त्याग और स्वतंत्रता: मेरी जीवन की क्रांति

25-30 वर्ष पहले जो घरों की शान हुआ करते थे, जिन्हें बड़े सम्मान और गर्व के साथ रखा जाता था, आज लोग उन्हें भूल चुके हैं। आज कोई दहेज में कैसेट डेक या टू-इन-वन नहीं मांगता।

जानते हैं क्यों ?
क्योंकि उपयोगी वस्तु हो, पशु हो, या इंसान, एक दिन अनुपयोगी हो जाता है। एक दिन उससे बेहतर कोई और विकल्प निकल आता है और पुराना कबाड़ में चला जाता है, या बेच दिया जाता है।
मैंने जिस दिन से स्वयं को जाना, समझा, उस दिन से स्वयं को उपयोगी वस्तुओं, पशुओं और गुलामों की सूची से अलग कर लिया। अब मैं न तो उपयोगी वस्तु रहा, ना उपयोगी पशु रहा और ना ही उपयोगी नौकर, गुलाम, चापलूस या भक्त।
सत्य तो यह है कि मैं अब निरुपयोगी हो गया हूँ। अब मैं किसी के कोई काम नहीं आ सकता। और जो काम ना सके, वह भूली बिसरी यादें हो जाते हैं।
मैं उन लोगों के लिए भूली-बिसरी याद बन चुका हूँ, जो मुझसे आशाएँ लगाए बैठे थे। वे सोचते थे कि मैं उनके एजेंडे को आगे बढ़ाऊंगा। उनकी आशाएँ उस दिन धराशायी हो गईं, जब मैंने आश्रम छोड़ दिया। उन्होंने सोचा था कि मैं हिंदुत्व का झंडाबरदार बनकर, कट्टरपंथ का सहारा लूंगा। लेकिन मैंने उनके सारे भ्रम तोड़ दिए।
स्वतंत्रता की राह
उनकी सारी आशाएँ मिट्टी में मिल गयी उस दिन, जिस दिन मैंने आश्रम का त्याग कर गाँव में छोटी से भूमि लीज़ में लेकर स्वतंत्र जीवन जीने की घोषणा कर दी।
भले मुझे अभी कठिनाइयों का सामना कर रहा है, क्योंकि मैं अभी तक अपनी भूमि पर काम शुरू नहीं कर पाया हूँ धनाभाव के कारण। लेकिन मैं खुश हूँ, क्योंकि अब मैं किसी संस्था, आश्रम, संगठन, पार्टी, सरकार का गुलाम नहीं हूँ। अब मैं स्वतंत्र हूँ अपने अंदाज़ में जीने के लिए।
मेरे जैसे लोगों को उनसे कोई सहयोग या समर्थन नहीं मिलेगा, जिन्हें उपयोगी पशु, गुलाम, चापलूस पालने का शौक है। राजनेता, हिन्दुत्व के ठेकेदार और उनके भक्त तो उसी दिन मुझसे दूरी बना लिए थे, जब मैंने आश्रम त्यागा था। बाकी जिन लोगों ने देश के लुटेरों और माफियाओं की भक्ति, चाकरी और गुलामी स्वीकार ली है, वे भी दूर हो गए।
सच्चे लोग और नई आशाएँ
मेरा मानना है कि जो हुआ अच्छा हुआ और यही मेरे जीवन का असली पुरस्कार है।। अब मुझसे वही लोग जुड़ना पसंद करेंगे जो मुझे मेरी मौलिकता और स्वतन्त्रता के साथ स्वीकार पाने का साहस करेंगे। वही लोग मेरी सहायता के लिए आगे आएंगे, जिन्हें देश के लुटेरों और माफियाओं की गुलामी स्वीकार नहीं। और यही मेरे जीवन का वास्तविक पुरस्कार है।
मैं जानता हूँ, इस राह पर चलना आसान नहीं है। लेकिन क्या स्वतंत्रता कभी आसान होती है?
मुझे किसी की स्वीकृति की जरूरत नहीं। मैं उन राजनेताओं, ठेकेदारों और चापलूसों की भीड़ से अलग हूँ, जिनके लिए इंसान सिर्फ एक उपयोगी उपकरण है। उन्होंने मुझसे दूरी बना ली, और मैंने उनसे।
जो मेरे साथ खड़े हैं, वे स्वतंत्रता के समर्थक और सच्चे योद्धा हैं। बाकी के लिए मैं बस एक भूली-बिसरी याद हूँ।
यह मेरी कहानी नहीं, यह हर उस इंसान की कहानी है जिसने गुलामी और चापलूसी को त्यागकर अपने जीवन को नई परिभाषा दी।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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