हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक

आजकल जब भी हम हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति की रक्षा का ढोंग करने वाले तथाकथित रक्षकों को देखते हैं, तो उनका स्वरूप हमेशा विरोधाभासों से भरा नजर आता है। इनकी उपस्थिति में पाखंड और विडंबना स्पष्ट रूप से झलकती है।
पश्चिमी संस्कृति का विरोध, लेकिन पश्चिमी वस्त्र और उपकरण?
पश्चिमी त्योहारों का विरोध करते हुए ये तथाकथित रक्षक कभी यह नहीं सोचते कि जो कपड़े वे पहने हुए हैं, वे भारतीय नहीं हैं। कोट, पैंट, टाई, जींस और टी-शर्ट, जो उनके पहनावे का हिस्सा होते हैं, वे पश्चिमी संस्कृति की ही देन हैं। इसी प्रकार, जिन स्मार्टफोन्स और सोशल मीडिया का उपयोग वे अपने विरोध प्रदर्शन के लिए करते हैं, वे भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं।
इनकी मूर्खता तब और अधिक हास्यास्पद हो जाती है जब ये दीपावली के समय चीनी झालरों का विरोध करते हैं, लेकिन खुद जिन वाहनों पर चढ़कर विरोध करने निकलते हैं, वे या तो विदेशी ब्रांड के होते हैं या पश्चिमी तकनीक से बने होते हैं।
क्या वाकई संस्कृति की रक्षा का यही तरीका है?
अगर हिंदू संस्कृति की इतनी ही चिंता है, तो सबसे पहले अपने पहनावे को बदलें। वही वस्त्र पहनें जो त्रेता और द्वापर युग में लोग पहनते थे। वही वाहन और उपकरण इस्तेमाल करें जो उस समय प्रचलन में थे। क्योंकि उसके बाद से आज तक भारतीय संस्कृति के नाम पर कुछ बचा ही नहीं है।
आज हमारी शिक्षा व्यवस्था से लेकर कानून तक, हमारे कपड़े से लेकर दैनिक जीवन की सुविधाएं, सब विदेशी संस्कृति की देन हैं। हम भले ही गर्व से “संस्कृति के रक्षक” होने का दावा करें, लेकिन हमारे पास अपने नाम पर कुछ भी शेष नहीं है।
मातृभाषा और संस्कृति की उपेक्षा
दुनिया के सभी विकसित देश अपनी मातृभाषा को महत्व देते हैं। जर्मनी, फ्रांस, जापान जैसे देशों में वहां की भाषा को न जानने पर कोई व्यक्ति कार्य नहीं कर सकता। लेकिन भारत में स्थिति उलट है। यहां न्यायालयों में न्यायाधीश को हिंदी या प्रांतीय भाषा आनी जरूरी नहीं, लेकिन अंग्रेजी आना अनिवार्य है।
यह दिखाता है कि हम आज भी मानसिक रूप से ब्रिटिश उपनिवेश ही हैं। हमारे देश में अंग्रेजी का महत्व इतना बढ़ चुका है कि अंग्रेजी बोलने में गलती हो जाए तो लोग हंसते हैं, लेकिन हिंदी में त्रुटि हो तो किसी को फर्क नहीं पड़ता।
विडंबना और प्रश्न
जिस देश के नागरिक ही अपनी भाषा और संस्कृति को महत्व न दें, उस देश में हिंदू संस्कृति की रक्षा का दिखावा करने वाले ऐसे विरोधाभासी लोग पैदा होना स्वाभाविक है। सवाल यह उठता है कि क्या ये रक्षक वाकई हिंदुत्व की रक्षा कर रहे हैं या केवल अपनी राजनीतिक और सामाजिक ताकत बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं?
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
