सरिता की जुबानी: एक क्रांतिकारी कहानी

हमेशा से मौन का यह अर्थ नहीं है कि कोई सत्य नहीं बोल सकता। जब सत्य को इतनी प्रमाणिकता से कहा जाता है तो पैशाचिक व्यवस्थाएं थर-थर कांप उठती हैं, क्योंकि मौन में भी एक शक्ति होती है।
फिर क्या हुआ? हमें 23.10. 24 को सस्पेंड कर दिया गया। सच हमेशा कड़वा होता है, और जब वह प्रमाणित होता है, तो उसकी चुभन और भी गहरी होती है। हमारे जैसे लेखक, जो मानव जाति के शोषण, भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ खड़े होते हैं, यही बदनसीबी है कि हम पूंजीवादी व्यवस्थाओं के आंख के कांटे हैं।
जैसा कि हमने फेसबुक पर कहा, “फेसबुक ने हमें मौन व्रत में डाल दिया है।” लेकिन हम औरों की तरह मरे नहीं हैं। हम जीवंत आत्मा हैं, जो अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए तत्पर हैं।
मैं कुछ दिनों के लिए ध्यान में हूं। ध्यान टूटने पर, मैं आपसे फिर मिलूंगी—एक नए नाम और नए क्रांतिकारी विचारों के साथ।
जीवन का द्वंद्व नियम है: यदि आप सत्य को पूरी प्रमाणिकता के साथ बोलते हैं, तो धूर्त, गुलाम और पिशाचों को चोट लगेगी। लेकिन हमने कुछ भी खोया नहीं है। हम आज भी बुलंद हैं और कल भी रहेंगे। फेसबुक हमारी पहचान नहीं है; हम अपने परमात्मा की कृपा से स्वतंत्र हैं।
सरिता एक स्वच्छ, निर्मल बहती नदी है, जो अपना रास्ता खुद तय करती है। उसे किसी बांध से नहीं रोका जा सकता।
मैं अपने गिने-चुने लेखकों और पाठकों को प्रेरित करना चाहती हूं कि सत्य के साथ टिके रहें। झूठ परोसने वाले दलाल और तबायफ मीडिया समाज को मनोरंजन देने के लिए पर्याप्त हैं, लेकिन सत्य का रास्ता कठिन है और उसी पर चलना है।
सरिता के विचार ✍️