स्वयं को स्वीकारें: अपनी मौलिकता का सम्मान करें

बचपन से हमें यह सिखाया जाता है कि हमें दूसरों जैसा बनना चाहिए। माता-पिता, परिवार और समाज अक्सर हमें वैसे स्वीकार नहीं कर पाते जैसे हम वास्तव में होते हैं। परिणामस्वरूप, हम अपनी मौलिकता को दबा देते हैं और दूसरों की नकल करने की होड़ में लग जाते हैं।
हमारी शिक्षा, परिवेश और सामाजिक अपेक्षाओं ने हमें यह नहीं सिखाया कि हम अपनी विशिष्टता के साथ जन्मे हैं। हमारे भीतर कुछ ऐसे मौलिक गुण हैं, जो केवल हमारे ही हैं। हमें दूसरों की परछाई नहीं बनना है, बल्कि उस अद्वितीय व्यक्तित्व को पहचानना और निखारना है, जिसके लिए हमारा जन्म हुआ है।
दूसरों की नकल से कोई महान नहीं बनता
आज अधिकांश लोग अपने आप से संतुष्ट नहीं हैं। युवा वर्ग, विशेष रूप से, स्वयं को स्वीकारने के बजाय, दूसरों के जैसा बनने की कोशिश में अपनी पहचान खोता जा रहा है।
स्मरण रखें, नकल करने वाले चाहे गायक हों, मिमिक्री कलाकार हों या कोई अन्य पेशेवर, वे कभी भी मूल रचनाकार जैसा प्रभाव नहीं छोड़ सकते। मुकेश, किशोर कुमार, मोहम्मद रफ़ी, और लता मंगेशकर जैसे महान कलाकार जब तक दूसरों की नकल कर रहे थे, पहचान नहीं बना पाए। लेकिन जैसे ही उन्होंने अपनी मौलिकता को पहचाना और उसे निखारा, वे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए।
स्वयं को स्वीकार करना क्यों जरूरी है?
स्वयं को स्वीकार करें, पर इस उद्देश्य से नहीं कि आपको समाज में मान-सम्मान मिलेगा या प्रशंसा होगी। स्वयं को इसलिए स्वीकारें क्योंकि आप ईश्वर की रचना हैं और जैसे भी हैं, ठीक हैं।
कई बार ऐसा होता है कि अपनी मौलिकता में जीने वाले व्यक्ति को समाज अनदेखा कर देता है। क्योंकि उनकी मौलिकता से किसी को कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं होता। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि उनकी मौलिकता का महत्व नहीं है।
मौलिकता का मार्ग कठिन हो सकता है
जो लोग भीड़ से अलग चलने और अपनी पहचान बनाए रखने का साहस करते हैं, उन्हें अक्सर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
- कई बार समाज ऐसे व्यक्तियों को सूली पर चढ़ा देता है।
- कभी उन्हें जहर देकर मार दिया जाता है।
- कभी जेलों में डालकर यातनाएं दी जाती हैं।
- और कभी-कभी उनकी मौलिकता से आहत होकर उनके जीवन को समाप्त कर दिया जाता है।
यह सब इसलिए होता है क्योंकि ऐसे लोग व्यवस्था, लुटेरों और माफियाओं के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं। उनकी मौलिकता इन लोगों के स्वार्थ को चुनौती देती है।
अपनी मौलिकता को अपनाने का साहस करें
अगर आपने अपनी मौलिकता को अपनाने का निर्णय लिया है, तो हर तरह के परिणामों के लिए तैयार रहना होगा। लेकिन यह साहस और आत्मस्वीकृति आपको एक अद्वितीय आंतरिक संतोष प्रदान करेगी, जो किसी बाहरी मान्यता से कहीं अधिक मूल्यवान है।
याद रखें: अपनी मौलिकता में जीना सबसे बड़ा साहस और सबसे बड़ी उपलब्धि है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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