आजादी की गुलामी: शिक्षा और मानसिकता का संकट
आजादी के बाद, हमने शिक्षा के नाम पर डिग्री हासिल की, लेकिन इस प्रक्रिया में हम शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक रूप से गुलाम हो गए हैं। हम ऐसे नवाब बन गए हैं कि हमें यह भी नहीं पता चला कि कब हमारी ज़मीन खिसक गई।
आज हमारे देश में कई लोग, चाहे वे सोने और चांदी के बर्तनों में भोजन करें या प्लास्टिक की थाली में, सभी एक मानसिक गुलामी के शिकार हैं। पढ़े-लिखे डिग्रीधारी लोग इस स्थिति में संतुष्ट हैं, जबकि उनका वास्तविक स्वास्थ्य और कल्याण खतरे में है।
मानव जाति का बौद्धिक पतन कब समाप्त होगा? हम हर क्षण अपनी शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और आर्थिक स्वास्थ्य का शोषण कर रहे हैं, पर हमें इसकी परवाह नहीं। फर्क बस इतना है कि ब्रिटिश काल में लोग सड़कों पर बिकते थे, जबकि आज पढ़े-लिखे लोग दफ्तरों में अपनी कीमत चुका रहे हैं।
जब मानवता का अपने परम प्रकृति से प्रेम का संबंध टूटता है, तब वह सिर्फ धन, संपत्ति और शोहरत के पीछे भागती है। यही मानसिक गुलामी आज के समाज की पहचान बन गई है।
आज की भीड़ को गुलाम और भेड़ चाहिए, न कि प्रतिभाशाली और स्वतंत्र व्यक्तित्व वाले लोग। ऐसे लोग जो मौलिकता में जीते हैं और प्रकृति के साथ एकता स्थापित करते हैं, वे आज के दिखावटी समाज के लिए खतरा हैं।
जहां मानव जाति अपनी निजी स्वतंत्रता और स्वामित्व से वंचित है, वहां जीवन की आध्यात्मिकता केवल कर्मकांडों में सीमित रह जाती है।
इस लेख के माध्यम से हम इस गंभीर स्थिति पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं और यह समझने का प्रयास करते हैं कि हमें अपनी मानसिकता और जीवन शैली को बदलने की आवश्यकता है।
इसीलिए ओशो के नीचे के मंतव्यों ये जाहिर होता हैं कि मानवजाति के स्वतंत्रता को, किस तरह गुलामी के आधार पर कानून के दायरे में बांध दिया जाता है!
“सारा समाज कोशिश करेगा कि प्रेम का केंद्र सक्रिय न हो पाए, क्योंकि प्रेम का केंद्र खतरनाक न हो जाए। इसलिए उसको दबाने की कोशिश करेगा, काट डालने की कोशिश करेगा।
और दूसरे केंद्र हैं, उनको तो समाज और भी बरदाश्त नहीं करेगा। अब जैसे यह टेड सीरिओ है, इस तरह के दुनिया में बहुत लोग हो जाएं तो समाज इनके खिलाफ कोई कानून बनाने की कोशिश करेगा।
अभी ऐसी एक घटना घटी। इंडोनेशिया में एक आदमी है, टोनी उसका नाम है। और इस सदी की महत्वपूर्णतम घटनाओं में से महत्वपूर्ण घटना टोनी की जिंदगी से इंडोनेशिया में घट रही है। लेकिन सारा समाज, अदालतें, कानून, सब उसके खिलाफ खड़े हो गए हैं। टोनी ने एक प्रयोग किया है जो योग के बहुत गहरे प्रयोगों में से है। और वह प्रयोग है स्प्रिचुअल सर्जरी का–आध्यात्मिक शल्य चिकित्सा, आध्यात्मिक सर्जरी। यह शब्द भी ख्याल में नहीं पड़ता।
टोनी, किसी भी तरह का, जैसे आपके पेट में अपेंडिक्स है, तो टोनी बिना किसी औजार के दोनों हाथ–नंगे हाथ–आपके पेट पर रख देगा, आंख बंद करेगा, परमात्मा से प्रार्थना करेगा और दोनों हाथ आपके पेट में प्रवेश कर जाएंगे। चमड़ी जगह दे देगी बिना किसी औजार के! खालिस हाथ आपके पेट के भीतर पहुंच जाएंगे।
और यह पच्चीसों मेडिकल वैज्ञानिकों, डाक्टरों, सर्जनों के सामने यह घटना हो चुकी है। उसकी सब फिल्में ली जा चुकी हैं, सारी दुनिया में उनका प्रदर्शन हो चुका है। उसके हाथ भीतर पहुंच जाएंगे, उसकी आंखें बंद ही रहेंगी। वह आपके भीतर–खुले पेट के भीतर–आपके अपेंडिक्स को पकड़ेगा, हाथ से ही वापस खींच कर बाहर निकाल लेगा, तोड़ कर बाहर रख देगा, दोनों हाथ आपके पेट पर वापस फेरेगा, आपकी कटी हुई चमड़ी वापस जुड़ जाएगी। और दो दिन के बाद कोई निशान भी देखने को नहीं मिलेंगे कि कभी पेट में कोई काटा गया था!
अब ऐसे आदमी की कीमत होनी चाहिए, लेकिन इंडोनेशिया की सरकार उसके खिलाफ मुकदमा चला रही है। और मेडिकल एसोसिएशन ने उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर किया है कि उस आदमी के पास सर्जरी का लाइसेंस नहीं है तो वह सर्जरी कैसे कर सकता है?
आदमी के पागलपन का कोई हिसाब है! क्योंकि उसके पास किसी मेडिकल कालेज का सर्टिफिकेट नहीं है, वह एमड़ी. नहीं है, तो वह सर्जरी कैसे कर सकता है? और अदालत तो उसके खिलाफ वक्तव्य देगी, क्योंकि कानून तो सदा से अंधा है। उस आदमी को सरकार ने हुक्म दे दिया है कि वह अब कहीं भी सर्जरी नहीं कर सकता।
इस आदमी के पास पच्चीस मित्रों का एक समूह है। वे सब प्रार्थना और ध्यान करने वाले लोग हैं। उनसे पूछा जाता है तो वे कुछ भी नहीं बता सकते। वे कहते हैं, हम कुछ भी नहीं जानते। हम परमात्मा के हाथ में अपने को छोड़ देते हैं। फिर वह जो हमसे काम करवाता है, वह हम कर देते हैं। हम कुछ भी नहीं करते।लेकिन अगर यह आदमी बढ़ जाए तो मेडिकल प्रोफेशन का क्या होगा? सर्जन्स का क्या होगा? वे इसके खिलाफ उपद्रव करेंगे। वे इसको जालसाजियों में फंसाएंगे। यह गरीब आदमी है, सीधा-सादा आदमी है। उनके उपद्रव से परेशान होकर हाथ जोड़ लेगा कि ठीक है। मैं कुछ भी नहीं करता, माफी मांगे लेता हूं।
इस दुनिया में बहुत बार बहुत से चमत्कार घटित हुए हैं। हमने उन्हें बंद किया है। और हमने सदा ऐसी व्यवस्था की है कि इस तरह की बातें न हो पाएं, क्योंकि इन बातों के कारण हमारे जो इस्टैब्लिशमेंट होते हैं, हमारी जो व्यवस्थित संस्थाएं होती हैं, वे सब दिक्कत में पड़ जाती हैं। पड़ ही जाएंगी, क्योंकि उन सबका क्या होगा?
और फिर इन सब चीजों के आधार पर, जिसको हम बहुत वैज्ञानिकता कहते हैं, साइंटिफिक आउट लुक कहते हैं, वह भी दो कौड़ी का हो जाता है। क्योंकि ये बातें कुछ और दूर की खबर लाती हैं। टेड सीरिओ या टोनी जैसे लोगों के खिलाफ हम हो जाएंगे, क्योंकि हम कहेंगे कि ये बातें तो हमारी सारी व्यवस्था को तोड़ देंगी। अगर टेड सीरिओ दूसरे के घर के भीतर की चीजें देख सकता है, तो आज नहीं कल हम चिंतित हो जाएंगे कि हमारी तिजोड़ी भी देख सकता है! हम इनको रोकने की कोशिश करेंगे।
समाज योग की बहुत कीमती उपलब्धियों को दबाने की कोशिश करता रहा है। और स्वभावतः, जिन चीजों को हम बिल्कुल दबा दें, वे प्रकट होना बंद हो जाती हैं, क्योंकि उनके प्रकट होने के अवसर, परिस्थितियां हम रोक देते हैं।”
~ सरिता के विचार ✍️