वर्षांत चिंतन: बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया

आज वर्ष 2024 का अंतिम दिन है। हम अगले वर्ष 2025 में फिर इसी मंच पर मिलेंगे। लेकिन आज का दिन विशेष है। यह दिन हमें ठहरकर चिंतन-मनन करने का अवसर देता है—क्या खोया, क्या पाया और किस दिशा में हमारा जीवन बढ़ रहा है।
पिछले वर्ष, यानी 2023 के नवम्बर में, मैंने आश्रम जीवन को त्याग दिया। उस समय मैंने निर्णय लिया कि अब किसी अन्य आश्रम में नहीं जाऊंगा। मैंने गाँव में रहने का निश्चय किया, जहाँ एक छोटी-सी कुटिया और बगिया बनाकर शांति से अपना शेष जीवन व्यतीत कर सकूं।
समाज से दूरी का निर्णय
इस निर्णय का कारण मेरे अब तक के अनुभव रहे। मैंने अनुभव किया कि मैं इस दुनिया से अलग हूँ। मेरा स्वभाव, मेरी सोच और मेरा जीवन उन मूल्यों पर आधारित नहीं हैं, जिन्हें समाज मान-सम्मान देता है।
मेरे पास ऐसा कोई कौशल नहीं है जो बिक सके, और मेरे विचार या लेखन भी बहुसंख्यक समाज की रुचियों से मेल नहीं खाते। वे कुछ लोगों तक ही सीमित हैं, और जिन्हें समझ में आते हैं, वे भी शायद उन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते।
इसलिए मैंने तय किया कि समाज की भीड़ से दूरी बनाकर एकांतवास का रास्ता अपनाऊं। जंगल में एक छोटा-सा घर बनाकर आत्मचिंतन और साधना में लीन रहना मेरा सपना बन गया।
सपने और वास्तविकता
हालांकि, वर्ष 2024 बीत गया, और वह सपना अधूरा ही रह गया। कारण स्पष्ट था—मेरे पास कुटिया बनाने के लिए आवश्यक धन नहीं था। मैं न तो वह कार्य करता हूँ जिससे देश के भ्रष्ट तंत्र और माफियाओं को सहयोग मिले, और न ही वह मनोरंजन प्रदान करता हूँ जिससे इन शक्तियों का वर्चस्व और बढ़े।
मैं कथा-प्रवचन या पूजा-पाठ करवाने का भी कार्य नहीं करता। ऐसे में मेरे पास धन आए तो कैसे?
जब मैंने आश्रम छोड़ा, तब मेरे सामने दो विकल्प थे:
- समाज और उसके अधीन तंत्र के सामने झुककर उनकी शर्तों पर जीवन बिताऊं।
- आत्मनिर्भरता और एकांत का मार्ग चुनूं।
मैंने दूसरा विकल्प चुना। लेकिन यह मार्ग सरल नहीं है। माफियाओं और उनके समर्थकों से भरे समाज से मुझे किसी सहयोग की अपेक्षा भी नहीं।
ईश्वर पर विश्वास
यह वर्ष यूँ ही बीत गया। हो सकता है, अगला वर्ष भी इसी प्रकार बीते। लेकिन मेरा विश्वास ईश्वर में अडिग है। वह अवश्य मेरे लिए कोई रास्ता निकालेगा, ताकि मैं अपनी कुटिया बनाने के अपने स्वप्न को साकार कर सकूं।
मेरे विचारों और जीवन की राह समाज से भले ही भिन्न हो, लेकिन मेरी साधना का मूल उद्देश्य सत्य, आत्मचिंतन और ईश्वर से साक्षात्कार ही है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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