शादी और समाज की दिखावटी दुनिया: एक चिंतन

आज के दौर में भौतिकता की दौड़ ने हमारे जीवन को इस तरह प्रभावित किया है कि हम धीरे-धीरे अपनी आत्मीयता और रिश्तों के प्रति सचेत नहीं रह गए हैं। खासकर शादी-विवाह के मामलों में विवाहिता का अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के प्रति जो सच्चा अपनापन और प्रेम होना चाहिए, वह आजकल नदारद सा हो गया है। अब विवाह के पहले उन्हें अपनी भावनाओं को छिपाना और कुछ हद तक अभिनय करना पड़ता है, क्योंकि समाज और माता-पिता के दिखावे के दबाव में, अब वे खुद को किसी मुसीबत में फंसा महसूस करते हैं।
आज के समय में, जहां माता-पिता अपने बच्चों को, समाज के दिखावे और भेड़चाल के दबाव में डालकर, गुलामी की शिक्षा व्यवस्था का हिस्सा बना देते हैं। यही कारण है कि वहां बच्चों को अपनी असल भावनाओं को कभी भी उन्हें व्यक्त करने का अवसर ही नहीं मिलता। वे पढ़ाई के लिए दूर हॉस्टल्स में भेजे जाते हैं और बाद में नौकरी के लिए भी उन्हीं के शहर से दूर रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चों के मन में उमड़ती समस्याएं और कष्ट उन्हें माता-पिता से छिपाने पड़ते हैं, क्योंकि वे खुद को कमजोर और असमर्थ महसूस करते हैं।
समाज का दिखावा और माता-पिता की उम्मीदें बच्चों के दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी हो जाती हैं कि वे खुद को एक कठोर और पत्थर दिल इंसान के रूप में ढालने लगते हैं। इसके कारण वे अपने अंदर के संवेदनशील और मार्मिक हिस्से को खो देते हैं। उनकी जिंदगी में दुख, दर्द, और आंसू गायब हो जाते हैं, और वे केवल एक दिखावटी जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं, जहां हंसी-ठिठोलियां भी नकली होती हैं।
यह सभी घटनाएं यह दर्शाती हैं कि आज के समाज की दौड़-भाग और भौतिकवादी मानसिकता ने बच्चों के अंदर की भावनाओं और विचारों को खत्म कर दिया है। अब उनके जीवन में केवल एक आभासी हंसी और खुशियों का प्रदर्शन ही बचा है, जबकि उनका असली अंतर्मन कहीं खो गया है।
~ सरिता प्रवाह ✍️
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