जीवन के दो मार्ग: गुलामी या आजादी ?

जीवन में मार्गों की कोई कमी नहीं है। कहने और दिखाने के लिए सैकड़ों रास्ते उपलब्ध हैं। आनंदमार्ग, परमानंदमार्ग, सत्यमार्ग से लेकर महात्मा गांधी मार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग तक; धर्मों से जुड़ी पहचान—हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, यहूदी—और राजनीतिक विचारधाराएँ—वामपंथ, दक्षिणपंथ, उग्रपंथ, गरमपंथ—हर ओर आपको विकल्प दिखाई देंगे। लेकिन इन तमाम विकल्पों की भीड़ में यदि गहराई से देखा जाए, तो जीवन को जीते हुए अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए केवल दो ही मार्ग हैं।
1. दूसरों के द्वारा निर्मित मार्ग
यह वह रास्ता है जिसे समाज, परंपरा, धर्म, या विचारधारा ने आपके लिए पहले ही तय कर रखा है। यह मार्ग प्रचलित है, जाना-पहचाना है, और सबसे बड़ी बात—इस पर भीड़ मौजूद है। यही भीड़ आपको सुरक्षा का भ्रम देती है। आप सोचते हैं कि जब इतने लोग चल रहे हैं, तो यह रास्ता गलत कैसे हो सकता है?
लेकिन सच्चाई यह है कि ये मार्ग हमेशा ठहरे हुए हैं। मार्ग बनाने वाला जहां जाकर ठहर गया, वहीं मार्ग भी ठहर गया। और अब जो लोग इस पर चल रहे हैं, वे भी उसी ठहराव के हिस्सेदार हैं। इनके आगे का रास्ता कोई तय नहीं कर सकता क्योंकि मार्गों के ठेकेदार और मालिक आपको आगे बढ़ने नहीं देंगे। इसीलिए ऐसे मार्गों पर चलने वाले लोग नामजाप, भजन-कीर्तन, रोज़ा-नमाज, उपवास-व्रत में ही उलझे रहते हैं।
फिर, जैसे-तैसे जो समय बचता है, उसमें वे नौकरी करते हैं, व्यापार चलाते हैं, या समाज के ठेकेदारों, माफियाओं और लुटेरों की चाकरी करते हैं। यही नहीं, वे अपने बच्चों को भी इसी परंपरागत गुलामी का हिस्सा बना देते हैं। यह एक अंतहीन चक्र है—जन्म, नौकरी, शादी, बच्चे, और फिर भावी पीढ़ी को इसी चक्र में धकेलना।
2. स्वयं के द्वारा निर्मित मार्ग
यह वह मार्ग है जो न तो किसी किताब में मिलता है और न किसी गुरु ने बताया होता है। यह आपका निजी रास्ता है, जिसे आप अपने अनुभव, विवेक और स्वतंत्र सोच के आधार पर बनाते हैं।
यह मार्ग कठिन है। क्योंकि इसे आप अकेले ही तय करते हैं। लोग शुरुआत में आपकी प्रशंसा कर सकते हैं, साथ देने का दिखावा कर सकते हैं, लेकिन जल्द ही वे अपनी सुविधा और सुरक्षा के लिए परम्परागत पुराने मार्गों पर लौट जाते हैं।
गुलामी का मनोविज्ञान
जो लोग दूसरों के बनाए मार्गों पर चलते हैं, वे अक्सर अपनी गुलामी को अपनी पहचान मान लेते हैं। वे कहते हैं, “हमारा मार्ग सबसे श्रेष्ठ है। हमारे मार्ग का मालिक ही सृष्टि का रचयिता है।” और यही सोच उन्हें बाड़ों (दड़बों) में कैद कर देती है।
इन दड़बों के मालिक ( धर्मगुरु, राजनेता, माफिया, और व्यापारिक शक्तियाँ) आपसे अपेक्षा करते हैं कि आप उनकी जय-जयकार करें। बदले में, वे आपको थोड़ा-बहुत सुविधाजनक जीवन देकर सुखी-समृद्ध होने का भ्रम देते हैं।
स्वतंत्रता का मूल्य
दूसरी ओर, जो लोग अपना मार्ग स्वयं बनाते हैं, वे जानते हैं कि उन्हें यह यात्रा अकेले करनी होगी। उन्हें यह भी मालूम है कि इस राह में बहुत कम लोग मिलेंगे जो बिना स्वार्थ उनकी मदद करेंगे।
फिर भी, यह मार्ग अनमोल है। क्योंकि यह गुलामी के झूठे आराम से मुक्त है। यहां आप स्वयं के लिए जीते हैं, अपनी शर्तों पर। यह मार्ग कठिन है, लेकिन यही आपको आपकी वास्तविक मंज़िल तक पहुंचा सकता है।
भीड़ का चुनाव या स्वतंत्रता की ओर कदम?
तो अब यह आपके ऊपर है—क्या आप उस भीड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो परंपराओं और ठहराव के मार्ग पर चल रही है? या फिर आप अपना मार्ग स्वयं बनाकर उस स्वतंत्रता को प्राप्त करना चाहते हैं, जो केवल साहसी लोगों को मिलती है?
याद रखें, गुलामी का जीवन सुविधाजनक हो सकता है, लेकिन स्वतंत्रता का जीवन सार्थक है।
~ स्वामी विशुद्ध चैतन्य ✍️
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