जीवन के उतार-चढ़ाव: स्वाभिमान और अनुभव की कहानी

मनुष्य का जीवन हमेशा एक जैसा नहीं होता। मेरे जीवन ने भी इस सत्य को बार-बार सिद्ध किया है। कभी आसमान की ऊँचाइयों को छुआ है, तो कभी फुटपाथ पर अपनी रातें बिताई हैं। यह कहानी उन अनगिनत पलों की है, जो मेरे अनुभवों की थाती हैं।
कभी मैं देश की जानी-मानी हस्तियों, म्यूजिक कंपनियों और टीवी चैनलों के साथ काम करता था। वह समय ऐसा था, जब मेरे घर पर दोस्तों की महफिलें सजा करती थीं। लेकिन ऐसे भी दिन आए, जब सड़कों पर भूखा भटकना पड़ा। कभी दुनिया भर के स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लिया, तो कभी एक टुकड़ा रोटी के लिए तरस गया।
क्या आपने ऐसा जीवन जिया है?
अगर नहीं, तो यकीनन आपके अनुभवों का दायरा अभी सीमित है। अधिकांश लोगों का जीवन एक सुनियोजित पटरी पर चलता है। माँ के हाथों भोजन, पिता के संरक्षण में शिक्षा, शादी के बाद पत्नी के हाथ का खाना, फिर बच्चों की परवरिश, और अंत में नाती-पोतों के साथ खेलते हुए जीवन का अवसान।
लेकिन जिसने मेरे जैसा जीवन नहीं जिया, वह मुझे समझ ही नहीं सकता।
सोशल मीडिया पर सहायता मांगना
बहुत से लोग सलाह देते हैं कि सोशल मीडिया पर सहायता न मांगूं, क्योंकि यहाँ लोग मज़ाक बनाते हैं, अपमान करते हैं। वे कहते हैं कि नेताओं या बड़े अधिकारियों से व्यक्तिगत रूप से मिलो। लेकिन मैं स्वाभिमानी हूँ। जब तक कोई स्वयं सहायता का आश्वासन न दे, मैं व्यक्तिगत रूप से किसी से कुछ नहीं मांगता।
स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता
दुनिया में बहुत से लोग आर्थिक रूप से समृद्ध दिखते हैं, लेकिन वे भी असल में गरीब हैं। उनके पास महंगी गाड़ियाँ और आलीशान कोठियाँ हैं, लेकिन बैंक का कर्ज चुकाने में असमर्थ हैं। सरकारी पदों पर बैठे लोग रिश्वत के सहारे जीवन यापन करते हैं। ऐसे “गरीबों” से मैं सहायता कैसे मांग सकता हूँ?
इसीलिए, सोशल मीडिया पर मेरी आवाज उन दो-चार लोगों तक पहुँचती है, जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं और स्वेच्छा से मदद करना चाहते हैं।
मुझे भूखे रहना पसंद है, क्योंकि इससे मुझे जीवन का वास्तविक अनुभव मिलता है। लेकिन सहायता केवल उन्हीं से स्वीकार करता हूँ, जो इसे बिना शर्त और बिना एहसान जताए देते हैं। यही मेरा जीवन का सिद्धांत है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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