बुलबुल का संघर्ष स्वतन्त्रता के लिए

“प्रश्न: “जब आप माफियाओं और उनके चाकरों, गुलामों और भक्तों की आलोचना करते हो, उन्हें लुटेरा और प्रकृति का शत्रु कहते हो, तो फिर भला वे आपकी सहायता करेंगे क्यों ?
और जब माफियाओं और लुटेरों की चाकरी, भक्ति, गुलामी ना करने वाले आप जैसे लोगों को सहायता मांगनी पड़ रही है स्वतन्त्र जीवन जीने के लिए, तो फिर कोई आपको अपना आदर्श और गुरु मानेगा ही क्यों ?”
उत्तर: कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। एक घने जंगल के बीचोंबीच एक पहाड़ी थी, जहाँ चिड़ियों का एक छोटा सा गाँव था। हर सुबह सूरज की पहली किरणों के साथ चिड़ियाँ अपने घोंसलों से बाहर निकलतीं, गीत गातीं और भोजन की खोज में दूर-दूर तक उड़ जातीं। जीवन सरल था, परंतु सहज नहीं।
फिर एक दिन, एक बड़ी बाज़ ने उस पहाड़ी पर डेरा डाल दिया। बाज़ ताकतवर थी, तेज़ थी और अपनी चालाकी में माहिर। उसने आस-पास के छोटे पक्षियों को डराकर अपना आधिपत्य जमा लिया। उसने आदेश दिया कि सभी चिड़ियाँ अपने हिस्से का भोजन पहले उसे दें, फिर जो बच जाए, वह उनका। भयभीत पक्षी सहमत हो गए, क्योंकि बाज़ की तेज़ चोंच और पंजे उनके नन्हें पंजों से कहीं ज़्यादा भयानक थे।
समय बीतता गया। बाज़ ने कुछ चिड़ियों को अपना खास चाकर बना लिया। उनसे वादा किया कि वे अपनी इच्छानुसार भोजन ले सकते हैं, परंतु शर्त यह थी कि वे बाकी पक्षियों पर निगरानी रखें और उन्हें नियंत्रित करें। ये चिड़ियाँ धीरे-धीरे ‘भक्त और गुलाम’ बन गईं। उनके घोंसले बड़े और सुन्दर हो गए, लेकिन उनके पंख अब अपनी आज़ादी में नहीं, बाज़ की आज्ञा के इशारों पर उड़ते थे।
लेकिन हर कहानी में एक ‘दूसरी चिड़िया’ भी होती है। इस जंगल में यह चिड़िया एक छोटी सी बुलबुल थी। बुलबुल ने कभी बाज़ के डर को स्वीकार नहीं किया। उसने बाज के चाकरों और भक्तों से ना तो भयभीत हुई, ना भक्ति की, और ना ही भोजन में हिस्सा दिया। वह अकेली ही उड़ती, अपनी जरूरतें खुद पूरी करती और जंगल के अन्य पक्षियों को समझाती रहती, “बाज़ तुम्हारा शत्रु है। उसकी चाकरी करना, अपनी आज़ादी का सौदा करना है।”
पक्षी उसकी बातें सुनते, पर भय के कारण कुछ कहने या करने की हिम्मत नहीं करते। लेकिन बुलबुल डटी रही।
एक दिन एक नन्हा तोता, जो चाकरों की सेवा से थक चुका था, बुलबुल के पास आया। “तुम्हारी बातों में सच्चाई है,” तोते ने कहा, “लेकिन हम छोटे पक्षी उस बाज़ से कैसे लड़ सकते हैं?”
बुलबुल ने कहा, “लड़ाई करने के लिए पहले खुद पर भरोसा करना सीखो। उसकी चाकरी छोड़ो, अपने हिस्से का भोजन खुद ढूंढो। हाँ, यह कठिन होगा। हाँ, यह अकेला महसूस होगा। लेकिन यही तुम्हारी आज़ादी की पहली उड़ान होगी।”
ओशो कहते थे; “जिसने पहला कदम उठा लिया, वह अंतिम कदम भी उठा लेगा। कठिनाई केवल पहला कदम उठाने में ही है।”
तोते ने बुलबुल की बात मानी। उसने धीरे-धीरे खुद पर निर्भर होना सीखा और बाज़ की चाकरी छोड़ दी। यह देखकर, कुछ और पक्षी भी उसके साथ जुड़ गए। बाज़ को यह सहन नहीं हुआ। उसने बुलबुल को मारने की कोशिश की, लेकिन बुलबुल चपल थी। वह बाज़ के पंजों से बच निकली और अपनी आवाज़ से जंगल गूंजा दिया, “जो डर से आज़ादी का सौदा करते हैं, वे हमेशा गुलाम ही रहते हैं। अगर बाज़ को हराना है, तो अपने डर पर विजय पानी होगी!”
अब वापस प्रश्न पर आते हैं:
जब कोई माफिया, लुटेरा, या शोषणकर्ता आपसे सहानुभूति नहीं रखता, तो आश्चर्य क्यों?
क्या बाज़ बुलबुल की सहायता करेगा?
कभी नहीं। बाज़ को तो अपनी ताकत और सत्ता कायम रखनी है।
और जब कोई बुलबुल, बाज़ की चाकरी छोड़, अपनी स्वतन्त्रता की बात करता है और स्वयं समाज द्वारा बहिष्कृत हो जाता है, तो लोग उसे आदर्श क्यों मानेंगे?
स्वतन्त्रता की कीमत क्या होती है—त्याग, संघर्ष और साहस ?
भला कौन आज मुसीबत मोल लेना चाहेगा ऐसे व्यक्ति की सहायता करके, जो स्वयं गुलामों के समाज द्वारा बहिष्कृत हो ?
यह कहानी केवल पक्षियों की नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी का आईना है। जो लोग स्वतन्त्रता की राह चुनते हैं, वे अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। लेकिन उनकी स्वतन्त्रता और आत्मसम्मान, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनती है।
माफिया और उनके भक्त भला ऐसे लोगों की सहायता क्यों करेंगे, जो उनके रास्ते में रोड़ा बनकर खड़े हैं ?
उनके भक्त, चाकर और गुलाम भला ऐसे लोगों को अपना आदर्श क्यों मानेंगे?
लेकिन फिर भी बहुत से लोग ऐसे होते हैं हर समाज में, जो उनकी सहायता करते हैं जो स्वतन्त्र होना चाहते हैं। स्वतन्त्रता सेनानियों की भी सहायता की थी लोगों ने और सहायता करने के बदले उन्हें यातनाएं भी सहनी पड़ी और बहुतों को अपने प्राण भी गँवाने पड़े थे।
मैं भी यदि सहायता मांगता हूँ, तो इस आस से कि कुछ लोग अभी भी मानसिक रूप से गुलाम नहीं हुए हैं। कुछ लोगों में अभी भी मानवता बची हुई है। और वे मेरी सहायता अवश्य करेंगे।
~ विशुद्ध चैतन्य
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