सोशल मीडिया कम्यूनिटी स्टैंडर्ड क्या सत्य के विरुद्ध नहीं है ?

हाल ही में, सरिता प्रकाश जी का फेसबुक प्रोफ़ाइल और पेज फेसबुक द्वारा सस्पेंड कर दिया गया। फेसबुक का संदेश मिला कि सोशल मीडिया कम्यूनिटी स्टैंडर्ड का उल्लंघन हुआ है, इसलिए सस्पेंड किया गया। प्रोफ़ाइल को पुनः सक्रिय (रीएक्टिव) करने के लिए या तो पासपोर्ट की कॉपी आईडी प्रूफ के तौर पर जमा करनी होगी, या फिर 80 दिनों के भीतर कोर्ट में अपील करनी होगी।
समझ में नहीं आ रहा कि फेसबुक को पासपोर्ट की कॉपी क्यों चाहिए और प्रोफ़ाइल रिएक्टिव करने के लिए कोर्ट में अपील करने के लिए क्यों कहा गया ?
कभी किसी ने जानना क्यों नहीं चाहा कि जो फार्मा माफिया, विज्ञापन एजेंसियां, राजनैतिक पार्टियां, नेता, अभिनेता, खिलाड़ी और बाबा लोग दुनिया भर के झूठे प्रचार करते हैं, जनता को भ्रमित करते हैं उन्हें सोशल मीडिया कम्यूनिटी स्टैंडर्ड के विरुद्ध क्यों नहीं माना जाता ?
क्या फेसबुक या अन्य कोई भी सोशल मीडिया निष्पक्ष सरकारी संस्था है ?
क्यों फेक्ट चेकर्स उनके झूठ को उजागर करके उनकी आईडी सस्पेंड नहीं करवाते ?
सत्य तो यही है कि सरकार और मानव समाज का आधार ही झूठ की नींव पर टिका है। इसीलिए जैसे ही कोई सत्य सामने लाने का प्रयास करता है, समाज और सरकारों के ठेकेदारों का सिंहासन बिलकुल वैसे ही डोलने लगता है, जैसे इन्द्र का सिंहासन डोलने लगता है किसी तपस्वी की तपस्या से।

नैतिक और अनैतिक में क्या अंतर है ?
जो कार्य सरकार, समाज, फार्मा माफिया और धर्म व जातियों के ठेकेदारों द्वारा या उनकी सहमति से किया जाए, वह नैतिक कार्यों के अंतर्गत आता है। और जो कार्य इनके अनैतिक कार्यों के विरोध के अंतर्गत आता है, अनैतिक कार्य कहलाता है।
उदाहरण के लिए जुआ खेलना अनैतिक है, शराब बेचना, खरीदना और पीना अनैतिक है, वेश्यावृति अनैतिक है, रिश्वतख़ोरी अनैतिक है, किसी के इच्छा के विरुद्ध कोई भी इंजेक्शन या चिकित्सा देना अनैतिक है। लेकिन यही सारे कार्य नैतिक हो जाते हैं यदि आपके पास लाइसेन्स है या फिर आपने रिश्वत/कमीशन/चढ़ावा/हफ्ता सुनिश्चित कर दिया है।
अफवाह फैलाकर समाज को आतंकित करना अनैतिक है। लेकिन यदि इलेक्टोराल बोण्ड्स के माध्यम से 700 करोड़ से अधिक का डोनेशन दे दिया है सत्तापक्ष को, तो नैतिक हो जाता है। और जो इनका विरोध करता है वह अनैतिक माना जाता है, उनका सोशल मीडिया अकाउंट सस्पेंड हो जाता है।

जो जितना अधिक नैतिक, सात्विक, धार्मिक होने का ढोंग करता है, उतना ही अधिक अधार्मिक होता है
“जीवन के बड़े जटिल नियम हैं। अगर तुम बुरे को छोड़ने पर ज्यादा ध्यान दो, तो तुम बुरे से ही आविष्ट होते जाओगे। जिस चीज पर ध्यान दो, उसी से सम्मोहन हो जाता है। आंख लगाकर देखते रहो किसी चीज को, तुम उसके प्रभाव में पड़ जाते हो।” – ओशो
बहुत गहरी सच्चाई कहते हैं ओशो। जो समाज जिस चीज से जितनी घृणा करता है, जितना परहेज करता है उतना ही उसके प्रति आसक्त होता जाता है। उदाहरण:
1- समाज झूठ बोलने वालों से घृणा करता है। लेकिन वोट हमेशा झूठ बोलने वाले नेताओं को ही देता है।
2- समाज बेईमानी, रिश्वतख़ोरी से घृणा करता है। लेकिन बेईमान, रिश्वतखोर अधिकारियों, नेताओं, सरकारों की भक्ति करता है। हर माँ-बाप का सपना होता है कि उनकी संताने सरकारी नौकर बनकर देश को लूटने और लुटवाने वाले नेताओं, पार्टियों, माफियाओं की सेवा करे।
3- समाज शराब और शराबियों की निंदा करता है, लेकिन हर गली में शराब के ठेके खुलते हैं। प्रायोजित महामारी काल में जब सारे तीर्थ, धार्मिक स्थल, स्कूल, कॉलेज में ताले लग जाते हैं, तब भी दारू के ठेके खुले मिलते हैं।
4- जो जितना अधिक धार्मिक, सात्विक दिखने का प्रयास करता है, उतना ही अधिक अधार्मिक होता चला जाता है। धर्म की रक्षा करने निकले धार्मिकों को ही देख लीजिये ? अपने ही देश को लूटने और लुटवाने वालों की भक्ति में धुत्त रहते हैं। क्योंकि इन्हें यही सिखाया गया है कि अपने ही देश को लूटना और लुटवाना धर्म है लुटेरे और उनके सहयोगी सच्चे धार्मिक होते हैं।
यही सब देखने के बाद यही समझ में आया मुझे कि जिस पर भी समाज और भीड़ विश्वास करती है, जिसके पीछे दौड़ रही है, वह बिक चुका है।
और जिस समाज में, जिस भी प्लेटफार्म में, जिस भी देश में, जितने अधिक नियम कानून और सजा का प्रावधान है, उसके अधिकारी और कर्मचारी उतने ही अधिक भ्रष्ट और बिकाऊ होंगे और अधार्मिक, अनैतिक और माफिया उनके मालिक होंगे।
इसीलिए सोशल मीडिया कभी भी सत्य के पक्ष में नहीं हो सकता और सत्य दिखाने वालों को बर्दाश्त भी नहीं कर सकता। क्योंकि सत्य सामने आ गया, तो माफिया और उनकी गुलाम सरकारों द्वारा बनाया गया झूठ का सारा साम्राज्य बिखर जाएगा।
~ विशुद्ध चैतन्य
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