क्या वास्तव में कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता ?
कहते हैं विद्वान लोग कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता।
लेकिन मैं कहता हूँ कि बिलकुल होता है छोटा और बड़ा काम। और यदि मेरा विश्वास न हो, तो अपने ही परिवार में देख लीजिये आपको छोटा और बड़ा काम दोनों दिख जाएगा।
घर में रोटी, सब्जी, दाल बनाना छोटा काम है। लेकिन वेतन के एवज में अधिकारी, नेता, मंत्री या फाइव स्टार होटल के लिए यही सब बनाना बड़ा काम है।
चाय-पकौड़े की दुकान या रेहड़ी लगाकर स्वरोजगार करना छोटा काम है। लेकिन फाइव स्टार होटल या नेता, मंत्री के घर चाय-पकौड़े बनाना, शराब परोसना बड़ा और सम्मानित काम है।
सत्य तो यही है कि अपने घर के काम करना, किसानी, मजदूरी करना या फिर स्वरोजगार करना छोटा काम है। जबकि माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी, गुलामी करना बड़ा काम है।
बहुत आश्चर्य होता है यह देखकर कि माफियाओं का गिरोह अर्थात सरकार का नौकर आकर एक रेहड़ी वाले को हड़का जाता है। जबकि रेहड़ी वाला मालिक है और हड़काने वाला नौकर है माफियाओं का।
समाज में अक्सर देखने मिलता है कि माफियाओं का नौकर/गुलाम हड़का रहा होता है उसे, जो स्वरोजगार कर रहा होता है, जो मालिक होता है अपने व्यापार, खेत, भूमि का।
देखा है मैंने साधु-संन्यासियों, स्वामियों अर्थात स्वयं के मालिकों को भिखारी, मुफ्तखोर कह देते हैं वे लोग, जो माफियाओं और देश के लुटेरों के नौकर-चाकर या गुलाम होते हैं और लूट खसोट में सहयोगी होने के एवज में मिले कमीशन, वेतन पर जीवन यापन करते हैं। लुटेरों से मिले कमीशन पर पलने से क्या लाख गुना अच्छा नहीं है भीख या दान पर पलना ?
किसी को लूट तो नहीं रहे ? किसी से कुछ छीन तो नहीं रहे ? राजनेता, अभिनेता, पार्टी, सरकार, विज्ञापन एजेंसियों और फार्मा माफियाओं की तरह जनता के साथ विश्वास घात तो नहीं कर रहे ?
~ विशुद्ध चैतन्य