जागृत लोगों के लिए समाज से दूरी एक अनिवार्यता

जब साधु-संन्यासियों के निवास स्थान की चर्चा होती है, तो आम धारणा यह है कि उनका कोई स्थायी निवास स्थान नहीं होता। उनके लिए संपूर्ण पृथ्वी ही निवास स्थान है। वे भ्रमणशील होते हैं, और यह अपेक्षा की जाती है कि वे भटकते रहें, ईश्वर की खोज में। कौन जाने, किस गली या चौबारे में ईश्वर का साक्षात्कार हो जाए?
लेकिन यह लेख उन साधु-संतों के लिए नहीं है जो तीर्थस्थानों, शहरों या पूंजीपतियों, नेताओं और अभिनेताओं की चौखटों पर ईश्वर को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। यह लेख उन जागृत संन्यासियों के लिए है, जो मौलिक हैं, जो परंपराओं और आडंबरों से मुक्त हो चुके हैं या मुक्त होने का प्रयास कर रहे हैं।
साधु-संन्यासियों को समाज से दूर एकांत में अपना आश्रय क्यों बनाना चाहिए?
जब आप समाज द्वारा गढ़े गए ढोंग और आडंबरों का पालन नहीं करते, तो समाज आपको अपना विरोधी मान लेता है। समाज की यह प्रवृत्ति है कि वह हर व्यक्ति को अपनी मूर्खताओं और रूढ़ियों का अनुसरण करने के लिए बाध्य करता है। यदि कोई व्यक्ति इससे इनकार करता है, तो समाज उसे बहिष्कृत करने में देर नहीं करता।
ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि जब अंततः समाज से बहिष्कृत होना ही है, तो इस प्रक्रिया को टालने का क्या औचित्य? क्यों न आज ही स्वयं को इस ढोंगपूर्ण समाज से अलग कर लिया जाए?

सीमितता की महत्ता
कई लोग मुझसे पूछते हैं, “कैसे संन्यासी हो जो दिनभर सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हो?”
मैं यह स्वीकार करता हूँ कि मैं यह सोचकर मूर्खता करता रहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को जागरूक किया जा सकता है। लेकिन वास्तविकता यह है कि सोशल मीडिया भी उन्हीं माफियाओं और शक्तिशाली वर्गों के नियंत्रण में है, जो समाज को भ्रम और अज्ञान में बनाए रखना चाहते हैं। ऐसे में वहाँ भी वही लिखा जा सकता है, जो उनकी भावनाओं और स्वार्थों के अनुकूल हो।
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि निवास स्थान हो या सोशल मीडिया, संन्यासियों को एकांत अपनाना चाहिए। अपने जीवन को केवल उन्हीं लोगों तक सीमित रखना चाहिए, जो समझदार हैं और सहयोगी हैं। शेष लोगों से दूरी बनाना ही श्रेयस्कर है।
मानवता और स्वाभिमान
बहुत से लोग मुझसे कहते हैं, “आप भी हमारी तरह कोल्हू के बैल क्यों नहीं बन जाते?” या “देश के लुटेरों और माफियाओं के पालतू मवेशी क्यों नहीं बन जाते?”
उन सभी से मेरा यह कहना है कि मैं वह नहीं बन सकता, जिसके लिए मैं इस पृथ्वी पर नहीं आया हूँ। मुझे मानव शरीर मिला है, बुद्धि और विवेक मिला है, ताकि मैं मानव बन सकूँ। मैं देश के लुटेरों और माफियाओं का गुलाम बनने के लिए पैदा नहीं हुआ हूँ।
भविष्य की दिशा
आगामी समय में मेरे लेख केवल उन्हीं लोगों तक पहुँचेंगे, जो इन्हें सचमुच समझने और सराहने के इच्छुक हैं। मैं अपने व्यक्तिगत जीवन की तरह सोशल मीडिया पर भी सीमित होना चाहता हूँ। मैं अपनी ऊर्जा उन लोगों पर व्यर्थ नहीं करना चाहता, जिन्होंने अपनी चेतना को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ लिया है।
यह मेरी यात्रा है, और मैं इसे अपनी शर्तों पर जीना चाहता हूँ।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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