क्या जीवन का उद्देश्य परम्पराओं का निर्वहन है ?

जीवन का उद्देश्य क्या है ?
यह प्रश्न लगभग हर व्यक्ति के मन में उठता है। लेकिन इस प्रश्न का उत्तर तलाशने की दिशा में बहुत कम लोग प्रयास करते हैं। अधिकांश लोग अपने जीवन को एक प्रीप्रोग्राम्ड स्वचालित मशीन की तरह जीते हैं। उनके लिए जीवन बस एक ढर्रे पर चलता हुआ क्रम है, जिसमें वे परंपराओं और सामाजिक ढांचों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते हैं।
जो लोग मवेशियों या मशीनों की तरह जीवन जीते हैं, उनका जीवन सामान्यतः सुखद प्रतीत होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें सही और गलत का बोध नहीं होता। उनका जीवन परंपराओं और बाहरी निर्देशों पर आधारित होता है। उन्हें यह विश्वास होता है कि जो कुछ भी पीढ़ियों से चला आ रहा है, वह स्वाभाविक रूप से सही है। चाहे वह परंपराएं हों, सामाजिक रीति-रिवाज हों, या धर्म और जाति के ठेकेदारों के आदेश, वे उन्हें अक्षरशः पालन करते हैं। उनके लिए यही जीवन का उद्देश्य बन जाता है, और इस प्रक्रिया में वे मानसिक तनाव या द्वंद्व से बचे रहते हैं।
परम्पराओं के निर्वहन का सुख
यदि हम अपने चारों ओर नजर डालें, तो पाएंगे कि ऐसी मानसिकता के लोग वास्तव में बहुत संतुष्ट दिखते हैं।
- मवेशियों की तरह काम करने वाले श्रमिक हों,
- सरकारी या गैर-सरकारी नौकरशाह हों,
- नेताओं, अभिनेताओं, या बाबाओं की जय-जयकार करने वाले अनुयायी हों,
- अथवा भजन-कीर्तन और धार्मिक गतिविधियों में लीन समूह हों –
ये सभी लोग अपनी दिनचर्या में मग्न और संतुष्ट दिखाई देते हैं। इनके पास न कोई चिंता होती है और न ही किसी प्रकार का बड़ा लक्ष्य। इनकी दुनिया सीमित होती है और ये उसी में मस्त रहते हैं। न इन्हें देश के भ्रष्टाचार की चिंता होती है, न माफिया राज की। इनका दृष्टिकोण मानो यह कहता हो: “ना काहू से बैर, ना काहू से दोस्ती। जो भी मुफ्त का राशन दे, उसी की करेंगे भक्ति।”
इन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे इन्हें जीवन के उद्देश्य की खोज की कोई आवश्यकता ही नहीं है। इनके लिए जीवन का उद्देश्य वही है जो उन्हें परंपरा और समाज ने सिखाया है।
जीवन के उद्देश्य की खोज
लेकिन सभी लोग इस मानसिकता से सहमत नहीं होते। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें गुलामी स्वीकार नहीं होती। वे मवेशियों या मशीनों की तरह जीने से इनकार कर देते हैं। उनके भीतर एक जिज्ञासा होती है, एक आंतरिक पुकार जो उन्हें जीवन के गहरे प्रश्नों की ओर प्रेरित करती है। वे स्वयं से बार-बार पूछते हैं:
- मेरा जन्म क्यों हुआ ?
- मैं इस दुनिया में क्यों आया ?
- मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए वे समाज द्वारा दिए गए पूर्वनिर्धारित उत्तरों से संतुष्ट नहीं होते। वे परंपराओं और सामाजिक बंधनों को चुनौती देते हैं। उनके लिए जीवन केवल परंपराओं का निर्वहन नहीं, बल्कि स्वयं को जानने और समझने की यात्रा है।
परम्परा बनाम आत्मान्वेषण
परंपराएं एक समाज की पहचान होती हैं। वे हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं और समाज में सामूहिकता का अनुभव कराती हैं। लेकिन क्या केवल परंपराओं का निर्वहन ही जीवन का अंतिम उद्देश्य है ? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
परंपराएं हमें एक दिशा दे सकती हैं, लेकिन वे हमेशा सही नहीं होतीं। समय के साथ कई परंपराएं अप्रासंगिक और हानिकारक हो जाती हैं। उन्हें चुनौती देना और उनकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाना आवश्यक है।
आत्मान्वेषण, यानी अपने भीतर झांककर जीवन के गहरे प्रश्नों के उत्तर खोजना, एक ऐसी प्रक्रिया है जो हमें जीवन के वास्तविक उद्देश्य तक पहुंचा सकती है। यह प्रक्रिया कठिन है, लेकिन यह हमें सच्चा आनंद और शांति प्रदान करती है। आत्मान्वेषण के माध्यम से हम परंपराओं और समाज के बंधनों से परे जाकर अपनी स्वतंत्र पहचान बना सकते हैं।
क्या है जीवन का सही उद्देश्य ?
जीवन का उद्देश्य हर व्यक्ति के लिए भिन्न हो सकता है। कुछ लोगों के लिए यह समाज की सेवा करना हो सकता है, तो कुछ के लिए यह आध्यात्मिक मुक्ति की खोज हो सकती है। कुछ इसे परिवार और संबंधों के प्रति समर्पण में पाते हैं, तो कुछ इसे कला, संगीत, या विज्ञान में।
महत्वपूर्ण यह है कि जीवन का उद्देश्य बाहरी दबावों या परंपराओं के आधार पर तय न हो। यह उद्देश्य हमारी अपनी आंतरिक आवाज, हमारे सपने और हमारी जिज्ञासा से प्रेरित होना चाहिए।
निष्कर्ष
जीवन का उद्देश्य केवल परंपराओं का निर्वहन करना नहीं है। परंपराएं हमें एक दिशा दे सकती हैं, लेकिन हमें यह समझना होगा कि वे हमारी सोच को सीमित भी कर सकती हैं। जो लोग जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर खोजने का साहस करते हैं, वे ही वास्तव में जीवन का सार समझ पाते हैं।
तो, क्या आप अपने जीवन का उद्देश्य परंपराओं के निर्वहन में देखते हैं या अपनी आंतरिक जिज्ञासा के उत्तर में ? यह निर्णय आपको स्वयं करना होगा।
~ विशुद्ध चैतन्य
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