पिशाच पूंजीवाद की राजनीति और अध्यात्म पर मंडरा रहा खतरा

आज के समय में हम सबने देखा है कि कैसे पूरे विश्व में पिशाच पूंजीवादी राजनीतिज्ञों, फार्मा माफियाओं और उनके दलालों ने एक प्रायोजित महामारी का सहारा लेकर मानवता को मानसिक रूप से बंधक बना लिया। थाली-ताली बजवाकर, धार्मिकता के नाम पर लोगों को अंधकार में धकेलते हुए, उनके स्वास्थ और मानसिकता पर कहर बरसाया है। आज दुनियाभर में लोग खड़े-खड़े गिर रहे हैं, कार्डियक अरेस्ट और हार्ट अटैक से ग्रस्त हो रहे हैं। पर क्या इसका जिम्मेदार सिर्फ पूंजीवादी व्यवस्था ही है?
आस्था और समाज की मूर्खता
इसका असली कारण मानव समाज का अंधविश्वास और अपनी परमात्मा पर से उठता भरोसा है। लोगों ने अध्यात्म और आत्मिक शक्ति की बजाय पूंजीवादी व्यवस्था और उनके प्रचारकों पर भरोसा करना शुरू कर दिया। इस व्यवस्था ने लोगों को अध्यात्म से दूर कर गुलामी की ओर धकेल दिया है। आज की फार्मा माफिया और पूंजीवादी व्यवस्था ने धर्म को व्यवसाय का अड्डा बना दिया है।
धार्मिक स्थलों का व्यवसायीकरण
पूंजीवादी ताकतें मंदिरों और धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थल में तब्दील कर रही हैं ताकि ये कमाई का प्रमुख केंद्र बन सकें। पाखंड की आड़ में कथावाचकों और पुरोहितों का बाजार खड़ा कर दिया गया है। ये कथावाचक अपनी कथाओं के लाखों-करोड़ों रुपए चार्ज करते हैं। क्या यही अध्यात्म, नैतिकता और धार्मिकता है?
व्यवसायिक धर्म का नाश
धर्म के नाम पर बने मंदिरों में अब सच्चे आध्यात्म का कोई स्थान नहीं है, वहां तो सिर्फ व्यवसाय का बोलबाला है। ये तथाकथित धर्मगुरु, कथावाचक और पुरोहित, पूंजीवादी व्यवस्था के दलाल बन चुके हैं। राजनीति और धर्म के इस गठजोड़ ने लोगों को धर्म और अध्यात्म से वंचित कर दिया है, और उन्हें केवल वोट बैंक का साधन बना दिया है।
मानवता को प्राकृत आध्यात्म की ओर लौटने की आवश्यकता
अगर मानवता अपनी ऊर्जा को प्रकृति और परमात्मा के सुंदर संरचना में लगाती तो हमारे जीवन में शुद्ध पानी, शुद्ध अन्न, शुद्ध हवा और शुद्ध वातावरण होता। सच्चे आध्यात्म और नैतिकता से संपन्न मानव समाज कभी फार्मा माफियाओं की गुलामी नहीं करता और न ही किसी पाखंडी के आगे झुकता।
मूर्खता का अंत
आज का मानव समाज मूर्खता और अंधविश्वास के जाल में फंसा हुआ है। पूंजीवादी व्यवस्था के बनाए धार्मिक व्यवसाय केंद्रों में जा-जाकर लोग अपने स्वास्थ की भीख मांगते हैं, परंतु खुद जहरीले अनाज और हवा को ग्रहण कर बीमारियों का शिकार होते हैं। यह समय है इस मूर्खता का अंत करने का, और सच्चे आध्यात्म और प्रकृति के प्रति समर्पण की ओर लौटने का।
यह लेख आपको सोचने पर मजबूर करेगा कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। ये पिशाच पूंजीवादी व्यवस्था का अंत लाना है ताकि मानवता को सच्चे धर्म और अध्यात्म की राह पर लाया जा सके।
लेखक: सरिता प्रकाश ✍️