नये वर्ष का सन्देश: क्या वास्तव में कुछ बदला ?

आज प्रातःकाल जब नया वर्ष आरम्भ हुआ, तो नयी आशाओं और संभावनाओं की बात हर ओर सुनाई दी।
लेकिन गहरे विचार करें तो प्रश्न उठता है: क्या वास्तव में कुछ बदला?
कल हम पुराने वर्ष की चौखट पर खड़े होकर नये वर्ष की प्रतीक्षा कर रहे थे। और आज, जैसे पुरानी गाड़ी छोड़कर नयी गाड़ी में सवार हो गए हों, हम नये वर्ष की दहलीज़ पर बैठे हैं। परंतु क्या हमने यह विचार किया कि इस नये वर्ष में आने तक क्या नया घटित हुआ?
वास्तविकता का विश्लेषण:
वास्तव में देखा जाए तो कुछ भी नहीं बदला।
- कुछ लोग देर रात तक जश्न मनाकर अब तक नींद में होंगे।
- कुछ ने रातभर नये वर्ष की शुभकामनाएँ दीं और आज आराम फरमा रहे होंगे।
- वहीं कुछ लोग, हमेशा की तरह, अपने दायित्वों का पालन करते हुए सुबह से अपने कार्य में व्यस्त होंगे।
परंतु इन घटनाओं में ऐसा कुछ भी नया नहीं है, जो हमें यह विश्वास दिलाए कि वर्ष के बदलने से हमारी ज़िन्दगी में कोई वास्तविक परिवर्तन आया।
आत्म-परिवर्तन: परिवर्तन की कुंजी
महान विचारकों का मत है कि स्वयं को बदलो, तब दुनिया बदलेगी।
जो लोग अपने भीतर सुधार करते हैं, उनकी दुनिया सचमुच बदल जाती है। लेकिन नया वर्ष अपने आप किसी बदलाव का कारण नहीं बनता।
आत्म-परिवर्तन या समर्पण?
क्या आत्म-परिवर्तन का अर्थ है अपनी पहचान, अपनी सोच और अपनी चेतना को गिरवी रख देना? क्या बदलाव का अर्थ है किसी विशेष समूह, धर्म, विचारधारा या राजनीति का अंध-समर्थक बन जाना?
- हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, यहूदी…
- कांग्रेसी, भाजपाई, वामपंथी, दक्षिणपंथी…
- गांधीवादी, गोडसेवादी, मोदीवादी, अंबेडकरवादी, पेरियारवादी…
ऐसा प्रतीत होता है कि इस समाज ने “मानव” बने रहने की परिभाषा ही भुला दी है।
जागृत मानव बनो
आज की दुनिया मालिकों अर्थात माफ़ियाओं और सत्ताधीशों को मूर्छित, भक्त और गुलाम नागरिक चाहिए। उन्हें जागृत मानवों की आवश्यकता नहीं है।
नये वर्ष का सच्चा स्वागत तभी होगा जब हम स्वयं को सचेत और जागरूक बनाएंगे। अपने भीतर का मानव जीवित रखें, तभी यह संसार एक बेहतर स्थान बन सकता है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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