पुस्तकें वही पढ़िये जो आपके जीवन को सही दिशा दे

“There is no friend as loyal as a book.” ― Ernest Hemingway
कहते हैं विद्वान लोग कि पुस्तकों से बढ़कर सच्चा दोस्त और कोई नहीं। जिसे पढ़ने की लत है, वह सफलता की ऊंचाइयों को छूता है और दुनिया उसके सामने झुकती है।

यह तस्वीर प्रमाण है कि पुस्तकों का शौक इंसान को कितनी ऊंचाई पर ले जाता है और किताबें खरीदने वाले उसके सामने झुककर अपनी पसंद की किताबें खोजते दिखाई देते हैं।
सदैव स्मरण रखें:
1- शास्त्रों को पढ़ने वाला शास्त्री या पुजारी बनता है बुद्धिमान, विवेकवान नहीं।
2- स्कूल कॉलेज में अच्छे मार्क्स लाने वाला बालक नौकर या गुलाम बनता है मालिक नहीं।
3- ढेर सारी डिग्रियाँ बटोरने वाला डिग्रीधारी बनता है बुद्धिमान, विवेकवान नहीं।
4- दिन रात पुस्तकें पढ़ने वाला व्यक्ति चलती-फिरती एनसाइक्लोपीडिया, डिक्शनरी, लाइब्रेरी या लाइब्रेरियन बनता है, बुद्धिमान, विवेकवान नहीं।
ऐसा ज्ञान जो इतना भी विवेकवान न बना सके कि सही और गलत को पहचान सके, यह जान सके कि वह जिसके लिए कार्य कर रहा है, वह देश और समाज के हितों के लिए कार्य कर रहा है, या देश के लुटेरों और माफियाओं के लिए, वह ज्ञान व्यर्थ है।
इसलिए किसी भी व्यक्ति को उसके विवेक और ज्ञान के आधार पर परखिये, न कि शास्त्रों और डिग्रियों के आधार पर।
जो स्कूल, कॉलेज में अच्छे मार्क्स नहीं ला पाये, ना ही ऊंची शिक्षा प्राप्त कर पाये, उनमें से अधिकांश मालिक बने। उदाहरण खोजने निकलेंगे, तो ढेरों मिल जाएँगे… जैसे कि T–Series के मालिक गुलशन कुमार, रिलायंस के मालिक धीरु भाई अंबानी, बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन।
पुस्तकें वही पढ़िये, जो आपके जीवन को सही दिशा दे, जो आपको जागरूक बनाए, जो आपको अन्याय, अत्याचार, शोषण और देश के लुटेरों, माफियाओं के विरुद्ध आवाज उठाना सिखाये। बाकी सभी ज्ञान व्यर्थ हैं। फिर चाहे वह आध्यात्मिक पुस्तक हों, चाहे धार्मिक पुस्तक, चाहे राजनैतिक राजनैतिक, चाहे साहित्यिक पुस्तक, चाहे ऐतिहासिक पुस्तक, चाहे तकनीकी पुस्तक, चाहे कथा कहानियों की पुस्तक…कोई फर्क नहीं पड़ता।
यदि आप जागृत हैं, चैतन्य हैं, सही और गलत का अंतर समझने योग्य हैं, देश के लुटेरों के चाकर, चापलूस या गुलाम नहीं हैं, उनकी दया और कृपा पर आश्रित नहीं हैं, तो कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप पढ़े लिखे हैं, या अनपढ़। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप सर्टिफिकेट धारी हैं या डिग्रीधारी।
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