क्या कभी सोचा है किसी ने कि जनसंख्या किसकी बढ़ी है ?

कहते हैं विद्वान लोग कि जनसंख्या वृद्धि प्रमुख कारण है गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार और भ्रष्ट सरकारों के बढ़ने और फलने फूलने का।
लेकिन क्या कभी सोचा है किसी ने कि जनसंख्या किसकी बढ़ी है ?
जनसंख्या बढ़ी है देश के लुटेरों और माफियाओं के गुलामों की। क्योंकि स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य कोचिंग संस्थान गुलाम पैदा करने के कारखाने बन चुके हैं। करोड़ों बच्चों को गुलामी की ट्रेनिंग देकर लावारिस छोड़ देते हैं सड़कों पर। फिर ये गुलाम शहर भागते हैं बिकने के लिए मालिकों की खोज में।
और शहर एक ऐसा बाजार है, जहां सबकुछ बिकाऊ है।
नेता बिकता है, अभिनेता बिकता है, खिलाड़ी बिकते हैं, राजनैतिक पार्टियां बिकती हैं, सरकारें बिकती हैं, इंसान बिकता है, ईमान बिकता है, इंसानियत बिकती है, जिस्म बिकता है, भक्ति बिकती है, देशभक्ति बिकती है, श्रद्धा और आस्था बिकता है, नैतिकता और सात्विकता बिकता है, धर्म बिकता है…इंसान जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता, वह भी बिकता है।
लेकिन जो बिकाऊ नहीं होता, समाज में उसे कोई स्थान, कोई सम्मान नहीं मिलता। और ऐसे लोगों की जनसंख्या इतनी घट चुकी है कि अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए। आने वाले 2–3 वर्षों में संभवतः पूर्णतः लुप्त जाएंगे।
यदि गुलामों की भीड़ भरे शहर से हटकर दूर जाएं, तो पाएंगे जनसंख्या कहीं बढ़ी ही नहीं। वहां शांति है, सद्भाव है, प्रेम है, संगीत है, नृत्य है और कोई प्रतिस्पर्धा या नहीं है। कोई भाग नहीं रहा, हर कोई शांत, ठहरा हुआ है और अपनी मस्ती में मस्त है।
क्योंकि वे गुलाम नहीं मालिक हैं स्वयं के, अपने खेतों के, अपने बगीचों के, अपनी भूमि के और अपनी मर्जी के।
~ विशुद्ध चैतन्य
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