आसमान से उतरे सात्विक और हलाल भोजन

प्राचीनकाल में जब देवी-देवता, ईश्वर/अल्लाह पढे-लिखे नहीं होते थे, संस्कृत, अँग्रेजी और अरबी/फारसी नहीं जानते थे, तब तक सात्विक/पाक/हलाल भोजन का ज्ञान किसी को नहीं था। फिर एक दिन ईश्वर/अल्लाह, देवी-देवताओं ने कान्वेंट स्कूलों में दाखिला लिया और पढ़े-लिखे डिग्रीधारी हो गए।
फिर उन्होंने सात्विक/पाक/हलाल भोजन की किताबें लिख कर पैराशूट से जमीन पर उतारी। उन किताबों को पढ़ने के बाद मनुष्य ने जाना कि सात्विक, पाक और हलाल भोजन क्या है। और लोग सात्विक/पाक/हलाल भोजन करने लगे।

जिन लोगों तक किताबें नहीं पहुँची, वे बेचारे सात्विक/पाक/हलाल भोजन से अनभिज्ञ रह गए। उन तक किताबें पहुंचाने की ज़िम्मेदारी ईश्वर/अल्लाह, देवी-देवताओं के औथोराइज्ड एजेंट्स और धर्म/समाज और नैतिकता के ठेकेदारों को सौंपी गयी। उनके दिन-रात की मेहनत का ही फल है कि आज सारी दुनिया सात्विक/पाक/हलाल भोजन कर रही है।
केवल पशु-पक्षी और कुछ अनपढ़-जाहिल इंसान ही रह गए जो सात्विक/पाक/हलाल भोजन नहीं करते। तो पढ़े-लिखे समझदार विद्वान लोगों ने पशु-पक्षियों को भी सात्विक/पाक/हलाल भोजन खिलाकर अपने साथ स्वर्ग/जन्नत/हेवेन ले जाने का संकल्प ले लिया। पशु-पक्षियों का प्राकृतिक आहार छुड़ाकर उन्हें सात्विक/पाक/हलाल भोजन करवाने लगे।
जिन्होंने सात्विकता में पीएचडी कर रखी है, उन्होंने प्याज-लहसुन, बैंगन, टमाटर को भी हराम घोषित कर रखा है। उन्हें गर्व है अपने सात्विक आहार पर और बड़े शान से कहते हैं कि हमारे भोजन में किसी का खून, किसी की चीख पुकार शामिल नहीं है।
क्या वास्तव में सात्विक भोजन में किसी का खून, किसी की चीख पुकार शामिल नहीं है ?
क्या कभी जाकर देखा है कि सात्विक भोजन उगाया कैसे जाता है ?
क्या कभी देखा है जाकर कि हल/ट्रेक्टर चलाने से, कीटनाशकों का छिड़काव करने से कितने जीव-जंतुओं की चीख-पुकार निकलती है, कितने जीव जंतुओं का घर उजड़ जाता है, कितने जीव-जन्तु अनाथ, बेघर हो जाते हैं ?
क्या देखा है कि किसानी करने वाले कितने किसान आत्महत्या कर लेते हैं और कितने मासूम अनाथ जो जाते हैं ?
केवल आपके लिए सात्विक भोजन उगाने के कारण किसानों को हल चलाकर, कीटनाशक छिड़ककर जीवजंतुओं की हत्या करनी पड़ती।
सात्विकता और शाकाहार का ताज पहने लोगों को देखिये कभी ?
उन नेताओं, उन अधिकारियों, उन पार्टियों, उन सरकारों के सामने नतमस्तक खड़े होते हैं और उनकी चाकरी और गुलामी करना अपना सौभाग्य मानते हैं, जो माँस निर्यातकों से हफ्ता, चन्दा, कमीशन, रिश्वत लेते हैं। और उन्हीं चन्दा/रिश्वत/कमीशन के पैसों से सात्विक और शाकाहारी लोगों का परिवार पलता है।
क्या कभी शर्म नहीं आती ऐसी दोगली जीवन शैली जीते हुए ?
क्या कभी आत्मा धिककारती नहीं ऐसे ढोंग भरी जिंदगी जीते हुए ?
यदि वास्तव में ऐसा भोजन खाना है जिसमें किसी की चीख पुकार शामिल न हो, तो स्वयं उगाइए अपने खेतों में भोजन बिना किसी जीव की हत्या किए। खेत नहीं है तो बालकनी में उगाइए, गमलों में उगाइए और फिर कहिए हमारे भोजन में किसी का खून, किसी की चीख-पुकार शामिल नहीं है।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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