बुरे समय में कोई साथ नहीं देता, इसलिए धन अर्जन आवश्यक है

यह जीवन का कटु सत्य है कि बुरे समय में लोग आपका साथ छोड़ देते हैं। ऐसा प्रायः सभी के साथ होता है। बहुत कम लोग इस दुनिया में ऐसे मिलते हैं, जिन्हें कठिन समय में किसी का सहारा मिला हो और वे बिखरने से बच गए हों।
यहां तक कि जिनके पास करोड़ों की संपत्ति होती है, वे भी इस स्थिति का सामना करते हैं। उनकी अपनी संतानें तक उन्हें घर से बाहर कर देती हैं। हाल ही में एक घटना पढ़ने में आई, जिसमें एक करोड़पति की मृत्यु के बाद उसके अंतिम संस्कार में कोई उपस्थित नहीं हुआ।
जो लोग सांसारिक जीवन छोड़कर संन्यास धारण कर लेते हैं, उन्हें भी सुनने को मिलता है, “कमाकर खाओ।” आज दान केवल उन नेताओं, राजनीतिक दलों, या करोड़पति बाबाओं को मिलता है, जिनके पास शक्ति और शोहरत है। दानदाताओं को भी अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान रखना पड़ता है।
ओशो के जीवन में भी एक समय ऐसा आया था, जब उन्हें आर्थिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा। तब उन्होंने अपने जीवन में जो परिवर्तन किया, उसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया। आज जो साधु-संत हमें लक्जरी कारों और आलीशान जीवनशैली के साथ दिखाई देते हैं, उनकी भी मजबूरी है। यदि वे आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक रूप से मजबूत नहीं होंगे, तो समाज उन्हें जीने नहीं देगा।
आधुनिक साधु-समाज को अब यह समझ में आ गया है कि बिना धन और संसाधनों के उनका अस्तित्व मुश्किल है। अब लोग ऐसे साधुओं को दान देना पसंद करते हैं, जिनकी छवि संपन्न और प्रभावशाली हो।
ओशो कहते हैं:
“यदि कोई भूखा है और आप उसके पास बैठकर केवल उसके लिए रोते हैं, तो यह भावुकता है। आपका रोना उसकी भूख को मिटा नहीं सकता। इसके बजाय, आप उसकी स्थिति को और भी दुखद बना देते हैं। इस समस्या का समाधान तभी होगा, जब आप कुछ ठोस कदम उठाएंगे।”
इसका सीधा अर्थ है कि यदि समाज की सेवा करनी है, तो पहले स्वयं को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाना होगा। वरना आप पूंजीपतियों के नियंत्रण में जीने को मजबूर हो जाएंगे।
हालांकि, मैंने भी यह सच्चाई समझ ली है, लेकिन मैं इस पैसे कमाने की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहता। मेरी शेष बची जिंदगी इसी संतोष के साथ गुजर जाएगी कि मैं इस दौड़ से दूर रहा।
स्वयं को बदल लो दुनिया बदल जाएगी
जब भी कभी समाज सुधारक बनने का दौरा पड़े, ऐसा लगने लगे कि आपका जन्म समाज और सरकारों को सुधारने के लिए हुआ है, तो महान समाज सुधारकों द्वारा स्थापित पंथ, समाज, सम्प्रदाय, संगठनों, पार्टियों और सरकारों पर एक नजर जरूर डालें।
आप पाएंगे समाज आज भी वैसा ही है, जैसा तब था जब दुनिया के पहले समाज सुधारक को लगा था कि समाज को सुधारना चाहिए।
इतिहास उठाकर देख लीजिए। समाज हमेशा देश के लुटेरों और माफियाओं के सामने नतमस्तक रहा है। बड़े से बड़ा समाज अपने ही सदस्यों की रक्षा कर पाने में अक्षम हैं देश के लुटेरों और माफियाओं से।
कहते हैं विद्वान लोग; “स्वयं को बदल लो, दुनिया बदल जाएगी !!!”
बिलकुल सही कहते हैं !!!
आज भुखमरी है, कोई पानी भी नहीं पूछ रहा। लेकिन जैसे ही सरकारी नौकरी लगी, या लॉटरी लग गयी तो सबकुछ बदल जाएगा। जिस गली का कुत्ता भी नहीं पहचानता था, उस गली का बच्चा-बच्चा पहचानने लगे और जहां भी गुज़रोगे, लोग सलाम करेंगे।
जिसने भी स्वयं को बदलकर देश के लुटेरों और माफियाओं की चाकरी और गुलामी स्वीकार ली, उसके लिए दुनिया बदल गयी। जिन्हें कोई पूछता नहीं था कल तक, आज उनकी पूछ ही पूछ है। जो लोग गरियाते थे, लतियाते थे वे आज सलाम कर रहे हैं। जिन्हें विवाह योग्य रिश्ते नहीं मिल रहे थे, उनके घर लाइन लग गयी रिश्ते वालों के। जिनके घर दो वक्त की रोटी की व्यवस्था मुश्किल से हो पा रही थी, उनके घर से करोड़ों रुपए बरामद होने लगे हैं।
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