अकेलेपन से जागृति तक: एक आत्मिक यात्रा

जागरूकता की पहली किरण
पहले मैं संगठन, संस्था, समाज को बहुत महत्व देता था, क्योंकि मैं जागृत नहीं था। लेकिन जिस दिन जागा, उस दिन से फिर कभी किसी संस्था, संगठन, समाज से जुड़ने की इच्छा नहीं हुई। किसी विवशता में यदि जुड़ा भी, तो उस भीड़ में एक एलियन, एक अजनबी की तरह ही रहा।
रफी साहब की आवाज़
एक गीत हमेशा मेरे भीतर गूँजता रहता है और वह है रफी साहब का “यहाँ मैं अजनबी हूँ।” यह गीत मेरे उन अनुभवों को बयां करता है जहाँ मैंने समाज में अपनी अलग पहचान महसूस की।
गीत के बोल:
कभी पहले देखा नहीं ये समाँ
ये मैं भूल से आ गया हूँ कहाँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
मैं जो हूँ बस वही हूँ
मैं जो हूँ बस वही हूँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
यहाँ मैं अजनबी हूँ
कहाँ शाम-ओ-सहर ये
कहाँ दिन-रात मेरे
बहुत रुसवा हुए हैं
यहाँ जज़्बात मेरे
नई तहज़ीब है ये
नया है ये ज़माना
मगर मैं आदमी हूँ
वही सदियों पुराना
मैं क्या जानूँ ये बातें
ज़रा इन्साफ़ करना
मेरी ग़ुस्ताख़ियों को
ख़ुदारा माफ़ करना
समाज से दूर
बचपन से ही किसी परिवार, समाज, संस्था, संगठन में सहज नहीं रह पाया। बड़े होने के बाद यह दूरी और भी बढ़ गयी। क्योंकि किसी भी समाज, संगठन, संस्था, सरकार, परिवार को मेरी रुचियों, भावनाओं, आवश्यकताओं में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्हें केवल अपने लिए मजदूर, नौकर, चापलूस, प्रचारक चाहिए। उन्हें जागृत व्यक्ति नहीं, बेहोश गुलाम और मवेशी चाहिए।
ध्यान से यदि देखें समाज, सरकार, संस्थाओं को, तो पाएंगे कि सभी ऐसे दड़बे या पिंजरे हैं, जिनमें कैद सदस्य उन मवेशियों की तरह है, जिन्हें केवल चारा, दाना पानी से मतलब होता है। जिन्हें पाला जाता है दोहन करने के लिए, उपयोग करने के लिए। और जिस दिन वे उपयोगी नहीं रह जाते, उन्हें सड़कों पर लावारिस छोड़ दिया जाता है भटकने के लिए। या फिर पशु-वध शालाओं को बेच दिया जाता है, चमड़ा और मांस के लिए।
यदि समाज, संस्था या सरकार कुछ भी करती है किसी के लिए, किसी प्रकार की सहायता भी करती है, तो ढिंढोरा पीटती है। कोई जब अपनी लगन, परिश्रम के बल पर उभरने लगता है, आर्थिक रूप से सक्षम होने लगता है, तब सरकार पहुँच जाती है टैक्स वसूलने, संस्था संगठन पहुँच जाते हैं दान-अनुदान बटोरने। लेकिन जब कोई किसी बीमारी से ग्रस्त होकर इलाज के अभाव में मर रहा होता है, तब किसी को चिंता नहीं होती। जब कोई फुटपाठ पर पड़ा होता है, तब ना सरकारों को दिखाई पड़ता है, न संस्थाओं को दिखाई पड़ता है।
ओशो से प्रेरणा
मैं ओशो से प्रभावित था, क्योंकि ओशो ही एकमात्र ऐसे गुरु थे जो किसी को बांधते नहीं थे। ओशो कहते थे:
“मैं चाहता हूं कि आप सभी स्वयं बनें — किसी के अनुयायी नहीं, यहाँ तक कि मेरे भी नहीं, बल्कि सहयात्री। आप एक-दूसरे के साथ अपने अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकते हैं, लेकिन अपने मार्गों का नहीं। क्योंकि आपका मार्ग केवल आपका है, विशेष रूप से आपका। उस मार्ग पर न तो पहले कभी कोई चला है और न ही कोई चलेगा — केवल आप। यह अस्तित्व की सुंदरता है — यह हर किसी को स्थान देता है, प्रत्येक व्यक्ति को अद्वितीय बनाता है।”
असमंजस और संघर्ष
कम्यूनिटी चाहे जैसी भी हो, उसके अपने कुछ नियम और कानून होते हैं। इसलिए मैंने ओशो समूह से भी दूरी बनाए रखी। मैं अपने लिए नहीं जी रहा, बल्कि समाज को जागृत करने के लिए जी रहा हूँ।
चुनौतियाँ और अकेलापन
एक वर्ष से अधिक हो गया आश्रम और दड़बों से बाहर निकले। मैंने किसी गाँव में मुक्त और स्वतंत्र जीने के लिए कदम बढ़ाया। कई शुभचिंतकों ने सहयोग का आश्वासन दिया था, लेकिन जब उन्हें लगा कि मैं उनके दड़बों का प्रचार नहीं करूंगा, तो वे गायब हो गए।
आर्थिक कठिनाइयाँ
एक वर्ष में पचास हज़ार रुपयों की भी व्यवस्था नहीं कर पाया एक झोंपड़ी बनाकर अपने लिए कृषि योग्य भूमि तैयार करने के लिए। मैं मूर्ख समझ रहा था कि मेरे फॉलोवर्स बहुत हैं और वे मेरा सहयोग करेंगे। लेकिन अब समझ आया कि वास्तविकता कुछ और ही है।
समाज की वास्तविकता को समझना
मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ वह मेरे प्रयोग के साथ-साथ समाज को उसके वास्तविक रूप में समझने की चेष्टा है। समाज अपने मास्क के पीछे धार्मिकता, पूजा-पाठ, व्रत उपवास की नौटंकी और शराफत छुपाकर रखता है। मेरे अनुभवों से यही निष्कर्ष निकला है कि ओशो भी ठीक थे और रामदेव भी ठीक हैं, लेकिन गलत हैं वे लोग जो भोजन-भजन शयन को आध्यात्म मानकर जी रहे हैं।
मेरा मिशन
मैं अपने लिए नहीं जी रहा हूँ। मैं समाज को जागृत करने के लिए जी रहा हूँ। मेरे पास कमाने के बहुत से रास्ते हैं, लेकिन मैंने खुद बंद किए हैं ताकि मैं नया मार्ग खोज सकूं। मैं धन के पीछे नहीं भाग रहा हूँ। मेरा मार्ग यूनिक है और मैं अकेला ही हूँ।
आपकी सहायता की आवश्यकता
मेरी गरीबी, बेरोजगारी से आप लोग परेशान न हों। ये सब मेरी खुद की चुनी हुई हैं। मैं अपनी कमजोरियों को जानता हूँ, लेकिन अभी मेरा प्रयोग पूरा नहीं हुआ है। मुझे आपके सहयोग की आवश्यकता है ताकि मैं अपने मिशन को आगे बढ़ा सकूं। आपका समर्थन मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष
मैं जिन मार्गों से गुजरा हूँ, उन मार्गों पर अकेला ही चलना पड़ा। लेकिन मेरा उद्देश्य समाज को जागृत करना है। आपके सहयोग से मैं अपने प्रयासों को सफल बना सकता हूँ। आइए, मिलकर इस मिशन को साकार करें।
उद्देश्य: अपने मिशन के लिए फंड जुटाना
जीवन एक यात्रा है, जिसमें हम विभिन्न मार्गों से गुजरते हैं। मेरे जीवन की कहानी भी कुछ ऐसी ही राहों से भरी हुई है, जहाँ मुझे अक्सर अकेले ही चलना पड़ा। इस लेख का उद्देश्य अपने मिशन के लिए फंड जुटाना है, ताकि मैं समाज को जागृत करने के अपने प्रयासों को और सशक्त बना सकूं।
यदि आप मेरे मिशन में सहायता करना चाहते हैं, तो कृपया नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें या मुझे सीधे संपर्क करें। आपका समर्थन मेरे लिए अनमोल है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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