गुरु की सीख और अनुयायी की व्याख्या: एक विचारणीय संवाद

भक्त/अनुयायी:
“हमारे गुरुजी महान थे, वही एकमात्र गुरु हैं और उनसे पहले ना तो कोई गुरु पैदा हुआ और ना उनके बाद हुआ। हमारे गुरुजी ने जो कहा, जो लिखा वही परमसत्य है, उसके सिवाय कुछ भी सत्य नहीं है।”
जागृत व्यक्ति:
“आपके गुरु ने जो भी कहा या लिखा, वह किसलिए कहा और लिखा?”
भक्त/अनुयायी:
“हमारे गुरुजी ने रटने और रटाने के लिए कहा और लिखा।”
जागृत व्यक्ति:
“रटने और रटाने से लाभ क्या होता है?”
भक्त/अनुयायी:
“रटने और रटाने से हमें गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है, परीक्षा में अच्छे मार्क्स मिलते हैं। नौकरी मिलती है, शादी में अच्छा घर और अच्छा दहेज मिलता है, शेयर मार्किट में लगाया पैसा दिन दुनी रात चौगुनी बढ़ता है, और माफियाओं और लुटेरों के गुलाम समाज में हमारा बड़ा सम्मान होता है।”
जागृत व्यक्ति:
“इन सबके सिवाय और क्या लाभ होता है?”
भक्त/अनुयायी:
“इन सबके अलावा मरने के बाद स्वर्ग मिलता है, जन्नत मिलती है, अप्सराएँ मिलती हैं, हूरें मिलती हैं, दूध और शराब की नदियां मिलती हैं और वह सभी ऐश्वर्य भोगने मिलते हैं, जो जीते जी भोग नहीं पाए।”
जागृत व्यक्ति:
“क्या आपके गुरु ने यह नहीं सिखाया कि देश और समाज के लुटेरों और माफियाओं का विरोध करो, बहिष्कार करो, अपने देश की संस्कृति और प्रकृति की रक्षा करो, साम्प्रदायिक और जातिवादी द्वेष और घृणा फैलाने वाले कीड़ों को पनपने मत दो अपने समाज में?”
भक्त/अनुयायी:
“बिलकुल सिखाया था। लेकिन यदि हम उनकी सीख को मानेंगे तो हमारी नौकरी चली जाएगी, हमारा परिवार सड़कों पर आ जाएगा। क्योंकि सत्ता और समाज की ठेकेदारी उन्हीं के हाथों में है, जिनसे मुक्त करने के लिए हमारे गुरु ने अलग समाज/पंथ बनाया था। इसीलिए, भैया, हमारे गुरु ने यह भी कहा था कि हमारी सीख आँख-कान मूँद कर मत मानना। अगर उससे लाभ होता है, तभी मानना। तो हम उनकी वही सीख मानते हैं, जिनसे देश और समाज के लुटेरे और माफियाओं की भावनाएं आहत नहीं होतीं।”
निष्कर्ष (जागृत व्यक्ति का दृष्टिकोण):
“तो क्या यही सीख हमारी महान परंपरा और संस्कृति का सार है? रटना और रटाना ही धर्म का आधार है? क्या हमारी गुरु-परंपरा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ तक सीमित है, या यह समाज, संस्कृति और प्रकृति की सेवा के लिए है? हमें यह तय करना होगा कि हम गुरु के नाम पर समाज और खुद को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ते रहेंगे, या उनकी सच्ची सीख को अपनाकर अपने और समाज के उत्थान का मार्ग प्रशस्त करेंगे।”
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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