क्या कभी आपने प्रश्न किया कि समाज क्या है ?
साधु समाज का संन्यासी एक सामाजिक संन्यासी होता है। वह बिना समाज के जी नहीं सकता। इसीलिए ऐसे संन्यासी हरिद्वार, ऋषिकेश, काशी, वृंदावन, दिल्ली जैसे शहरों में पाये जाते हैं।
लेकिन स्वतंत्र एकांतप्रिय संन्यासी असामाजिक होते हैं। वे शहरों, तीर्थस्थलों और भीड़ में नहीं पाए जाते।
असामाजिक से यहां तात्पर्य है जो ’समाज’ नामक माफियाओं की गुलाम भीड़ से अलग रहना पसंद करते हैं।
मैं उन्हीं सरफिरे असामाजिक संन्यासियों में से एक हूं। समाज नामक भीड़ तो क्या, परिवार नामक भीड़ के साथ भी रहना असंभव हो जाता है मेरे लिए।
और उसका कारण भी है। समाज हो या परिवार, सभी की अपनी–अपनी समस्याएं होती हैं। और सभी समस्याओं पर तो चर्चा करते हैं, लेकिन समाधान पर नहीं। सभी बैठे होते है ईश्वर, अल्लाह, अवतार और सरकार भरोसे।
ऐसी भीड़ के साथ रहने से संन्यास का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है। दिन भर बैठकर इनकी समस्याएं सुनो और समाधान बताओ तो कहेंगे, खुद तो कुछ कर नहीं पाया, हमें समाधान बताने चला है !!!
मैंने अब तक के अनुभवों में पाया कि समाज और परिवार समाधान नहीं, श्रोता चाहते हैं जो उनकी समस्याएं सुन ले या फिर उन्हीं की तरह हो जाए।
और मैं किसी की तरह नहीं होना चाहता, किसी पंथ, सम्प्रदाय, पार्टी, संगठन का भेड़ नहीं बनना चाहता।
क्या कभी आपने प्रश्न किया कि समाज क्या है ?
समाज उस भीरु, कायर और स्वार्थी भीड़ को कहा जाता है, जिसे धर्म, जाति और सत्ता के ठेकेदार अपने बाड़ों में कैद रखते हैं धर्म खतरे में है, जाति खतरे में है, पड़ोसी देश आक्रमण करके तुम्हारी स्त्रियाँ और संपत्ति लूटकर ले जाएगा कहकर डराते हैं और फिर दुनिया भर का टैक्स लगाकर, महंगाई बढ़ाकर, हफ्ता, चन्दा, कमीशन,, रिश्वत मांगकर लूटते और लुटवाते हैं।
जब तक इंसान जागृत नहीं होता, चैतन्य नहीं होता, निद्रावस्था में रहता है, समाज को सत्य मानकर जीता है। समाज के लिए ही करता है सबकुछ। फिर चाहे विवाह करे, नौकरी करे, व्यापार करे, कर्जा लेकर मकान या गाड़ी खरीदे, दंगा, फसाद, आगजनी, मोबलिंचिंग…आदि जो कुछ भी करता है, समाज के लिए करता है।
लेकिन जिस दिन नींद से जागता है और अपने आसपास देखता है, उसे समाज कहीं नजर नहीं आता। वह बिलकुल अकेला हो जाता है। क्योंकि समाज एक भ्रम है, एक स्वप्न है जो केवल उन्हें ही दिखाई देता है जो बेहोशी में होते हैं, जो गहरी नींद में होते हैं।
इसीलिए जागृत होते ही व्यक्ति समाज नामक भीड़ से दूरी बना लेता है।
विद्वान लोग कहते हैं कि समाज से दूर रहोगे, तो बुरे समय में तुम्हारी सहायता कौन करेगा ?
उनसे कहना चाहता हूं कि मेरे बुरे समय में समाज कभी नहीं आया सहायता के लिए। जिन लोगों के जीवन में बुरा समय आया उनसे पूछ लीजिए कि क्या समाज ने उनकी सहायता की थी ?
जो समाज स्वयं समाज सेवी संस्थाओं की बैसाखियों पर खड़ा हो, वह समाज भला किसी की सहायता कैसे कर सकता है ?
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सामान्य सी बात है…. अक्सर लोग किसी न किसी कारण से आत्महत्या करते रहते हैं और उनके आत्महत्या कर लेने से समाज और सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता। परिवार के लोग भी दो चार दिन रो=धोकर सामान्य हो जाते हैं और सबकुछ सामान्य रूप से चलने लगता है।
लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जिस समाज को दिखाने के लिए दुनिया भर के आडंबर किए जाते हैं, अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च किया जाता है शादी, ब्याह में। इंस्टालमेंट पर कार, फ्लैट खरीदा जाता है, केवल समाज को दिखाने के लिए। वह समाज कहाँ गायब हो जाता है जब कोई संकट में होता है ?
कहते हैं लोग मानव एक सामाजिक प्राणी है, बिना समाज के रह नहीं सकता। तो प्रश्न यह कि वह समाज होता कहाँ हैं जब कोई आत्महत्या करने के लिए विवश हो जाता है ?
सत्य तो यह कि समाज केवल भ्रम है, समाज जैसा कुछ नहीं होता। जैसे ईश्वर, भूत-प्रेत दिखाई नहीं देते, उसी तरह समाज भी दिखाई नहीं पड़ता जब कोई संकट में होता है।
हाँ समाज अपने होने का परिचय देने के लिए सामने आता है कभी-कभार, जब ईशनिन्दा, बेअदबी के नाम पर किसी गरीब की हत्या करनी हो, जब धर्म की रक्षा के नाम पर दंगा-फसाद, आगजनी करनी हो…..बाकी समय समाज सोया रहता है।
समाज की नींद तब भी नहीं खुलती जब देश के लुटेरे और माफिया संगठित होकर देश और जनता को लूट रहे होते हैं।
ऐसे सोये हुए समाज को दिखाने के लिए दुनिया भर का कर्जा लेकर शादी-ब्याह करने का क्या औचित्य ?
ऐसे सोये हुए समाज को दिखाने के लिए कर्जा लेकर गाड़ी, मकान खरीदने का औचित्य ही क्या है ?
स्वयं को अलग कर लो ऐसे समाज से और अकेले जीना सीखो। क्योंकि समाज केवल दंगा-फसाद, आगजनी, मोब्लिंचिंग करने के लिए आस्तित्व में आता है, अन्यथा उसका कोई आस्तित्व नहीं है।
मेरी सहायता हमेशा अपरिचितों ने की। मेरी सहायता उन लोगों ने की जो मुझसे कभी मिले भी नहीं। लेकिन जिन्हें मैं अपना समझता था वे दूर खड़े तमाशा देखते रहे।
इसीलिए मैं अकेले ही रहना पसंद करता हूं। क्योंकि मेरे पास ऐसी कोई योग्यता या सामर्थ्य नहीं है, जिससे माफियाओं के गुलाम समाज और परिवारों की समस्याएं सुलझा सकूं। उन्हें अपनी समस्या लेकर अपने मालिकों के पास जाना चाहिए, ना कि मेरे पास आना चाहिए।