आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है

जो व्यक्ति समाज और भीड़ से अलग एकांत में रहना पसंद करते हैं और सीमित लोगों से ही मिलते-जुलते या बातचीत करते हैं, उन्हें मनोविज्ञान में “इंट्रोवर्ट” (Introvert) कहा जाता है।
इंट्रोवर्ट के लक्षण:
1. एकांत प्रियता: ऐसे लोग अकेले समय बिताना पसंद करते हैं और इसमें उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनके लिए एकांत एक प्रकार का चार्जिंग स्टेशन होता है, जहाँ वे अपने भीतर झांक सकते हैं और खुद को समझ सकते हैं।
2. सीमित सामाजिक दायरा: ये लोग चुनिंदा और गहरे रिश्ते बनाने में विश्वास रखते हैं। उनका उद्देश्य बहुत सारे लोगों से सतही बातचीत करने की बजाय, कुछ लोगों से गहरा और अर्थपूर्ण संबंध बनाना होता है।
3. अंदरूनी सोच: इंट्रोवर्ट लोग अक्सर अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं। वे बाहरी दुनिया से ज्यादा अपनी आंतरिक दुनिया को समझने में रुचि रखते हैं।
4. थकावट का अनुभव: बड़ी सामाजिक गतिविधियों या भीड़भाड़ वाले स्थानों में रहने से ये जल्दी थक सकते हैं। ऐसी परिस्थितियाँ उन्हें मानसिक और भावनात्मक रूप से थका देती हैं।
ध्यान दें:
इंट्रोवर्ट होना कोई समस्या नहीं है। यह केवल एक व्यक्तित्व का प्रकार है। यह व्यक्तित्व विशेषता हर व्यक्ति को अलग बनाती है और उन्हें उनकी अनोखी पहचान देती है। लेकिन, यदि यह प्रवृत्ति अत्यधिक बढ़ जाए और व्यक्ति सामाजिक स्थितियों से पूरी तरह बचने लगे, तो इसे ‘सोशल एंग्जायटी’ या ‘एवॉयडेंट पर्सनालिटी डिसऑर्डर’ की श्रेणी में भी देखा जा सकता है।
आधुनिक जीवन और एकांत की आवश्यकता:
प्राचीनकाल में जब तकनीकी इतनी उन्नत नहीं हुई थी, तब ऐसी बीमारियाँ या प्रवृत्तियाँ नहीं थीं। उस समय समाज के भीतर परस्पर सहयोग और सामूहिकता का महत्व था।
- परिवार, समाज, खेत, जंगल और नदियाँ जीवन का हिस्सा थे।
- तनाव से मुक्त होने के लिए लोग सामूहिक खेल खेलते थे, जो सबको जोड़कर रखते थे।
आज स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है।
- खुले मैदान अब दिखाई नहीं देते, तो वहाँ खेलने वाले खेल और खिलाड़ी कहाँ से आएंगे?
- परिवार का उद्देश्य भी अब केवल पैसा कमाना बनकर रह गया है। अपनों के साथ बैठने और बातचीत करने का समय किसी के पास नहीं है।
- त्योहार, जो पहले आत्मीयता और संबंधों को मजबूत करने का माध्यम होते थे, अब दिखावा, आडंबर और औपचारिकता का रूप ले चुके हैं।
समाज का स्वरूप भी बदल गया है। आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है। ऐसे में, जो व्यक्ति जागरूक हो जाता है और इन षड्यंत्रों तथा मायाजाल को समझने लगता है, उसके पास एकांत का चयन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
एकांत का महत्व:
जागृत व्यक्ति की स्थिति यह होती है कि:
- उसकी बातें समझने वाले लोग नहीं मिलते।
- दूसरों की बातें उसे समझ में नहीं आतीं।
जो लोग समाज के साथ समझौता कर लेते हैं, उन्हें समाज में स्वीकृति मिल जाती है। लेकिन जो समझौता नहीं कर पाते, वे अकेले रह जाते हैं। ऐसे में, अकेले रहना गलत नहीं है।
मेरा मत:
मेरा मानना है कि माफियाओं और देश के लुटेरों के गुलामों की भीड़ से स्वीकृति पाने की बजाय, यदि अकेला जीना पड़े तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। क्योंकि इस संसार में हम अकेले ही आए थे और अंत में अकेले ही जाना है। अकेले रहकर जीवन जीना एक प्रकार की स्वतंत्रता है, जहाँ व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान सकता है और अपनी अंतरात्मा के साथ सामंजस्य स्थापित कर सकता है।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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