बाजार में बिकने वाले कौशल को आज हुनर कहते हैं

आज की दुनिया में हुनर, उसका उपयोग और उसकी कद्र तीनों का मोल अलग-अलग नजर आता है। समाज की इस व्यवस्था में, जहाँ जुमलेबाज नेताओं और सामाजिक भेदभाव फैलाने वालों को करोड़ों का अनुदान मिलता है, वहीं सच्चे और ईमानदार प्रयासों की कद्र करना जैसे भूल गया है। यह लेख समाज के इसी विरोधाभास पर आधारित है।
हुनर की परिभाषा
हुनर का अर्थ केवल कला, कौशल, या विशेष ज्ञान नहीं है। यह एक ऐसा गुण है जो व्यक्ति को न केवल अपनी आजीविका कमाने में मदद करता है, बल्कि समाज को कुछ मूल्यवान देने का भी अवसर प्रदान करता है। परंतु आज की वास्तविकता यह है कि हुनर को केवल “बाजार में बिकने वाले कौशल” तक सीमित कर दिया गया है।
एक उपन्यासकार अपनी लेखनी से समाज के दिलों पर छा जाता है, एक कथावाचक अपनी बातों से श्रद्धालुओं की भावनाओं को छू लेता है, और एक नेता अपने जुमलों से जनता को बरगलाकर उनकी मेहनत की कमाई से अपना खजाना भर लेता है। इनकी हर बात को हुनर मानकर समाज उन्हें सिर आंखों पर बिठाता है। लेकिन जो लोग सत्य, ईमानदारी, और समाज की भलाई के लिए काम करते हैं, उनसे यह पूछा जाता है कि “आपमें ऐसा क्या खास है जिससे हम आपको दान दें?”
सत्य और ईमानदारी का संकट
जो लोग अपने धर्म, जाति, या किसी राजनीतिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार में जुटे रहते हैं, उन्हें समाज हर प्रकार की मदद करने को तत्पर रहता है। लेकिन जो लोग सत्य की राह पर चलते हैं, जो बिना किसी भेदभाव के सबके लिए काम करते हैं, उन्हें अक्सर समाज की उपेक्षा झेलनी पड़ती है।
यह एक बड़ा विरोधाभास है कि एक तरफ हम सत्य और धर्म की बात करते हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं मूल्यों पर चलने वालों की अनदेखी करते हैं। इसका कारण शायद यह है कि सत्य की राह कठिन है, और समाज स्वार्थ व लालच की चकाचौंध में इतना उलझ गया है कि उसे सत्य का मूल्य समझने की फुर्सत ही नहीं है।
दान का वास्तविक अर्थ
भारत एक ऐसा देश है जो “दान” की परंपरा के लिए जाना जाता है। प्राचीन काल से ही यहाँ अन्नदान, विद्यादान, और ज्ञानदान की परंपरा रही है। लेकिन आज “दान” का अर्थ बदल गया है। अब दान एक निवेश की तरह हो गया है, जहाँ लोग यह पूछते हैं कि “मुझे इससे क्या लाभ होगा?”
इस मानसिकता के कारण आज समाज में उन लोगों को दान अधिक मिलता है, जो धर्म, जाति, या किसी अन्य प्रकार की पहचान को भुनाकर समाज को बांटने का काम करते हैं। वहीं जो व्यक्ति एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए काम करता है, उसे दान देने से पहले सौ बार सोचा जाता है।
हुनर का व्यवसायीकरण
आज का समाज हुनर को केवल आर्थिक दृष्टिकोण से देखता है। अगर आपका हुनर पैसे कमाने में सक्षम नहीं है, तो वह हुनर बेकार है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हर हुनर का मोल केवल पैसे में मापा जा सकता है?
उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो बच्चों को नैतिकता सिखाता है, उसका मोल क्या केवल उसकी तनख्वाह से मापा जा सकता है? एक समाजसेवी जो बिना किसी स्वार्थ के जरूरतमंदों की मदद करता है, क्या उसका योगदान केवल उसकी फंडिंग से आंका जा सकता है?
हुनर का असली मोल इस बात में है कि वह समाज को कितना बेहतर बना सकता है। लेकिन आज के युग में, जब तक हुनर “बिक” न जाए, तब तक उसकी कद्र नहीं होती।
समाज की प्राथमिकताएँ
समाज की प्राथमिकताएँ आज पूरी तरह बदल चुकी हैं। जो चीजें वास्तव में महत्वपूर्ण हैं, उनकी ओर ध्यान देना बंद हो गया है। इसके बजाय, लोग उन्हीं चीजों का समर्थन करते हैं जो उन्हें तुरंत लाभ पहुंचा सकती हैं।
एक नेता जो जुमलेबाजी करता है, उसे जनता वोट और चंदा दोनों देती है। एक कथावाचक जो भीड़ को अपनी बातों से बांधता है, उसे दान-दक्षिणा से लाद दिया जाता है। लेकिन एक साधारण व्यक्ति जो समाज में सच्चाई और भलाई का संदेश फैलाने का प्रयास करता है, उसे केवल प्रश्नों का सामना करना पड़ता है।
“आपका योगदान क्या है?”
“आपके काम से हमें क्या लाभ?”
“आपको दान क्यों दें?”
सामाजिक चेतना का अभाव
समाज में चेतना का अभाव है। लोग यह नहीं समझते कि अगर वे केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए ही दान करेंगे, तो समाज में सकारात्मक बदलाव कभी नहीं आएगा।
दान का असली उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि सामूहिक भलाई होनी चाहिए। लेकिन आज के युग में, जब हर चीज का मूल्य “मुझे इससे क्या मिलेगा” के आधार पर तय किया जाता है, तब समाज के नैतिक पतन को रोक पाना बहुत कठिन हो गया है।
समाज को बदलने की आवश्यकता
समाज को अपनी सोच बदलनी होगी। यह समझना होगा कि हर व्यक्ति का योगदान महत्वपूर्ण है, और हर हुनर का मोल केवल आर्थिक लाभ से नहीं आंका जा सकता।
हमें यह सवाल पूछना बंद करना होगा कि “हमें इससे क्या मिलेगा,” और इसके बजाय यह सोचना होगा कि “हम समाज को क्या दे सकते हैं।”
निष्कर्ष
आज के समय में समाज के सोचने का ढंग ही हमारे सबसे बड़े संकट का कारण बन गया है। जो लोग समाज को तोड़ते हैं, उन्हें समर्थन मिलता है, और जो लोग समाज को जोड़ने की कोशिश करते हैं, उन्हें नजरअंदाज किया जाता है।
हमें यह समझना होगा कि सच्चा हुनर केवल पैसा कमाने का नहीं है, बल्कि समाज को जोड़ने और बेहतर बनाने का है। हमें उन लोगों का समर्थन करना चाहिए जो बिना किसी स्वार्थ के समाज के लिए काम करते हैं।
जब तक समाज अपनी सोच नहीं बदलेगा, तब तक सच्चे हुनर की कद्र नहीं होगी। और जब तक सच्चे हुनर की कद्र नहीं होगी, तब तक एक बेहतर समाज का सपना अधूरा ही रहेगा।
~ स्वामी विशुद्ध चैतन्य
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