट होकर माता-पिता का नाम ऊंचा कर दिया।
क्या मल्टीनेशनल कंपनी का नौकर या गुलाम एक स्वरोजगार पर आश्रित आत्मनिर्भर परिवार से अधिक महान होता है ?
केवल बाजार द्वारा थोपा गया झूठा मान-सम्मान है जो गुलाम पैदा करने के लिए दिये जाते हैं। ताकि माफियाओं को अधिक से अधिक गुलाम मिल सकें, अधिक से अधिक मजदूर मिल सकें। आज हर माध्यम और निम्न आयवर्ग के परिवार में यह धारणा बैठा दी गयी है कि इंसान का जन्म माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी करने के लिए ही हुआ है। यदि कोई व्यक्ति स्वरोजगार करता है, अपनी खेती, बागबानी या चाय/पकौड़ी की दुकान लगाता है, तो वह दयनीय है, निम्न कोटी का है।
एक समय था जब ‘उत्तम खेती मध्यम बान, निकृष्ट चाकरी, भीख निदान’ जैसी मान्यता प्रचलित थी। लोग नौकरी या गुलामी करने को सबसे निकृष्ट मानते थे। लेकिन आज खेती को सबसे निकृष्ट माना जाता है और चाकरी को सर्वोत्तम। चाकरी को तो इतना महान बना दिया गया है कि योग्य से से योग्य युवा भी स्वरोजगार को ना अपनाकर नौकरी खोजते फिर रहे हैं।