अपना कहने वाले क्या वास्तव में आपके अपने होते हैं ?

अपना कौन है यहाँ ?
मौखिक अपने तो बहुत मिल जाएँगे जो हमेशा कहते मिलेंगे कि हम तो आपके अपने हैं, या आप हमारे अपने हैं।
लेकिन क्या वास्तव में वे अपने होते हैं ?
नहीं… शब्दों से कोई अपना नहीं होता। अपना होता है व्यवहार से, अपना होता है सुख-दुख में साथ खड़े होने वाला, अपना होता है जब सारी दुनिया विरोध में खड़ी हो, तब कंधे-से कंधा मिलाकर दुनिया को चुनौती देने वाला।
और ऐसे अपने दुर्लभ होते हैं। अपने सगे भी साथ छोड़ देते हैं बुरा वक्त आने पर।
लेकिन कहीं कोई अपरिचित हाथ बढ़ा देता है तब, जब दुनिया में बिलकुल अकेले पड़ जाओ। कहीं कोई अपरिचित भोजन दे देता है, कहीं कोई अपीरिचित पानी पिला देता है, कहीं कोई अपरिचित रहने के लिए आश्रय दे देता है बिना कोई शर्त।
जब अपना कहीं दुःखी होता है, किसी कष्ट में होता है, तब अपनों आभास हो जाता है भले वे कितने ही दूर क्यों न हों। लेकिन जो शब्दों से अपने होने का दावा करते हैं, उन्हें आपके आँसू भी दिखाई नहीं देंगे, भले वे आपके कितने पास हों।

इसलिए कभी भी अपना होने का दावा मत करिए, क्योंकि कौन अपना है और कौन पराया यह बिना कहे ही पता चल जाता है समय आने पर।
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