चिंकी और गाँव की सड़क पर दौड़ती मौत

यह है चिंकी। इसके भाई-बहन, रिंकी और मोटू, इसी महीने सड़क दुर्घटना का शिकार हो गए और इसे अकेला छोड़ गए। अब यह दिनभर उन्हें खोजती रहती है। जब वे नहीं मिलते, तो मेरे गोद में आकर बैठ जाती है और जाने क्या-क्या बड़बड़ाती रहती है।

यह वही चिंकी है जो दो दिन पहले तक अपने में मस्त रहती थी। यह बहुत कम बोलती थी। दिनभर खेतों में घूमती, साँप खोजती और हर दो-तीन दिन में किसी साँप का शिकार कर लेती थी। पर आज वही चिंकी कहीं नहीं जाती। दिनभर मेरे आसपास मंडराती है, और जब मैं कहीं बैठा होता हूँ, तो गोद में आकर सो जाती है।
कभी-कभी सोचता हूँ, वे कैसे लोग होंगे, जो इतने प्यारे प्राणी को अपनी गाड़ी के नीचे कुचल जाते हैं?
अगर शहरी सड़क होती, तो समझ में आता कि वहाँ इंसानों की जगह ज़ोंबी (जिंदा लाशें) बसते हैं। वे सभी हमेशा जल्दी में रहते हैं, दौड़ते हैं, लेकिन किस लिए? बरबादी के लिए, प्रकृति से दूर होने के लिए, शैतान के गुलाम बनने के लिए।
पर गाँव की सड़कों पर यह हाल क्यों हो रहा है? गाँवों में कब से शैतान के गुलाम दौड़ने लगे?
चाहे मैं इसे कितना भी झुठलाना चाहूँ, पर सच्चाई यही है कि गाँव भी अब शैतान के शिकंजे में जकड़ चुका है। गाँव में भी इंसानों की जगह शैतान के गुलाम पैदा होने लगे हैं। क्योंकि गाँव में भी अब विदेशी शिक्षा पद्धति पर आधारित स्कूल खुल चुके हैं। इन स्कूलों में शिक्षा के नाम पर गुलामी सिखाई जा रही है।
गाँव के स्कूल अब बच्चों को अच्छे संस्कार, बड़ों का मान-सम्मान, कृषि विज्ञान या गृह विज्ञान नहीं सिखाते। अब तो सिखाया जाता है कि सरकारी नौकर बनने के लिए या माफिया संस्कृति का हिस्सा बनने के लिए अच्छे अंक कैसे लाए जाएँ।
इसीलिए अब गाँव की सड़कें भी नन्हें जीवों के लिए सुरक्षित नहीं रहीं। गाँवों की सड़कों पर भी ज़ोंबी (जिंदा लाशें) अपनी गाड़ियाँ दौड़ाने लगी हैं।
चिंकी का अकेलापन मुझे गाँव और समाज की इस सच्चाई का एहसास कराता है। एक समय था जब गाँव शांत और सुरक्षित थे। लेकिन अब गाँव भी उसी दिशा में जा रहे हैं, जहाँ इंसानियत, प्रकृति और प्रेम के लिए कोई जगह नहीं बची।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
