मौन साथी और समाज की अंधी सड़कें

कुछ महीनों पहले, मेरे जीवन में एक अद्भुत अनुभव हुआ। एक बिल्ली ने मेरे घर में चार नन्हे बच्चों को जन्म दिया। कुछ समय बाद, वह कहीं गायब हो गई, लेकिन अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ गई, जैसे वह जानती हो कि मैं उनकी देखभाल करूंगा। उन नन्हे प्राणियों का मेरे साथ ऐसा गहरा लगाव हो गया कि वे मेरी छाया बन गए। जहां मैं जाता, वे मेरे साथ चलते।
शुरुआत में, जब गाँव के लोगों को पता चला कि मैंने इन बिल्लियों को अपनाया है, तो उनकी प्रतिक्रियाएं चौंकाने वाली थीं। हमारे गाँव में यह मान्यता है कि बिल्ली पालना अशुभ होता है। लेकिन मैं इन अंधविश्वासों से परे था। मेरे लिए वे केवल जानवर नहीं थे, बल्कि परिवार का हिस्सा बन गए थे।
दुर्भाग्य से, नियति ने मेरी खुशियों को गहरा आघात दिया। कुछ दिन पहले, इनमें से एक बच्चा सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। और आज, दूसरा बच्चा भी उसी क्रूर सड़क पर कुचल दिया गया।
यह गाँव की वही सड़क है जहां बकरी का बच्चा दिखते ही गाड़ियाँ रुक जाती हैं। लेकिन बिल्ली के बच्चों को कोई नहीं देखता। यह बात मुझे कचोटती है—ऐसे निडर प्राणी, जो साँप का भी सामना कर सकते थे, वे इन निर्दयी पहियों के नीचे दब गए। अब केवल एक बच्चा बचा है। पर कब तक? मैं सोचता हूँ, क्या इस गाँव में उसके लिए कोई जगह बची है?
समाज के साथ मेरा यह अकेलापन नया नहीं है। मैं अक्सर महसूस करता हूँ कि यह समाज एक ऐसा जंगल बन चुका है जहां लोग मानवीय संवेदनाओं को खो चुके हैं। वे केवल खुद की सुविधा और स्वार्थ को महत्व देते हैं। उनसे बात करना ऐसा है जैसे पत्थरों से संवाद करना। वे मेरी बातें नहीं समझते, और उनकी बातें मुझे समझ नहीं आती।
इसीलिए, मैं शहरों और समाज के कोलाहल से दूर रहना पसंद करता हूँ। पशुओं के साथ वक्त बिताना, उनसे बातें करना, मेरे लिए सुकून का जरिया है। वे मौन रहकर भी ऐसा एहसास देते हैं जो मनुष्य कभी नहीं दे सकते। जब मैं अकेला होता हूँ, तो वे चुपचाप मेरे पास आकर बैठ जाते हैं। बिना कुछ कहे वे यह विश्वास दिलाते हैं, “तुम अकेले नहीं हो, हम तुम्हारे साथ हैं।”
इन मासूम प्राणियों का स्नेह मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं। शायद, इन्हीं के माध्यम से प्रकृति मुझे यह संदेश देती है कि सच्चा अपनापन और सच्चा प्रेम उन्हीं में मिलता है, जो बिना शर्त हमें स्वीकार करते हैं।
~ विशुद्ध चैतन्य
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