उपभोक्तावाद के गुलाम: इंसान का घटता महत्व और जागरूकता की राह

आज का समाज उपभोक्तावाद पर आधारित कर्मवाद से ग्रस्त है, जहां इंसानों का महत्व उन्हीं पुराने रेडियो और टीवी सेट्स जैसा हो गया है, जो कभी घरों की शान हुआ करते थे और आज कचरे के ढेर में पड़े हैं। इन उपकरणों की तरह ही, इंसानों को भी तब तक महत्व दिया जाता है, जब तक वे उपयोगी हैं। उपयोगिता समाप्त होने या किसी बेहतर विकल्प के मिलते ही, उन्हें भी समाज द्वारा अनदेखा कर दिया जाता है।

गुलामी से मुक्ति का मार्ग
ऐसे समाज में, जागरूक व्यक्ति खुद को समय रहते इन बेड़ियों से मुक्त कर लेता है। वह अपने लिए एक अलग राह चुनता है—एक ऐसी दुनिया, जो न केवल स्वतंत्रता का अनुभव देती है, बल्कि आत्मसम्मान को भी बनाए रखती है। यदि आप सच में अपने परिवार और अपने प्रियजनों के साथ खड़े हैं, तो आपका साथ उस उम्र तक बना रहेगा, जब उपभोक्तावादी समाज अन्य बुजुर्गों को वृद्धाश्रम या सड़कों पर भटकने के लिए छोड़ देता है।

स्वावलंबन का महत्व
व्यक्तिगत अनुभव यह बताता है कि यदि आप आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से मजबूत नहीं हैं, तो अकेले जीने का अभ्यास करना शुरू कर दें। क्योंकि जिनके पास कुछ नहीं होता, उनके अपने भी कोई नहीं होते।

एक दिन बच्चे बड़े हो जाएंगे और वे अपनी दुनिया बसा लेंगे। शुरू-शुरू में वे तीज त्योहारों में आ जाया करेंगे मिलने, फिर व्यस्त हो जाएँगे अपनी दुनिया में। उनके पास समय नहीं होगा आपसे बातें करने का और आप उनके फोन आने की आस में हर रोज़ फोन पर नजर जमाये रहोगे।
फिर एक दिन ऐसा भी आएगा जब कई कई महीनों तक कोई फोन नहीं आएगा। ना कोई यार-दोस्त, ना कोई सगा-सम्बन्धी फोन करेगा। आप अपना फोन मेकेनिक के पास ले जाओगे दिखाने कि देखो कहीं ये फोन खराब तो नहीं हो गया ???
लेकिन यदि आपने इतनी व्यवस्था बना रखी है कि जब कोई भी आपका सहयोग न करे, तब भी आप अपना जीवनयापन कर सकें, तो कुछ ऐसे पशुओं को पाल लें, जो आपको अपने सगे से भी अधिक अपने होने का एहसास कराएंगे।
आज भी बहुत से परिवारों में ऐसी स्थिति है कि बड़े-बुजुर्गों के आने जाने से घर के किसी सदस्य को कोई फर्क नहीं पड़ता। सभी अपने अपने कामों में व्यस्त रहते हैं, साधारण शिष्टाचार यानि नमस्ते करने का भी समय नहीं होता उनके पास।
ऐसे में यदि आपने कोई बिल्ली या कुत्ता पाल रखा है, तो आप पाएंगे कि जब कोई आपका स्वागत नहीं करता, तब वे आपके स्वागत के लिए खड़े मिलेंगे। वे आपसे ऐसे मिलेंगे जैसे कई बरसों बाद मिले हैं। उनके स्वागत में, उनके प्रेम में इतनी गर्मी होगी, इतना अपनापन होगा कि आप केवल उन्हीं के लिए जीना चाहेंगे।
जिन्होंने पेट्स पाल रखे हैं, वे अवश्य मुझसे सहमत होंगे।
आज लोग सोशल मीडिया पर शुभकामनाओं के स्टिकर्स, इमोजी और गिफ्ट्स भेजने में तो आगे रहते हैं, लेकिन असली मदद या मिठाई का डिब्बा भेजने वाले बिरले ही होते हैं। यदि आपको ऐसा कोई व्यक्ति मिल जाए, तो खुद को सौभाग्यशाली समझिए।
निष्कर्ष:
उपभोक्तावाद के इस युग में, अपनी स्वतंत्रता, स्वाभिमान और असली रिश्तों को पहचानने और उन्हें संजोने का समय आ गया है। यह समाज हमें भले ही उपकरणों जैसा समझे, परंतु अपनी जागरूकता से हम इस सोच को बदल सकते हैं।
~ स्वामी विशुद्ध चैतन्य

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